ममता मल्हार
आज तुम जिन चीजों पर खुश हो रहे हो उन्हीं पर कल सर पीटोगे अपना।
हॉर्स ट्रेडिंग जैसे बीज कांग्रेस के ही बोए हुए हैं।
एक उनका भी वक्त था।
अंधा विरोध और अंधा समर्थन दोनों घातक होते हैं ।
बहुत दिन से कुछ ज्ञान नहीं उपज रहा था।
रात में दो बार 3-3, 4-4 घण्टे के लिये लाईट गई तो थोड़ा सा बोधज्ञान प्राप्त हुआ।
ये जिस तरह एकतरफा निर्विरोध पंचायतें पार्षद चुने जा रहे हैं उससे विपक्ष तो भौंचक नहीं है पर खुद भाजपाई सवाल करने लगे हैं कि ये क्या है?
कार्यकर्ता की नाराजगी का आलम ये है कि सीएम की पोस्ट हो या किसी प्रदेश कार्यालय प्रवक्ता की डाइरेक्ट इनडायरेक्ट वह इशारा कर रहा है कि जमीनी हालात खराब हैं सम्हल जाईये, वरना जमीन देखनी पड़ेगी।
मगर भाजपा ऊंट की तरह मुंह उठाकर चल रही है। तीन-चार दशक से समर्पित कार्यकर्ता हताश हो रहा है।
एक समय यह सब कांग्रेस में देखने को मिलता था, आज भी हो रहा है।
समर्पित कार्यकर्ता वहां भी धूल ही फांक रहा है।
मगर अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा साम-दाम-दण्ड-भेद से भी आगे जाकर सिर्फ खुद छा जाना चाहती है और विपक्ष को खा जाना चाहती है।
जिनने पार्टी से इजाजत के बगैर पर्चे भरे उनके पर्चे जबर्दस्ती वापस करवाये गए।
वे रोते-पीटते घर बैठ गए। जे पी नड्डा कह गए परिवारवाद नहीं चलेगा तो नया रास्ता निकाला गया मंत्रियों के रिश्तेदारों जैसे चाचा ताऊ के नाते पोतों-पोतियों, बहुओं को मैदान में उतार दिया गया।
ठीक है सत्ता में है आप संगठन मजबूत है मगर थोड़ा तो लिहाज रख लीजिए।
जब घर के ही लोग उंगलियां उठाने लगें तो थोड़ी शर्म आ जानी चाहिए और एक बिंदु पर सीमारेखा खींच लेनी चाहिए।
मान लिया ये अटल जी की भाजपा नहीं बची मगर दीनदयाल उपाध्याय को ही याद कर लो।
एकात्म मानवतावादियों।
लोकतंत्र की वाट लग चुकी है।
पर जनता.... गुनगुना नहीं रही गला फाड़कर चिल्लाकर गा रही है, आग लगे हमरी झुपड़िया में हम गावें मल्हार।
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