राकेश दुबे।
हाल ही में सम्पन्न गुजरात और हिमाचल के विधान सभा चुनाव के बहुत से विश्लेष्ण आ चुके हैं।
दोनों राज्यों के परिणाम भाजपा और कांग्रेस के लिए सबक हैं। मतदाताओं ने दोनों बड़े और प्रमुख दलों को आईना दिखा दिया है।
गुजरात की हार कांग्रेस के सफ़ाये का संकेत कर रही है, तो हिमाचल के नतीजे इस बात के साफ़ संकेत है कि वहां भाजपा के आकलन में चूक हुई है।
उपचुनावों के नतीजे भी चौंकाने वाले रहे हैं , मतदाता सजग हुआ है,इसके संकेत साफ मिले हैं।
पहले गुजरात - जिस राज्य में कांग्रेस भाजपा के समानांतर खड़ी हुआ करती थी, और जिसने 1995 के पूर्व लंबे समय तक वहां राज किया, वहां पर कांग्रेस की यह स्थिति चिंतनीय हो गई है।
वैसे गुजरात में कोई क्षेत्रीय दल नहीं है, वहां लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस ही होती आई है, वहां कांग्रेस इस दुर्गति को पहुंची कैसे?
एक तरफ़ राहुल गांधी की पद यात्रा तो दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कांग्रेस मुक्त देश करने की योजना।
जो स्थितियां बनी हैं, उनसे यही लगता है कि नरेंद्र मोदी का प्रण अधिक ठोस था जबकि, राहुल गांधी की पद यात्रा कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई ।
देश की जनता सदैव सरकार के विरोध में खड़ी होती रही है, मगर इस बार तो कांग्रेस का गुजरात में ऐसा सूपड़ा साफ़ हुआ, कि अब लगता नहीं कि कांग्रेस भविष्य में कभी गुजरात में उसी मज़बूती के साथ खड़ी हो पाएगी।
राहुल गांधी को अपनी सलाहकार मंडली पर नज़र डालनी चाहिए, वे हमलावर तो प्रचंड होते हैं किंतु ज़मीन पर साफ़ हैं।
ग्रुप-23 के नेताओं ने बहुत पहले श्रीमती सोनिया गांधी को सचेत किया था, लेकिन कांग्रेस में पैठ बनाए अतिवादी नेताओं ने उनकी चेतावनी पर गौर न करने की सलाह दी।
नतीजा यह है, कि कांग्रेस में आज व्यक्तिगत हमले करने वाले नेता तो बहुत हैं, लेकिन न कोई जनता को संबोधित करने में सक्षम है न ही उनमें मोदी को काउंटर करने की क्षमता है।
वे सरकार और जनता पर भी हमले करते हैं। बहुसंख्यक जनता को अपने हमलों से आहत करते हैं। इन काउंटर हमले से तो भाजपा और भी मज़बूत हुई।
आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल गुजरात और हिमाचल को लेकर अति उत्साहित थे।
पिछले दो वर्षों से वे हिमाचल और गुजरात में भाजपा की घेरेबंदी कर रहे थे लेकिन, इस पार्टी का हिमाचल में तो सफ़ाया हो गया, और गुजरात में उसे मात्र 5 सीटों से संतोष करना पड़ा।
अलबत्ता गुजरात में उसने 13 प्रतिशत वोट लेकर कांग्रेस के वोट ज़रूर खींच लिए।
इस तरह गुजरात में आम आदमी पार्टी भाजपा के लिए सहायक बनी और हिमाचल में कांग्रेस के लिए। “वोटकटवा” पार्टी का तमग़ा ज़रूर लग गया।
कांग्रेस ने हिमाचल की कुल 68 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें लेकर बहुमत साबित कर दिया।
कांग्रेस की कमान यहां प्रियंका गांधी ने खुद संभाली हुई थी तथा पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह भी खूब सक्रिय रहीं।
इसके अतिरिक्त पार्टी के बड़बोले नेता गुजरात में रहे और हिमाचल वे लोग आए जो अपेक्षाकृत नरम और संजीदा समझे जाते हैं।
यहां कांग्रेस ने अपनी रणनीति भी बहुत चातुर्य के साथ बनाई थी, यहां कांग्रेस व्यक्तिगत हमले करने से बचती रही और सफ़ाई के साथ वह भाजपा की कमियों को उजागर करती रही।
कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ऐसे ही नेताओं में हैं, यही हिमाचल में उसकी सफलता का राज रहा।
हिमाचल में भाजपा की अंतर्कलह के चलते भी यहां भाजपा के बाग़ियों ने खेल बिगाड़ दिया।
इस प्रांत से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हैं और सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी।
इसके अतिरिक्त यहां भाजपा के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गुट भी था और इस गुटबाज़ी को मैनेज करने में भाजपा का स्थानीय नेतृत्व विफल रहा।
इसी कारण तमाम सीटों पर भाजपा एक हज़ार से कम वोटों से हारी।
जीतने वालों में कई विधायक भाजपा के ही बाग़ी भी हैं, इन दोनों राज्यों के साथ ही जो उपचुनाव हुए, उनके नतीजे भी चौंकाने वाले रहे हैं।
मतदाता सजग हुआ है,इसके संकेत साफ मिले हैं
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