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सारा खेल लग्जरी, कम्फर्ट और प्राइवेसी का है

खरी-खरी            Jan 02, 2023


अमन आकाश।

एक ही ट्रेन के तीन दर्जे जनरल, स्लीपर और एसी। मंज़िल तक पहुँचाने का समय तीनों का एक ही है। पर टिकट की कीमतों में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ क्यों?

कभी सोचा है आपने? बिल्कुल सोचा होगा। महसूस भी किया होगा।

फर्स्ट एसी लग्जरी, कम्फर्ट के साथ आपको प्राइवेसी भी देती है,  कीमत उच्चतम।

सेकंड एसी में अपेक्षाकृत कम लग्जरी और कम प्राइवेसी,  कीमत थोड़ी सी कम।

थर्ड एसी में कम्फर्ट तो है पर प्राइवेसी बिल्कुल नहीं, कीमत फिर से कम।

आईए स्लीपर में।

लग्जरी और प्राइवेसी तो दूर की बात, ठंड-गर्मी बढ़ जाए तो कम्फर्ट भी गायब।

अब चलते हैं जनरल की ओर। आसपास इतने लोगों की भीड़ ना लग्जरी, ना प्राइवेसी, ना कम्फर्ट, एक सीट पर तीन लोगों का दवाब, 80 की बजाए 150 आदमी की धक्कम-धुक्कम।

ना अपनी मर्ज़ी से टॉयलेट जा सकते हैं, सीट छोड़ दिए तो तुरत कोई दावा पेश कर देगा। मंज़िल पर आप एसी वालों के समय पर ही पहुंचेंगे पर धक्कम-फजीहत से हालत इतनी खस्ता हो जाएगी कि दूसरी बार यात्रा करते आत्मा कांपे,  कीमत न्यूनतम।

सारा खेल लग्जरी, कम्फर्ट और प्राइवेसी का है, असल जिंदगी में भी यही चाहिए।

एक मध्यमवर्गीय परिवार की ज़िंदगी भी जनरल बोगी की यात्रा जैसी होती है।

लोग, जाति, समाज के नाम पर आसपास इतनी भीड़ है और ज्यादातर परेशान ही करने वाली।

सहयोग की अपेक्षा एकदम कम,  जहां तक हो सके लोग आपके सीट को हथियाने के चक्कर में।

जीवन भर अपनी मर्ज़ी से ना कुछ बोल पाए ना कुछ कर पाए।

ताउम्र इसी इंतज़ार में सफर कट गया कि बगल वाला अगले स्टेशन पर उतरेगा और हम अपनी कमर सीधी कर लेंगे।

कहाँ लग्जरी, कहाँ कम्फर्ट!

और तो और मध्यमवर्गीय आदमी विवशतापूर्वक इतना सार्वजनिक और सर्वसुलभ हो जाता है कि प्राइवेसी की तो बात ही खत्म।

यकीन मानिए कि प्राइवेसी आज बहुत बड़ी ज़रूरत है।

मंज़िल सबकी एक ही है, पहुँचना एक ही जगह है,  या तो राख, नहीं तो ख़ाक।

एक तबका पूरी लग्जरी, पूरे कम्फर्ट और पूरी प्राइवेसी के साथ पहुँचता है वहीं दूसरी बड़ी आबादी ज़िंदगी भर जिल्लतें झेलता, धक्का-मुक्की खाता, धूल फांकता।

यह ज़िंदगी भी ट्रेन की यात्रा है। अलग-अलग लोग, अलग-अलग बोगी।

सबकी अपनी सुविधाएं, सबकी अपनी कीमतें।

मेहनत कीजिए, ज्ञान हासिल कीजिए, अपनी कीमत बढ़ाइए, अपना वर्ग बदलिए।

जनरल बोगी की तरह जब जीवन की यात्रा पूरी होगी तो अगला जन्म लेने में आत्मा सौ बार सोचेगी।

लोग, जाति, समाज का क्या है, जहां इनका स्टेशन आएगा ये उतरते जाएंगे। कोई आपका कुशल-क्षेम भी नहीं लेगा..

 

 



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