रवीश कुमार।
ऐसा हो सकता है कि 3232 ट्रकों के बारे में जानकारी न मिले या कोई इतनी बड़ी संख्या में ट्रकों के बारे में ग़लत जानकारी सरकारी रजिस्टर में भर दे। पंजाब में सीएजी ने एक रिपोर्ट दी है जिसे मार्च महीने के बजट सत्र में विधानसभा में पेश किया गया। सीएजी ने 2009 से 2013 के बीच 3319 ट्रकों का सैंपल लेकर उनके बारे में पता करना शुरू किया तो निराशा हाथ लगी, क्योंकि सिर्फ 87 गाड़ियों का अता-पता लग सका, लेकिन इनमें से 15 ट्रक नहीं थे। स्कूटर, मोटरसाइकिल और कार वगैरह के नंबर थे। 3232 ट्रकों का कोई अता पता नहीं चला।
मंडी से जब अनाज उठता है गोदाम ले जाने के लिए तो बड़ी संख्या में ट्रकों का इस्तेमाल होता है। निश्चित रूप से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर तो कोई गेहूं या धान की बोरी लाद कर नहीं ले जाएगा। लेकिन क्या यह संभव है कि 3319 ट्रकों का पता ही न चले। जब ट्रक माल लेकर गोदाम पहुंचता है तो बकायदा उसके नंबर की रसीद कटती है। इतनी बड़ी मात्रा में ग़लती तो हो नहीं सकती। अगर हुई होगी तो फिर उस ट्रक ने उस रसीद के बदले पैसे कैसे लिये होंगे। यानी रसीद भी फर्ज़ी और पैसे का भुगतान भी फर्जी। सीएजी ने कहा है कि चार सरकारी एजेंसियों के 16 अधिकारियों में से 7 ने कोई डेटा ही नहीं दिया कि कितने ट्रकों का इस्तेमाल हुआ और उनके नंबर क्या हैं। उम्मीद है पंजाब सरकार इन ट्रकों की तलाश कर रही होगी।
भारतीय रिज़र्व बैंक के ज़रिये भारत सरकार पंजाब को पैसे देती है कि वो अपने यहां धान और गेहूं की खरीद करे। रिजर्व बैंक से पैसा पहुंचता है भारतीय स्टेट बैंक सहित 30 बैंकों के पास। अब भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई के लिए पंजाब सरकार अनाज खरीदने का काम शुरू कर देती है। पैसा मिलते ही पंजाब सरकार आढ़ती से कहती है कि वो किसानों से गेहूं खरीदे। आढ़ती ख़रीदकर मंडियों के ज़रिये सरकार को बता देता है कि इतनी ख़रीद हुई।
सरकार बैंक को बताती है कि फलां मंडी में इतने लाख टन गेंहू की खरीद हो गई है। उसके एवज में बैंक तुरंत राज्य सरकार को पैसा दे देता है। राज्य सरकार 48 घंटे के भीतर आढ़ती के खाते में पैसा भेज देती है, ताकि किसानों को जल्दी पैसा मिल सके। वैसे सरकार इस बिन्दु पर भी किसानों के खाते में सीधे पैसे भेजने पर विचार कर सकती है। ख़ैर…आढ़ती जब ख़रीद लेता है तो इसे गोदाम में ले जाने के लिए एजेंसियां ट्रक लेकर आ जाती हैं। इसके लिए पंजाब में पांच छह एजेंसियां हैं। ये ट्रक अनाज लेकर गोदाम पहुंचते हैं और वहां रसीद मिलती है कि कितना माल लेकर आए और किस ट्रक से आए। मंडी में कितना खरीदा गया और गोदाम में कितना पहुंचा, इसका अलग-अलग डेटा रखा जाता है। फिर इनका मिलान किया जाता है। यही मिलान हुआ तो पता चला कि जितना अनाज मंडी में खरीदा गया उतना तो गोदाम में पहुंचा ही नहीं। ये मैंने मोटा मोटी आपको बताया ताकि आप प्रक्रिया को समझ सकें।
‘इकोनोमिक टाइम्स’ ने तो इस पर कई ख़बरें छापी हैं। उसके अनुसार पंजाब में खरीद से जुड़े 30 बैंकों के समूह को 12,000 करोड़ के स्टॉक का हिसाब नहीं मिल रहा है। ख़बर आई कि बैंकों ने पता चलते ही इस सीजन में ख़रीद के बाद भुगतान रोक दिया। पंजाब का कहना है कि केंद्र से जो अनाज खरीदने के लिए पैसे मिले थे उनका कहीं भी ग़लत इस्तेमाल नहीं हुआ है। ये अनाज सेंट्रल पूल में जाता है यानी भारतीय खाद्य निगम को दे दिया जाता है और बकायदा इसका रिकार्ड रखा जाता है। अगर ऐसा है तो भारतीय रिजर्व बैंक को चिन्ता करने की क्यों ज़रूरत पड़ी। कई बार एफसीआई भी सीधे मंडी से अनाज उठाकर अपने ट्रकों से दूसरे राज्यों में भिजवा देती है। लिहाज़ा एफसीआई को भी बताना चाहिए कि 12000 करोड़ रुपये के गेहूं का जो हिसाब नहीं मिल रहा है क्या उसके ट्रक लेकर कहीं गए। गए भी या नहीं गए। 3000 से अधिक ट्रकों का तो अता-पता ही नहीं मिल रहा है। इस मसले को लेकर मुख्यमंत्री बादल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात भी की है।
लेकिन बैंक परेशान हैं कि इतना पैसा कहां गया। अगर सरकार के गोदाम में स्टॉक नहीं है तो कहां गया। फिर पैसा किसे दिया गया। अगर हिसाब नहीं मिलेगा तो बैंक अपने खाते में इतनी बड़ी रकम को कैसे दिखायेंगे। ‘इकोनोमिक टाइम्स’ के अनुसार बैंकों ने पंजाब से कहा कि पूरा प्लान बताइये कि कैसे आप इस पैसे का भुगतान करेंगे और स्टॉक का हिसाब देंगे क्योंकि अगर यह हिसाब नहीं मिला तो बैंकों को 1800 से 3000 करोड़ का बैड लोन घोषित करना होगा। लिहाज़ा अभी तो वे एक विजय माल्या को नहीं पकड़ पा रहे हैं। इतनी बड़ी रकम को या तो भूल जाना होगा या कई प्रकार के गुमनाम, अज्ञात माल्याओं की तलाश में गाड़ी लेकर निकलना होगा।
‘इकोनोमिक टाइम्स’ में 19 अप्रैल को संगीता मेहता और सलोनी शुक्ला की रिपोर्ट है, भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि उन्होंने पंजाब को जो कर्जा दिया है उसका एक बड़ा हिस्सा नॉन परफॉर्मिंग एसेट हो सकता है। पंजाब सरकार को बैंकों ने अनाज खरीदने के लिए 12000 करोड़ रुपये का लोन दिया था। पंजाब सरकार कहती है कि इन पैसों से देश के लिए अनाज ही खरीदे गए हैं। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने भी माना है कि जो गोदाम में स्टॉक है और जितना होना चाहिए इसमें काफी अंतर है। अखबार के अनुसार सिन्हा ने विस्तार से जवाब नहीं दिया कि क्या ऐसा अन्य राज्यों में भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसीलिए हमें व्यापक समाधान खोजने की ज़रूरत है। इसके कारण किसानों के भुगतान में देरी होती जा रही है।
संगरुर ज़िले के आसपास की मंडियों में संकट गहरा गया है। हमने संगरूर की तीन मंडियों का हाल पता किया। संगरूर, धुरी और लहरा। यहां आढ़तियों और किसानों ने बताया कि गेहूं बेचने के दो हफ्ते होने को आए मगर पैसे नहीं मिले हैं। आम तौर पर 24 से 48 घंटे में पैसे मिल जाया करते थे। संगरूर के आसपास 16 मंडियां हैं। हर जगह यही कहानी है। संगरूर की मंडी के एक आढ़ती ने फोन पर बताया कि 11 तारीख़ की उनकी बोली लगी थी मगर 20 अप्रैल यानी बुधवार तक पेमेंट नहीं मिली है। उन्होंने 200 किसानों से 40,000 गेहूं की बोरियां खरीदी हैं। मंडी बोर्ड को तीन करोड़ का बिल भेज भी दिया है मगर पैसा आया ही नहीं तो किसान को कहां से दें। कई आढ़तियों से बात कर पता चला कि संगरूर की 16 मंडियों में करीब 12 लाख बोरियों पड़ी हैं और उनका पैसा नहीं आया है। किसानों के साथ मंडियों में काम करने वाले मजदूरों को भी पैसे नहीं मिल रहे हैं। नवंबर-दिसंबर के भी इनके पैसे बाकी हैं। एक बोरी उठाने के 1 रुपये 58 पैसे का रेट है। पिछली बार का एक रुपया तो मिल गया है लेकिन हर बोरी पर 58 पैसे के हिसाब से पैसे नहीं मिले हैं। इस कारण गेहूं उठाने आ रही एजेंसियों के प्रदर्शन में सुस्ती दिख रही है। संगरूर में ही करीब चार हज़ार प्रवासी और स्थानीय मज़दूर इससे प्रभावित बताये जा रहे हैं।
कई किसान तो चले गए मगर अब भी बड़ी संख्या में किसान मंडियों में ही डेरा डाले हुए हैं कि पैसा आएगा तो घर जायेंगे। किसानों को भी ट्रैक्टर से लेकर गेहूं काटने की मशीन कार्बाइन का किराया देना होता है। स्कूल की फीस से लेकर राशन का उधार अलग। किसानों को भी बैंकों के किश्त चुकाने होते हैं। एक-एक किसान के तीन से चार लाख रुपये आढ़तियों के पास है और आढ़तियों के करोड़ों रुपये सरकार के पास बकाया हैं।
हमने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गृह ज़िले मुक्तसर की मंडी का भी हाल पता किया। ये गीदड़बाह मंडी है। यहां से सरकार 7 लाख 90 हज़ार बोरियों उठाकर गोदामों में ले गईं फिर भी किसानों को अभी तक भुगतान नहीं हुआ है इसका हिसाब लगाएंगे तो करीब 59 करोड़ के आसपास बैठेगा। 85,000 बोरियां मंडी में ही पड़ी हैं। मुक्तसर में करीब 56 मंडियां हैं। चार बड़ी मंडी है और 52 के करीब छोटी और मझोले किस्म की मंडियां हैं। हर मंडी की कमोबेश यही कहानी है। हज़ारों किसान दो हफ्ते से पैसे का इंतज़ार कर रहे हैं। यहां भी आढ़तियों का कहना है कि सरकार की तरफ से पैसे नहीं आ रहे हैं।
20 अप्रैल के ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में रोहन दुआ ने लिखा है कि पंजाब सरकार ने अभी तक चावल मिलों से 1300 करोड़ रुपये नहीं वसूले हैं। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जालंधर, लुधियाना, संगरूर, मोहाली और फतेहगढ़ सहित कई मीलों से पता चला है कि जो स्टॉक है और उनके बदले बैंकों से जो पैसा लिया गया है उसमें काफी अंतर है। सीएजी के अनुसार मीलों को फायदा पहुंचाने के लिए पैसा तो दे दिया गया मगर माल का पता ही नहीं चल रहा है। पंजाब के किसान संकट में हैं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने तो रिपोर्ट किया है कि अब तो पंजाब में आढ़ती भी आत्महत्या करने लगे हैं। उन 3000 ट्रकों का कैसा पता लगाया जाए। क्या उनका विज्ञापन निकाला जाए, 12000 करोड़ के स्टॉक का हिसाब नहीं मिल रहा है, क्या ये हिसाब किताब का पुराना झमेला है या कोई घोटाला है।ऐसा हो सकता है कि 3232 ट्रकों के बारे में जानकारी न मिले या कोई इतनी बड़ी संख्या में ट्रकों के बारे में ग़लत जानकारी सरकारी रजिस्टर में भर दे। पंजाब में सीएजी ने एक रिपोर्ट दी है जिसे मार्च महीने के बजट सत्र में विधानसभा में पेश किया गया। सीएजी ने 2009 से 2013 के बीच 3319 ट्रकों का सैंपल लेकर उनके बारे में पता करना शुरू किया तो निराशा हाथ लगी, क्योंकि सिर्फ 87 गाड़ियों का अता-पता लग सका, लेकिन इनमें से 15 ट्रक नहीं थे। स्कूटर, मोटरसाइकिल और कार वगैरह के नंबर थे। 3232 ट्रकों का कोई अता पता नहीं चला।
मंडी से जब अनाज उठता है गोदाम ले जाने के लिए तो बड़ी संख्या में ट्रकों का इस्तेमाल होता है। निश्चित रूप से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर तो कोई गेहूं या धान की बोरी लाद कर नहीं ले जाएगा। लेकिन क्या यह संभव है कि 3319 ट्रकों का पता ही न चले। जब ट्रक माल लेकर गोदाम पहुंचता है तो बकायदा उसके नंबर की रसीद कटती है। इतनी बड़ी मात्रा में ग़लती तो हो नहीं सकती। अगर हुई होगी तो फिर उस ट्रक ने उस रसीद के बदले पैसे कैसे लिये होंगे। यानी रसीद भी फर्ज़ी और पैसे का भुगतान भी फर्जी। सीएजी ने कहा है कि चार सरकारी एजेंसियों के 16 अधिकारियों में से 7 ने कोई डेटा ही नहीं दिया कि कितने ट्रकों का इस्तेमाल हुआ और उनके नंबर क्या हैं। उम्मीद है पंजाब सरकार इन ट्रकों की तलाश कर रही होगी।
भारतीय रिज़र्व बैंक के ज़रिये भारत सरकार पंजाब को पैसे देती है कि वो अपने यहां धान और गेहूं की खरीद करे। रिजर्व बैंक से पैसा पहुंचता है भारतीय स्टेट बैंक सहित 30 बैंकों के पास। अब भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई के लिए पंजाब सरकार अनाज खरीदने का काम शुरू कर देती है। पैसा मिलते ही पंजाब सरकार आढ़ती से कहती है कि वो किसानों से गेहूं खरीदे। आढ़ती ख़रीदकर मंडियों के ज़रिये सरकार को बता देता है कि इतनी ख़रीद हुई।
सरकार बैंक को बताती है कि फलां मंडी में इतने लाख टन गेंहू की खरीद हो गई है। उसके एवज में बैंक तुरंत राज्य सरकार को पैसा दे देता है। राज्य सरकार 48 घंटे के भीतर आढ़ती के खाते में पैसा भेज देती है, ताकि किसानों को जल्दी पैसा मिल सके। वैसे सरकार इस बिन्दु पर भी किसानों के खाते में सीधे पैसे भेजने पर विचार कर सकती है। ख़ैर…आढ़ती जब ख़रीद लेता है तो इसे गोदाम में ले जाने के लिए एजेंसियां ट्रक लेकर आ जाती हैं। इसके लिए पंजाब में पांच छह एजेंसियां हैं। ये ट्रक अनाज लेकर गोदाम पहुंचते हैं और वहां रसीद मिलती है कि कितना माल लेकर आए और किस ट्रक से आए। मंडी में कितना खरीदा गया और गोदाम में कितना पहुंचा, इसका अलग-अलग डेटा रखा जाता है। फिर इनका मिलान किया जाता है। यही मिलान हुआ तो पता चला कि जितना अनाज मंडी में खरीदा गया उतना तो गोदाम में पहुंचा ही नहीं। ये मैंने मोटा मोटी आपको बताया ताकि आप प्रक्रिया को समझ सकें।
‘इकोनोमिक टाइम्स’ ने तो इस पर कई ख़बरें छापी हैं। उसके अनुसार पंजाब में खरीद से जुड़े 30 बैंकों के समूह को 12,000 करोड़ के स्टॉक का हिसाब नहीं मिल रहा है। ख़बर आई कि बैंकों ने पता चलते ही इस सीजन में ख़रीद के बाद भुगतान रोक दिया। पंजाब का कहना है कि केंद्र से जो अनाज खरीदने के लिए पैसे मिले थे उनका कहीं भी ग़लत इस्तेमाल नहीं हुआ है। ये अनाज सेंट्रल पूल में जाता है यानी भारतीय खाद्य निगम को दे दिया जाता है और बकायदा इसका रिकार्ड रखा जाता है। अगर ऐसा है तो भारतीय रिजर्व बैंक को चिन्ता करने की क्यों ज़रूरत पड़ी। कई बार एफसीआई भी सीधे मंडी से अनाज उठाकर अपने ट्रकों से दूसरे राज्यों में भिजवा देती है। लिहाज़ा एफसीआई को भी बताना चाहिए कि 12000 करोड़ रुपये के गेहूं का जो हिसाब नहीं मिल रहा है क्या उसके ट्रक लेकर कहीं गए। गए भी या नहीं गए। 3000 से अधिक ट्रकों का तो अता-पता ही नहीं मिल रहा है। इस मसले को लेकर मुख्यमंत्री बादल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात भी की है।
लेकिन बैंक परेशान हैं कि इतना पैसा कहां गया। अगर सरकार के गोदाम में स्टॉक नहीं है तो कहां गया। फिर पैसा किसे दिया गया। अगर हिसाब नहीं मिलेगा तो बैंक अपने खाते में इतनी बड़ी रकम को कैसे दिखायेंगे। ‘इकोनोमिक टाइम्स’ के अनुसार बैंकों ने पंजाब से कहा कि पूरा प्लान बताइये कि कैसे आप इस पैसे का भुगतान करेंगे और स्टॉक का हिसाब देंगे क्योंकि अगर यह हिसाब नहीं मिला तो बैंकों को 1800 से 3000 करोड़ का बैड लोन घोषित करना होगा। लिहाज़ा अभी तो वे एक विजय माल्या को नहीं पकड़ पा रहे हैं। इतनी बड़ी रकम को या तो भूल जाना होगा या कई प्रकार के गुमनाम, अज्ञात माल्याओं की तलाश में गाड़ी लेकर निकलना होगा।
‘इकोनोमिक टाइम्स’ में 19 अप्रैल को संगीता मेहता और सलोनी शुक्ला की रिपोर्ट है, भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि उन्होंने पंजाब को जो कर्जा दिया है उसका एक बड़ा हिस्सा नॉन परफॉर्मिंग एसेट हो सकता है। पंजाब सरकार को बैंकों ने अनाज खरीदने के लिए 12000 करोड़ रुपये का लोन दिया था। पंजाब सरकार कहती है कि इन पैसों से देश के लिए अनाज ही खरीदे गए हैं। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने भी माना है कि जो गोदाम में स्टॉक है और जितना होना चाहिए इसमें काफी अंतर है। अखबार के अनुसार सिन्हा ने विस्तार से जवाब नहीं दिया कि क्या ऐसा अन्य राज्यों में भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसीलिए हमें व्यापक समाधान खोजने की ज़रूरत है। इसके कारण किसानों के भुगतान में देरी होती जा रही है।
संगरुर ज़िले के आसपास की मंडियों में संकट गहरा गया है। हमने संगरूर की तीन मंडियों का हाल पता किया। संगरूर, धुरी और लहरा। यहां आढ़तियों और किसानों ने बताया कि गेहूं बेचने के दो हफ्ते होने को आए मगर पैसे नहीं मिले हैं। आम तौर पर 24 से 48 घंटे में पैसे मिल जाया करते थे। संगरूर के आसपास 16 मंडियां हैं। हर जगह यही कहानी है। संगरूर की मंडी के एक आढ़ती ने फोन पर बताया कि 11 तारीख़ की उनकी बोली लगी थी मगर 20 अप्रैल यानी बुधवार तक पेमेंट नहीं मिली है। उन्होंने 200 किसानों से 40,000 गेहूं की बोरियां खरीदी हैं। मंडी बोर्ड को तीन करोड़ का बिल भेज भी दिया है मगर पैसा आया ही नहीं तो किसान को कहां से दें। कई आढ़तियों से बात कर पता चला कि संगरूर की 16 मंडियों में करीब 12 लाख बोरियों पड़ी हैं और उनका पैसा नहीं आया है। किसानों के साथ मंडियों में काम करने वाले मजदूरों को भी पैसे नहीं मिल रहे हैं। नवंबर-दिसंबर के भी इनके पैसे बाकी हैं। एक बोरी उठाने के 1 रुपये 58 पैसे का रेट है। पिछली बार का एक रुपया तो मिल गया है लेकिन हर बोरी पर 58 पैसे के हिसाब से पैसे नहीं मिले हैं। इस कारण गेहूं उठाने आ रही एजेंसियों के प्रदर्शन में सुस्ती दिख रही है। संगरूर में ही करीब चार हज़ार प्रवासी और स्थानीय मज़दूर इससे प्रभावित बताये जा रहे हैं।
कई किसान तो चले गए मगर अब भी बड़ी संख्या में किसान मंडियों में ही डेरा डाले हुए हैं कि पैसा आएगा तो घर जायेंगे। किसानों को भी ट्रैक्टर से लेकर गेहूं काटने की मशीन कार्बाइन का किराया देना होता है। स्कूल की फीस से लेकर राशन का उधार अलग। किसानों को भी बैंकों के किश्त चुकाने होते हैं। एक-एक किसान के तीन से चार लाख रुपये आढ़तियों के पास है और आढ़तियों के करोड़ों रुपये सरकार के पास बकाया हैं।
हमने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गृह ज़िले मुक्तसर की मंडी का भी हाल पता किया। ये गीदड़बाह मंडी है। यहां से सरकार 7 लाख 90 हज़ार बोरियों उठाकर गोदामों में ले गईं फिर भी किसानों को अभी तक भुगतान नहीं हुआ है इसका हिसाब लगाएंगे तो करीब 59 करोड़ के आसपास बैठेगा। 85,000 बोरियां मंडी में ही पड़ी हैं। मुक्तसर में करीब 56 मंडियां हैं। चार बड़ी मंडी है और 52 के करीब छोटी और मझोले किस्म की मंडियां हैं। हर मंडी की कमोबेश यही कहानी है। हज़ारों किसान दो हफ्ते से पैसे का इंतज़ार कर रहे हैं। यहां भी आढ़तियों का कहना है कि सरकार की तरफ से पैसे नहीं आ रहे हैं।
20 अप्रैल के ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में रोहन दुआ ने लिखा है कि पंजाब सरकार ने अभी तक चावल मिलों से 1300 करोड़ रुपये नहीं वसूले हैं। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जालंधर, लुधियाना, संगरूर, मोहाली और फतेहगढ़ सहित कई मीलों से पता चला है कि जो स्टॉक है और उनके बदले बैंकों से जो पैसा लिया गया है उसमें काफी अंतर है। सीएजी के अनुसार मीलों को फायदा पहुंचाने के लिए पैसा तो दे दिया गया मगर माल का पता ही नहीं चल रहा है। पंजाब के किसान संकट में हैं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने तो रिपोर्ट किया है कि अब तो पंजाब में आढ़ती भी आत्महत्या करने लगे हैं। उन 3000 ट्रकों का कैसा पता लगाया जाए। क्या उनका विज्ञापन निकाला जाए, 12000 करोड़ के स्टॉक का हिसाब नहीं मिल रहा है, क्या ये हिसाब किताब का पुराना झमेला है या कोई घोटाला है।
kasba
Comments