श्रीकांत सक्सेना।
एक विशाल डाटा है, हुकूमतों के पास, मार्केटिंग कंपनियों के पास, विज्ञापनदाताओं के पास, चुनावी चंपुओं के पास और धार्मिक धुरंधरों के पास भी।
इन सबके डाटा बैंक में,आप सब अलग-अलग पहचानों के साथ मौजूद हैं।
आपका चेहरा,आपकी आंखें,आपकी उंगलियां पर बनी ख़ास धारियां,आपकी ऊंचाई,वज़न,या फिर आपको परेशान कर रही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी।
आपकी क्षेत्रीयता,जाति,धर्म,लिंग,शिक्षा,आमदनी,हैसियत,दारिद्रय,ख़्वाहिशात, ज़िम्मेदारियां,शौक़,सपने,भय,भाषा, दौड़,होड़,दोस्त, दुश्मन,रिश्तेदार, मां-बाप,बच्चे,ख़ानदान, यहां तक कि प्रेमी-प्रेमिकाओं के नाम,उन वायदों की सूची जो आपने नहीं निभाए या फिर जो आपने निभाए।
बैंक में जमा रुपए,शेयर बाजार में लगाया पैसा, क़र्ज़,सभी कुछ 'उनके' डाटा बैंक में मौजूद है।
उन्हें सबके राजनीतिक रुझान और खान-पान की पसंद भी मालूम है।
यहां तक कि बिस्तर में लोगों को क्या-क्या,कैसे-कैसे अच्छा लगता है, इस सबका पूरी तरह विश्लेषित विवरण उनके पास मौजूद है।
आपके सभी संबंधियों, मित्रों, परिचितों, अपरिचितों के बारे में भी इन तमाम जानकारियों को उन्होंने सुरक्षित रखा है।
उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (artificial intelligence)से लैस ऐसे एप्प तैयार कर लिए हैं कि वे यहीं पर नहीं रुकते बल्कि ये भी मालूम कर लेते हैं कि अभी आपका मूड कैसा है।
आने वाले चुनावों में आप किस पार्टी को वोट देने वाले हैं,वगैरह वगैरह।
मामला यहां तक होता तो भी इग्नोर कर देते, हद तो तब हो गई जब उन्होंने ऐसे ऐप्प भी बना लिए जिसके घेरे में चेहरा डालकर वे डाटा की पसंद और प्राथमिकताएं भी तय करने लगते हैं।
यहां तक कि आप किससे दोस्ती करें और किससे दुश्मनी या फिर किस हद तक दुश्मनी, वे एक कमांड से डाटा के चुनावी फ़ैसलों को बदल सकते हैं।
एक तरह से इस ग्रह पर रहने वाला हर इंसान एक डाटा में तब्दील हो चुका है।
डाटा बनने से पहले इंसान जिंदगी भर इसी मुग़ालते में रहता रहा कि साइंस और तकनीक से ज़िन्दगी की जद्दोजहद कम होगी।
लेकिन जब ज़मीन से किसान और कारखानों से मजदूर बेदखल किए गए तो लगा इसका असर डाटा में तब्दील होने से पहले के इंसान पर पड़ा ही नहीं।
जब एटम बम, हाइड्रोजन बम बन गए और अंतरिक्ष में दौड़ शुरू हो गई तो भी लगा कि आखि़रकार इनसे दानवी ताकतों का ही नाश होगा।
सच बताऊं तो उस वक्त तक इंसान को ये भी ख़्याल नहीं रहा कि ये हथियार और तजर्बात इबलीस की औलादों के ही करे-धरे हैं।
इन दिनों रात को ख़्वाबों का एक कारवां मुसलसल चल रहा है।
आठ सौ साल पहले मैग्नाकार्टा पर दस्तख़त करते ग़रीब अंग्रेज शासन का सबसे बेहतरीन ढंग का सपना लोकतंत्र, हाब्स, लाक, रूसो के प्रेत, संयुक्त राष्ट्र में किए गए वायदों और भाषणों की खौफनाक आवाज़ें,
मानवीय गरिमा,निजता, स्वतंत्रता और अवसरों की ख़ूबसूरत और स्वादिष्ट आइसक्रीम जो हर बार पकड़ में आते-आते थोड़ी और दूर होती जाती हैं।
जब कारखाने लगे थे तो मनुष्य 'मास' में तब्दील हुआ था, दूर-दूर तक फैली मजदूर बस्तियों और झुग्गियों में तब मनुष्य नहीं'मासेज' बसते थे, जिनकी जीवन शैली 'मास कल्चर' से परिभाषित होती थी।
वैसे ही जैसे इन दिनों 'डाटा कल्चर' से होने लगी है।
इतने दिनों तक डाटा आपकी जानकारियां जुटाता रहा और आप बाज़ार की रेत में मुंह छुपाकर बाजार से निरपेक्ष होकर,अपने व्यक्तित्व के भ्रम में जीते रहे।
बहरहाल अभी-अभी उनके सुरक्षा ऐप्प ने उन्हें बताया है कि उनके विशाल डाटा बैंक में ऐसे ख़तरनाक़ वायरस ने हमला कर दिया है जो उनके डाटा बैंक में मौजूद डाटा को करप्ट कर रहा है। इससे एक अराजक स्थिति का निर्माण हो गया है।
कुछ लोग तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक सोच लेते हैं, अब ये बात तो उन्हें भी अच्छी तरह मालूम है कि सोचने वाले व्यक्तियों पर कोई कमांड काम नहीं आती,न ही वे कभी सोचने की आदत से बाज़ आते हैं।
बस इसी एक वज़ह से इन दिनों शैतान की संततियां खौफ में हैं।
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