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धर्म या ग्रंथ का नहीं भारतीय संस्कृति और इतिहास का अपमान

खरी-खरी            Feb 02, 2023


राकेश दुबे।

संसार के सबसे सहिष्णु माने जाने वाले हिंदुओं की आस्थाओं पर चोट का जो सिलसिला चला है वह वायरस की तरह फैलता जा रहा है।

भारत में कांग्रेस और द्रमुक के नेताओं ने तो राम को काल्पनिक सिद्ध करने का असफल अभियान चलाया, और अब राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी के नेता रामचरितमानस के खिलाफ अनर्गल बातें कह रहे हैं, इससे भी मन नहीं भरा तो रामचरितमानस की प्रतियां ही फाड़ दीं।

दूसरी ओर, पाकिस्तान में मंदिरों और हिंदुओं के साथ किस तरह का अत्याचार किया जाता है यह किसी से छिपा नहीं है।

जरा दूर चलें तो देखने को मिलता है कि पिछले वर्ष सितंबर में ब्रिटेन में हिंदू मंदिरों पर हमले किये गये, इस साल ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में जनवरी में ही 15 दिनों के अंदर तीन हिंदू मंदिरों पर हमला हुआ, अब कनाडा के ब्रैम्पटन में प्रसिद्ध गौरी शंकर मंदिर में तोड़फोड़ की गयी और भारत के प्रति नफरत भरे संदेश लिखे गये।

यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदू आस्था पर चोट करने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और दुनिया खामोश है।

कहां है वह संयुक्त राष्ट्र जोकि किसी देश में मस्जिद या चर्च पर हमला होने पर उस देश को सुझाव देने की झड़ी लगा देता है, कहां है अमेरिका की सरकार जो हर साल रिपोर्ट जारी कर बताती है कि किस देश में कितनी धार्मिक स्वतंत्रता है?

 कहां हैं वह मानवाधिकार संस्थाएं और कार्यकर्ता जोकि किसी अन्य धर्म स्थल, धर्म ग्रंथ या धर्म के प्रतीक के खिलाफ कही गयी एक भी बात या अपमान की किसी भी घटना पर आंदोलन खड़ा कर देते हैं?

किसी को ब्रिटेन में, आस्ट्रेलिया में, पाकिस्तान में, कनाडा में मंदिरों पर हो रहे हमले क्यों नहीं दिखाई देते?

हिंदुओं के आराध्य देवी देवताओं की मूर्तियों को नुकसान पहुँचने पर किसी का दिल क्यों नहीं पसीजता?

ऐसे लोगों को समझना होगा कि वे इतिहास को ही भविष्य मान कर बड़ी भूल कर रहे हैं। इतिहास में भले आक्रांताओं द्वारा हिंदू मंदिरों को जीर्ण-शीर्ण करने की घटनाएं भरी पड़ी हों, लेकिन भूतकाल में जिन धर्म स्थलों को अपवित्र किया गया है उनकी पुनर्स्थापना का जो अभियान चल पड़ा है वह भारत  तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि शनैः-शनैः वैश्विक रूप लेगा।

 जो लोग हिंदू और हिंदुत्व की नई-नई परिभाषा गढ़ रहे हैं या हिंदुओं के खिलाफ नकारात्मक बातें फैला रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि हर भारतीय का डीएनए एक ही है और हर भारतीय स्वभाव से हिंदू ही है।

आज भले ही कुछ भी नाम हो, उसके पुरखों के नाम भारतीय नायक या देवी देवता के मिलते हैं। मध्यप्रदेश के एक पूर्व राज्यपाल कुंवर महमूद अली ने तो सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार किया था, आज भी कई पढ़े लिखे लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे भारतीय हैं।

वैसे एक बात सभी को समझने की जरूरत है कि हिंदू शब्द धार्मिक नहीं अपितु भौगोलिक है इसलिए जो भी व्यक्ति भारत में पैदा हुआ है वह हिंदू ही है।

उसकी  वर्तमान पूजा पद्धति  अलग हो सकती है लेकिन उसके पूर्वज हिंदू ही थे जिन्होंने बाद में जबरन या प्रलोभनवश मतांतरण किया।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब सनातन धर्म को राष्ट्रीय धर्म बताया तो उनके बयान पर विवाद खड़ा करने का प्रयास किया गया जबकि उन्होंने कोई नयी या अलग बात नहीं कही ।

योगी आदित्यनाथ ने जो कुछ कहा उसका आधार धार्मिक नहीं बल्कि भौगोलिक ही था।

साथ ही सनातन धर्म को राष्ट्रीय धर्म बताने को जो लोग भारत के संविधान का अपमान बता रहे हैं वह दरअसल गलत व्याख्या कर रहे हैं। भारत का संविधान सर्वोच्च है और उसे किसी एक धर्म से ना ही जोड़ें तो बेहतर है।

सभी को यह समझने की जरूरत है कि सिंधु नदी के इस पार रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है और भले आज वह किसी भी मत का पालन करता हो लेकिन कभी ना कभी वह सनातनी ही रहा है।

इसलिए सनातन धर्म यहां का राष्ट्रीय धर्म आज से नहीं बल्कि आरम्भकाल से ही है। वेद और पुराणों का इतिहास दुनिया के बाकी धर्म ग्रंथों से भी सैंकड़ों वर्ष पुराना है।

इसके अलावा वेद, उपनिषद्, दर्शन ग्रंथ, पुराण ग्रंथ, यहां तक कि रामायण और महाभारत में भी हिंदू शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है।

इसका मतलब यह है कि यह सिर्फ एक मत के अनुयायियों के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए जीवन दर्शन देने वाले महान ग्रंथ हैं।

इसलिए जो भी इनका अपमान करता है वह किसी धर्म का नहीं बल्कि भारत की संस्कृति और इतिहास का अपमान करता है।

 



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