कौशल सिखौला।
जब सुंदरलाल बहुगुणा जमाने को चीख चीखकर बता रहे थे कि बड़े बड़े बांधों को बनाकर पहाड़ों का सीना छलनी मत करो, तब लोग उनका उपहास उड़ा रहे थे।
टीएचडीसी वाले तमाम दुनिया से मीडिया को टिहरी लाकर गंगा पर बन रहा बांध दिखाकर बहुगुणा की सोच को दकियानूसी करार दे रहे थे।
टूटता दरकता जोशीमठ पहाड़ों के बेदर्दी से दोहन की दास्तान स्वयं बता रहा है।
अब पता चलता है कि पहाड़ दर पहाड़ सीधी सादी औरतें वृक्षों से क्यूं लिपट रही थीं , चिपको आंदोलन ने संसार को क्यों हिला दिया था।
ऐसे ही चीला से आगे यमकेश्वर में करीब तीस साल पहले ताल घाटी जब अचानक ऊपर उठने लगी थी, तब दुनिया हैरान हुई, पर कारणों का पता नहीं लग पाया।
हरिद्वार में मनसा देवी पर्वत माला कईं बार खिसकी , रेलवे यातायात ठप्प किया।
भारी खनन और अनियंत्रित जल विद्युत योजनाओं ने पहाड़ों को खोखला कर दिया है।
पहाड़ों में सैकड़ों सुरंगें बनाना , चौड़ी सड़कें बनाना और रेलगाड़ियां ले जाना कितना खतरनाक है, जोशीमठ बता रहा है।
ज्योतिर्मठ वह नगर है जिसे आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज ने स्वयं अपने हाथों से बसाया था।
बाद में अपभ्रंश होते हुए जोशीमठ कहा जाने लगा।
आज दरक रहा है, हजारों परिवारों को घर छोड़कर जाना पड़ रहा है, वह भी भयावह ठंड के इस मौसम में।
जगद्गुरु द्वारा अपने हाथों से चार दिशाओं में चार धामों की स्थापना की गई, बद्रिकाश्रम उनमें सबसे ऊंचाई पर हैं।
आद्य शंकराचार्य की वह तपोभूमि इतनी बेतरतीब फैलती गई कि अब दरक रही है।
इसी बेदर्द विकास के कारण कितने नगर अभी फिसलेंगे, कितने चरमराएंगे और टिहरी की तरह कितने लुप्त हो जाएंगे यह सब अभी समय के गर्भ में छिपा हुआ है।
बात सिर्फ जोशीमठ या उत्तराखंड की नहीं , तमाम पर्वतीय राज्यों की है।
हिमाचल प्रदेश , जम्मू कश्मीर , लेह लद्दाख और पूर्वांचल के राज्यों में बेतहाशा निर्माण जारी है।
अच्छा हो यदि सरकार पहाड़ों के विकास की बहुत सोची समझी रणनीति बनाए । अनियोजित विकास किसी भी शहर को जोशीमठ बना सकता है।
अफसोस की बात है कि निरंतर उपेक्षा के चलते पर्वतीय क्षेत्रों से पर्यावरण चिंतक अब गायब हो गए हैं।
जब उनकी कोई सुनता ही नहीं तो पैदा भी क्यों हों?
पहाड़ इन मैदानों को ऑक्सीजन देते हैं] इन्हें बचाइए वरना बड़े बड़े महानगरों में रहते हुए हम और आप भी नहीं बच पाएंगे ।
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