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हरी अमिया के बहाने, तुम्हारा धर्म इतना कमजोर क्यों है? तुम ही मोहरे क्यों ​हो?

खरी-खरी            Apr 18, 2022


ममता यादव।
ये कच्चा बादाम की तरह दिखने वाले नींबू मिले थे फिर ध्यान से देखा ये तो अमिया है। आम के पेड़ के नीचे पड़ी हुईं अमिया का रंग देखकर हम थोड़ा अचकचाए डरे भी, अरे ये तो हरी हैं हरा रंग यानि मुसलमानों का रंग।

फिर खुद को समझाया नहीं-नहीं ये तो कुदरत अरे फिर गलती कर गए प्रकृति का रंग है प्रकृति की देन है। तो हमने अमिया उठाई और चले आये अपने फ्लैटनुमा घर पर।

किचन में गए प्लेटफार्म का रंग भी हरा। मकान मालिक से बोल देंगे इसे बदलवा दें नहीं तो हम मकान बदल देंगे।

खैर अब हरी अमिया तो खा नहीं सकते थे, हमारा कमजोर सा हिंदुत्व भृष्ट हो जाता आखिर में हमने एक ट्रिक अपनाई माताजी के हाथों की।

लालमिर्च हल्दी नमक और थोड़ा सा सरसों तेल डालने से पहले तरीके से अमिया को काटा फिर उसमें उक्त तीनों द्रव्य मिलाकर अच्छे से मिला दिया हां तो अब ये अमिया थोड़ी हिंदुत्व के रंग में रंग गई थी पर प्रकृति ने अपना रंग नहीं छोड़ा।

वो गंगा-जमुनी तहजीब, कौमी एकता टाईप शब्द याद दिलाने लगी। हमारे दिमाग ने कहा अबे चुप करो यार क्या उर्दू के शब्द ले आते हो बार-खैर।

ये जो कौमी एकता के रंग में रंगी अमिया है न जिसे हमने सजाया सँवारा खाने का स्वाद बढ़ा देती है।

आज आपको लग रहा होगा ममता कैसी बातें कर रही लू तो नहीं लग गई पत्रकार महोदया को तो साहब लू भी लगी थी और इन्हीं कम्युनल रंगों से उतरी।

दरअसल मन बहुत खराब हो चुका है सोशल मीडिया पर। एक से एक प्रबुद्ध खुद को बुद्धिजीवी की श्रेणी में रखने वाले ज्ञानियों के असली चेहरे सामने आ गए हैं।

पता नहीं कुछ साफ-सुथरे दिमाग वालों ने नोटिस किया कि नहीं मगर अब पिछले 4-5 दिन से उर्दू के बाद गंगा-जमुनी तहजीब और कौमी एकता जैसे खूबसूरत शब्द टारगेट पर हैं।

हम करना क्या चाह रहे है ? मैंने नोटिस किया कि हनुमान जयंती की शोभा यात्रा पर फूल बरसाते हिंदुओं को शरबत पिलाते वीडियो फ़ोटो के पोस्ट कुछ लोगों को पसंद नहीं आये।

ये लोग दोनों तरफ हैं, दोनों तरफ कुछ लोग हैं जो लगातार किसी न किसी तरह लपेटकर रोज ऐसा कुछ न कुछ लिख रहे हैं, कह रहे हैं कि लोग भड़कें। पर अफसोस उन पोस्ट पर चार लाइक दो कमेंट भी नहीं आते।

पता है क्यों? क्योंकि नफरत से बड़ा और ऊंचा हमेशा प्रेम रहा है, रहेगा।

प्रकृति भेदभाव नहीं कर रही तुम लोग कौन हो यार?

अभी एक साल भी नहीं हुआ फेसबुक पिछले साल की मेमोरी दिखा रहा है। कितने लोग मर गए थे, सड़कों पर भटक रहे थे, तब सबने एक-दूसरे के लिये दिल-दिमाग कैसे खोल दिये थे?

तब ये नेता नहीं थे सड़कों पर, तुम थे इसी सोशल मीडिया से सड़क तक। अपनों—परायों के लिये मदद मांगते, मदद करते गिड़गिड़ाते।

मुस्लिमों ने किया हिंदुओं का अंतिम संस्कार, हिंदुओं ने की मुस्लिम की मदद, कहाँ गईं वो भावनाएं वो जज्बा!

पहले जो हुआ सो हुआ पर कभी तुम दोनों कौम के लोगों ने कभी खुद से ये सवाल पूछा है कि तुम दोनों ही इतने आसान मोहरे क्यों हो?

क्यों दो-चार साल सब भूलकर साथ रहने के बाद अचानक चुनावी माहौल के असारों के साथ तुम्हारा धर्म खतरे में पड़ने लगता है?

इस देश में ईसाई और सिख भी रहते हैं पारसी भी रहते हैं दूसरे और भी रहते हैं तुम्हीं दोनों इतनी फुरसत में क्यों हो?

क्यों गधों से भी गए बीते हो गए हो? किसी बड़े लेखक की ये लाईन है हिंदु मुसलमान गधे हो सकते हैं गधे हिंदू मुसलमान नहीं हो सकते।

अंग्रेज जो बोकर गए थे वो यह देश आजतक काट रहा है पर अंग्रेज तो बाहरी थे न? अब कौन है जो तुम्हें अपनी उंगलियों पर नचा रहा है? बुद्धियाँ क्या बक्शे में बन्द करके रख दी हैं?

पेड लोग बैठा दिए गए हैं जहर फैलाने के लिये और तुम उस जहर को चाटकर थूंकककर फैलाने के टूल बन रहे हो।

ये पोस्ट लिखते समय कहीं डीजे चालू हो गया है।

मेरा एक सवाल क्या तुम्हारा धर्म वाकई इतना कमजोर है? दरअसल धर्म कमजोर नहीं है तुम्हारी सोच तुम्हारी बुद्धि तुम्हारी नियत और तुम्हारा ईमान कमजोर है।

ये किस तरह का धर्म है तुम्हारा? जरा-जरा सी बात में खतरे में आ जा रहा है?

कोई खुश है किसी के घर जला दिए गए, तो कोई खुश है किसी के घर तोड़ दिए गए।

इस सबमें तुम्हें क्या मिला?

अगर वाकई इतने ही खुश हो तो जो करो मदद कम से कम उनकी जो तुम्हारे ही धर्म के हैं।

पर नहीं तुमको सोशल मीडिया पर फैलते जहर में डूबकर आत्मरति में लीन रहना है।

सम्हल जाओ, समझ जाओ, मूल मुद्दों की तरफ लौटो।

क्या दे रहे बच्चों को? ये समाज, ये सोच, इतना कमजोर धर्म!

मेरा सनातन मुझे बहुत मजबूत बनाये रखता है भीतर से शक्ति और ये प्रेरणा देता है मुझे कि जब तक मैं नहीं डगमगाऊँगी मेरे धर्म से मुझे कोई डिगा नहीं सकता।

नफरत लालच प्रभु इश्यू वालों का प्रेम कुछ नहीं।

मुझे अपने देश से प्रेम है मगर देशवासी दुखी करते हैं फिर भी उम्मीद है कभी तो धुंधलका छंटेगा।

जय हिंद! जय भारत! वंदे मातरम!

 



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