राहुल गोरानी।
जी हाँ! सारे कानून कायदे आम लोगों के लिए ही हैं। इनका नेता-अभिनेता पर कोई असर नहीं। भीड़ लगाओंगे तो धारा 144 आपके स्वागत में खड़ी है। शादी करोगे तो सीमित मेहमान बुलाने होंगे और हो सकता है स्थगित भी करना पड़े।
कोई आयोजन करोगे तो दस बार सोचना पड़ेगा, स्कूल फिर से बंद हो सकते है, नाइट कर्फ्यू फिर लग गयाहै, सख्ती दिखने लगी है। शासन-प्रशासन भी कुंभकरणीय नींद से जाग चुका है।
लेकिन यह सभी नियम सिर्फ आम लोगों के लिए हैं। इसके विपरित अगर आपके प्रदेश में चुनाव है तो आप दो लाख से भी ज्यादा लोगों की भीड़ बुला सकते हो तब आपको कोई नहीं रोकेगा।
अपने प्रदेश में उत्सव मनाकर कोरोना का मजाक उड़ा सकते हो तब आपको कोई नहीं रोकेगा।
जगह—जगह राजनैतिक आयोजन कर पार्टी की झांकीबाजी कर सकते हो तब आपको कोई नहीं रोकेगा बिना।
मास्क के गलती से पकड़ा गये तो चालान ठोक दिया जाएगा। लेकिन अगर किसी चुनावी रैली, किसी पार्टी की आमसभा में बिना वस्त्र भी घूमोगे तो कोई कुछ नहीं कहेगा।
मास्क लगाने का ज्ञान भी वो लोग दे रहे हैं जो खुद कभी मास्क नहीं लगाते। नियम और कायदों में आम आदमी की जिंदगी पीस कर रख दी गई है। लेकिन जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई करने वाला कोई नहीं।
किसी सब्जी के ठेले पर चार लोग इक्कठ्ठे हो जाए तो निगम की गाड़ियां रुककर अभद्र भाषा में ज्ञान बांटने लगती हैं। वहीं किसी नेता के यहां पचास लोग भी इक्कठ्ठे हो जाएं तो यही लोग मुंह फेर चुपचाप निकल जाते हैं।
जनप्रतिनिधियों का क्या है वो तो टीवी पर आकर कोरोना के उपलक्ष में बोलवचन कर चले जाते हैं, लेकिन धरातल पर सब शून्य है।
अभी कुछ ही समय पहले कोरोना की दो लहरों का हमने सामना किया है। लगभग हर परिवार ने किसी न किसी अपने को खोया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो कोरोना, डेल्टा के बाद अब ओमिक्रान और डेल्मिक्रान जैसे वैरिएंट हमारे सामने खड़े हैं। कितने खतरनाक हैं कोई स्पष्ट नहीं बता सकता।
लेकिन अगर यह वैरिएंट सच में खतरनाक है तो मामला बहुत गंभीर है और ऐसे समय में जब सर्तकता बरतनी चाहिए तब देश के विभिन्न प्रदेशों में उत्सव एवं चुनावी रैलियों के लिए भीड़ बुलाई जा रही है जो एक चिंता का विषय है।
यह द्विस्तरीय रवैया समझ से परे है। अगर वायरस है तो फिर यह लापरवाही क्यों? और अगर खतरा इतना बड़ी नहीं है तो फिर सख्ती क्यों?
कुछ ही समय बीता है जब लोग अपने काम धंधों पर लौटे हैं जैसे तैसे कर्जों में दबा मध्यमवर्ग अपने आप को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहा है।
उस पर अब फिर एक बार कोरोना की मार और लॉकडाउन जैसे संकट अगर उत्पन्न हुए तो इस बार मध्यमवर्गीय परिवारों का कचूमर निकल जाएगा।
फिर भीड़ बुलाने वाले यही जनप्रतिनिधि दुबके नजर आयेंगे, प्रवासियों के लिए भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। बेचारे यही दिन रात सोच रहे है, कि आगे क्या होगा।
लेकिन कुछ नाकारे जनप्रतिनिधि सिर्फ भीड़ लगाकर अपना वर्चस्व दिखाना चाहते हैं उन्हें कोरोना का भय नहीं।
अगर याद नहीं तो कोरोना की दूसरी लहर को याद करो जब जिंदगी के लिए दर—दर भीख मांगी जा रही थी तब यही जनप्रतिनिधि मुंह छिपाये बैठे हुए थे।
हमने अपनों की जिंदगी आंखों के सामने अपने हाथों से फिसलती देखी थी। लाखों लोगों ने अपनी जिंदगी को खोया है। जिसका हिसाब भी किसी के पास नहीं है।
अगर कोरोना का कहर फिर से आया तो यही भांड मीडिया जनता को ही दोषी ठहरा देगा। मीडिया की भांडगिरी इस हद तक बढ़ गई है कि वे अब सच्चाई दिखाने में कतराने और डरने लगा है।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि आपकी एक लापरवाही आपके और आपके परिवार की जान संकट में डाल सकती है।
इसलिए भीड़भाड़ वाली जगहों एवं राजनीतिक ड्रामेबाजी से दूर रहना ही इस समय सही है। मास्क का भी अनिवार्य रुप से उपयोग करो और सुरक्षित रहो।
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