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सिंहस्थ में'समरसता' का राजनीतिक पाखंड,क्षिप्रा में तो गैरहिंदू भी डुबकी लगा आये

खरी-खरी            May 06, 2016


hemant-palहेमंत पाल। उज्जैन सिंहस्थ में आने वाले किसी भी श्रद्धालु से उसकी जाति, पांति या धर्म नहीं पूछा जाता और न पूछा जा रहा है। सिंहस्थ में आने वाला श्रद्धालु न तो दलित होता है न सवर्ण। धार्मिक आस्था और सरकार की सुपर ब्रांडिंग से सराबोर इस आयोजन का आकर्षण इतना ज्यादा है कि कई गैर-हिंदू भी क्षिप्रा में डुबकी लगा आए। लेकिन, संघ और भाजपा ने इस धार्मिक उत्सव में भी राजनीति करने का मौका ढूंढ लिया। उज्जैन में 'समरसता स्नान' और 'समरसता भोज' का आयोजन किया जा रहा है। भाजपा के कई दिग्गज नेता दलितों के साथ क्षिप्रा में डुबकी लगाएंगे। सवाल किया जा रहा है कि जब सिंहस्थ में सामाजिक समरसता पहले से विद्यमान है तो फिर ये दिखावा किस लिए? सिंहस्थ में जातिवाद का जहर क्यों घोला जा रहा है? क्या भाजपा के तरह के क़दमों से वर्ग संघर्ष नहीं भड़केगा? सिंहस्थ में आए साधू-संत और विपक्ष भी इसके खिलाफ हैं। दरअसल, ये सब संघ की रणनीति का हिस्सा है, जिसका पालन करना सरकार मज़बूरी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा में 'सामाजिक समरसता' एक महत्वपूर्ण मसला है। संघ इस साल हिन्दुओं के बीच सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से देशव्यापी अभियान चला रहा है। समरसता के बहाने संघ हिंदुत्व की भावना को ज्यादा से ज्यादा पोषित करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए सिंहस्थ से अच्छी जगह कोई हो नहीं सकती। इसलिए भाजपा द्वारा 11 मई को उज्जैन में 'समरसता स्नान' और 'समरसता भोज' जैसा आयोजन किया जा रहा है। वास्तव में इसके पीछे एक राजनीतिक विचार काम कर रहा है। ये हालात इसलिए बने कि भाजपा बिहार चुनाव के दौरान संघ के मुखिया मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा की जरूरत बताने वाला बयान सामने आने के बाद अपना हश्र देख चुका है। भागवत के बयान ने जाति आधारित बिहार चुनाव में भाजपा को विपक्षी दलों के निशाने पर ला दिया था। यह आयोजन उस परिप्रेक्ष्य में भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भागवत के बयान को विपक्ष ने उस चुनाव में बड़ा मुद्दा बना दिया था, जिससे भाजपा की जमकर किरकिरी भी हुई। अब उस गलती को दुरुस्त करने के लिए सिंहस्थ को माध्यम बनाया गया है। राजनीतिक समीकरण साधने वाले समरसता स्नान में बड़ी संख्या में दलित एवं आदिवासी वर्ग को अन्य वर्गो के लोगों के साथ स्नान कराने की रणनीति है। समरसता स्नान के बाद ‘समरसता भोज’ का आयोजन भी किया गया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान समेत कई पार्टी नेता सिंहस्थ के दौरान 11 मई को क्षिप्रा में दलितों, आदिवासियों के साथ ‘समरसता स्नान’ कर आस्था की डुबकी लगाएंगे। इसलिए कि भाजपा इस वर्ग का दिल जीत सकें। यह 'समरसता स्नान' ऐसे वक़्त किया जा रहा है, जब संघ दलितों और आदिवासियों को अपने पाले में लाने के लिए हर संभव कोशिश में लगा है। प्रदेश भाजपा ने एक लाख दलितों को 11 मई को उज्जैन में एकत्रित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी! हर विधायक को लक्ष्य दिया जा रहा है, कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र से अधिकतम दलितों को लेकर उज्जैन पहुंचें। संघ एक तरफ जहां समरसता अभियान चला रहा है, दूसरी और संयुक्त परिवार परम्परा को भी मजबूत बनाने के लिए घर-घर संपर्क अभियान शुरू कर रहा है। संघ का मानना है कि संयुक्त परिवारों के टूटने और एकल परिवार परंपरा से समाज में असंवेदनशीलता बढ़ी है। बहुत सी समस्याएं भी पैदा हो गईं। इस कारण हिन्दू परिवार कमजोर हो रहे हैं। संघ ने एक सूची बनाई है जिसमें संयुक्त परिवार में रहने के फायदे एवं एकल परिवार के नुकसान बताए गए हैं। स्वयंसेवक संपर्क के दौरान संकल्प पत्र भी भरवाएंगे, जिससे हिन्दू परिवार सप्ताह में कम से कम एक बार साथ समय बिताने, साथ भोजन करने। सप्ताह में कम से कम एक दिन टीवी बंद रखने की भी बात कही गई है। कहा जा रहा है कि 2004 की तुलना में इस बार के सिंहस्थ पर भगवाधारियों का वर्चस्व स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इस धार्मिक आयोजन के फ्लॉप होने का एक बड़ा कारण भी शायद यही है। सरकार पूरी तरह से हिन्दुत्व के रंग में रंगी हुई है। मकसद है जनता में अपनी मजबूत पकड़ साबित करके अपना राजनीतिक गणित साधना, जो गड़बड़ाता दिख रहा है। सवाल उठता है कि सिंहस्थ-2016 को क्यों याद किया जाए? इसलिए कि इस धार्मिक आयोजन की जबरदस्त ब्रांडिंग हुई है और अब सदियों की धार्मिक परंपरा से हटकर शाही स्नान को भी फीका कर देने वाले 'जाति विशेष' का मजमा जमाया जा रहा है। धर्म, आध्यात्म और सामाजिक समरसता के नाम पर जातीय समीकरण सुधारने के लिए भाजपा ने हर वो कोशिश की, जो सत्ता के समीकरण बनाए रखने के लिए बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 'सामाजिक समरसता' के इस आयोजन के पीछे संघ के गुरु गोलवलकर के दार्शनिक विचारों को आधार बनाया गया है। सामाजिक समरसता के संदर्भ में उनका मानना था कि हिंदू समाज के उत्थान में ही राष्ट्र का उत्थान है और उसके पतन में राष्ट्र का पतन है। हिंदू समाज का पतन हुआ, इसलिए हिंदूराष्ट्र का पतन हुआ। हिंदू समाज का पतन आत्मविस्मृति के कारण हुआ। स्वार्थपरायणता के विभिन्न भेदों के कारण समाज का विघटन हुआ और समाज असंघठित अवस्था में समाज चला गया। हिंदूराष्ट्र के उत्थान के लिए हिंदू समाज का उत्थान होना जरुरी है। आत्मग्लानि दूर करने के लिए आत्मबोध जगाना पड़ेगा। स्वार्थपरायणता के स्थान पर नि:स्वार्थ भाव निर्माण करना पड़ेगा। सभी भेदों को भुलाकर एकात्मता का भाव जाग्रत कर एकात्म, एकरस, समरस हिंदू समाज का निर्माण करना पड़ेगा। इस साधनाकाल में गुरुजी ने आदर्श समाज की स्थिति, वर्णव्यवस्था, जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, वनवासी बांधवों की स्थिति, समाजधारणा में धर्म का स्थान, समाज को उन्नत दिशा में ले जाने में धर्माचार्यों का योगदान, जातिभेद और राजनीति, भेदों को दूर करने के उपाय, दरिद्रनारायण की उपासना इन विषयों पर अपना चिंतन स्पष्ट किया था! संघ ने इस विचार को आगे बढ़ाया और भाजपा ने इसे अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लपक लिया। हमेशा देखा जाता है कि संघ का इशारा भाजपा के लिए ब्रह्म वाक्य बन जाता है। संघ प्रमुख बार-बार सामाजिक समरसता पर जोर दे रहे हैं। एक कुंआ, एक मंदिर, एक शाला और एक श्मशान। इस सोच के तहत ही भाजपा ने समरसता स्नान का आयोजन किया है। क्षिप्रा नदी में दलितों को स्नान कराने के लिये पार्टी पूरी ताकत से जुट गई। संघ में लगातार समरसता का पारायण जारी है। इसे संघ विरोधी समझौतावादी रवैया कहते हों, लेकिन संघ समय के साथ बदलाव दिखाकर सुर्खियां पा रहा है। संघ का पूरा जोर अब हिन्दू समाज को स्वस्थ स्थिति में बचाए रखने का है। यही कारण है कि सामाजिक समरसता और परिवार परंपरा को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है! जिसे संघ के अनुषांगिक संगठन 'भाजपा' ने सर-माथे पर ले रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशभर में ‘जय भीम’ का नारा बुलंद कर रहे हैं। राज्यों में भाजपा की सरकारें भी हैसियत और परिस्थितियों के मुताबिक संघ की विचारधारा को पोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। सिंहस्थ-2016 अब उस दौर में प्रवेश करने जा रहा है, जब आस्था के पर्व में डुबकी लगाने वाले राजनीतिबाज ख़बरों में छाए रहेंगे! फिर वो वैचारिक धरातल पर समाज निर्माण का संदेश देने में खास रुचि ले रहा संघ हो, या उसके इशारे पर सत्ता की सियासत करने वाली भाजपा। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या सिंहस्थ को संघ हाईजैक करने जा रहा है? इसका माहौल बनाने की जिम्मेदारी भाजपा को सौंपी है? भाजपा के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने भाजपा की उस रणनीति का खुलासा कर दिया, जो सिंहस्थ की आड़ में हर वर्ग को यह संदेश देना चाहता है कि भाजपा के लिए राष्ट्रधर्म और देश का विकास सबसे ऊपर है। लेकिन जिस तरह चुनावी प्रबंधन के मोर्चे पर भाजपा और संघ अपने एजेंडे को सुनियोजित योजना के तहत अंजाम तक पहुंचाते हैं कुछ उसी तरह का अंदाज यहां सिंहस्थ के दौरान देखने को मिलेगा। 'समरसता स्नान' के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वैचारिक महाकुंभ' में शिरकत की राजनीति गुल खिलाने लगेगी। नरेंद्र मोदी तो आंबेडकर जयंती पर उनके अनुयायियों को लुभाने के लिए महू दौरे के दौरान भी संदेश दे चुके हैं। प्रदेश स्तर पर भाजपा हर वर्ग के बुद्धिजीवियों की खोजकर उन्हें रिझाने के लिए जो कार्यक्रम करने जा रही है, उसका आकर्षण केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर होंगे! इसका मकसद सिंहस्थ के जरिए युवाओं का समर्थन हांसिल करना है। दूसरे शाही स्नान के बाद सबकी नजर मोहन भागवत पर रहेगी। वे 'वैचारिक महाकुंभ' का आगाज तो करेंगे ही, आदिवासियों के साथ शबरी महाकुंभ में भी शामिल होंगे। भागवत की इस यात्रा को सफल बनाने की बिसात सह सरकार्यवाह भैयाजी जोशी बिछा चुके हैं। राष्ट्रवाद और भारत माता की जय के इस दौर में जब आरक्षण का मुद्दा भाजपा के गले की फांस बन गया है, तब संघ प्रमुख सियासत से ऊपर उठकर भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने की जरूरत जताएंगे और आदिवासियों का दिल जीतने की कोशिश करेंगे। (लेखक 'सुबह सवेरे' समाचार पत्र के राजनीतिक संपादक हैं)


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