नवीन रंगियाल।
सेवा और रोजगार दो अलग अलग चीजें हैं। जाहिर है, जहां कमाना आपका मकसद है, वहां आप सेवा करते हुए मरना नहीं चाहेगे।
वहीं, जहां सेवा होगी, वहां धन का अभाव होगा ही।
धन कमाना और देश के लिए सीने पर गोली खाना. दोनों चीजें अलग-अलग हैं।
ठीक वैसे ही जैसे योग और भोग दो अलग चीजें हैं, दोनों एक साथ नहीं हो सकते।
यहां संतुलन भी किसी काम नहीं आता। क्योंकि सेवा और योग दोनों ही रोजगार का विषय नहीं है।
अगर आपको धन कमाना है तो आप एमबीए कर आईआईएम में जाएं, बैंक पीओ बनें मेडिकल करें। आईटी सेक्टर में जाइए. विदेशी विश्वविद्यालयों में एडमिशन लीजिए।
विकल्प आपके हाथ में है और यह ‘प्राथमिकता’ की बात है। प्राथमिकता किसी दूसरे की चीज नहीं होती, यह आपके ही चरित्र का हिस्सा है. दुनिया अच्छी और बुरी चीजों से भरी पडी है, ऐसे में प्राथमिकता ही वो तत्व है, जो दोनों में किसी एक को चुनने में आपकी मदद करती है.
और यह बात मैं तब कह रहा हूं- जब व्यक्तिगत तौर पर मैं ‘अग्निपथ योजना’ का बिल्कुल पक्षधर नहीं हूं।
इसमें कई लूपहोल्स हैं, विसंगतियां हैं। किंतु मेरे इस पूरे क्षोभ, इस व्याकुलता के केंद्र में आग में भभककर जलती हुईं ट्रेनें हैं, स्कूल बसों में भय से सहमे हुए बच्चे हैं, रेलों के कंपार्टमेंट में डरे- सहमे यात्री हैं।
इस व्याकुलता के केंद्र में पिछले तीन दिनों से भभककर जल रहा राष्ट्र है।
आपको कोई हक नहीं है कि आप राष्ट्र से संबद्ध एक तिनके को भी आग लगाएं।
ऐसी किसी संपत्ति को नष्ट करने का कतई हक नहीं है, जिसे बनाने और स्थापित करने में आपका धेले भर का भी योगदान नहीं है।
आप अपने दुपहिया वाहन का सबसे घिसा हुआ टायर भी घर लेकर चले आते हैं यह सोचकर कि वो किसी काम आएगा।
वहीं, अपने अधिकारों के लिए आप तमाम बसें और रेलगाड़ियां जला देते हैं।
आपको लगता है कि टायर आपका है और रेलगाड़ियां और बसें आपकी नहीं है।
अगर यह सब सही है तो इससे निपटने के लिए ‘बुल्डोजर संस्कृति’ भी गलत नहीं है।
इसलिए तय कीजिए प्राथमिकता से, ये आतंक आप क्यों और किस के लिए मचा रहे हैं?
नोट : ‘अग्निपथ योजना’ के खिलाफ आपके लिखित और मौखिक सारे तर्क सही हैं, इस उपद्रव को छोड़कर.
#औघटघाट
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