राकेश दुबे।
तीन दिन पहले जब मैंने “प्रतिदिन” में यह लिखा था कि कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा, मेरे मित्र और मध्यप्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने मुझे उलाहना देते हुए कहा था “आप कांग्रेस को समझते नहीं हैं”।
गुलाम नबी आज़ाद के इस्तीफे और उसकी बुनावट के बाद यह साबित हो गया कि आधी शताब्दी गुजारने के बाद भी बहुत से लोग आज की कांग्रेस को नहीं समझते या समझना नहीं चाहते।
कांग्रेस की कार्य शैली कभी राकेट साईंस की तरह जटिल रही होगी अब वह दीवार पर लिखी इबारत है, जिसे मेरे मित्र जैसे लोग पढना नहीं चाहते।
वैसे भाजपा भी इसी ओर बढ़ रही है,क्योंकि उसके सामने कांग्रेस का उदाहरण है और उसका वो जज्बा व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा राष्ट्र समाप्त हो चुका है।
कांग्रेस जहाँ एक परिवार की परिक्रमा में व्यस्त है तो भाजपा दो व्यक्तियों के इर्द-गिर्द।
कांग्रेस की कलई गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी जो अब सार्वजनिक हो गई है ने खोल दी है|इसमें राहुल गाँधी को लेकर नाराजी जताई गई है।
गुलाम नबी लिखते हैं “राहुल अपने आस-पास अनुभवहीन लोगों को रखे हुए हैं और वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन कर दिया है।
यह चेतावनी पहले भी कई लोग दे चुके थे, कांग्रेस ने या यूँ कहें वर्तमान गाँधी कहे जाने वाले परिवार ने समझने की कोशिश नहीं की या उन्हें उसके कोई और अर्थ समझा दिए गए। राजनीति और निरंतर प्रभाव खोते राजनीतिक दल के लिए यह न तो तब ठीक था और न अब।
राहुल गांधी पर पहले भी पार्ट टाइम पॉलिटिशियन होने के आरोप लगते रहे हैं।
गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखा कि कांग्रेस ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस चलाने वाली राष्ट्रीय कार्यसमिति ने इच्छाशक्ति और क्षमता खो दी है।
आजाद ने लिखा है कि 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू करने से पहले पार्टी नेतृत्व को 'कांग्रेस जोड़ो यात्रा' करनी चाहिए थी।
यह जरूरी कदम होता, पर इससे उस मण्डली और लोगों को खतरा है जो कांग्रेस को मुठ्ठी में करना चाहते है।
गुलाम नबी आज़ाद का यह भी आरोप है कि कांग्रेस ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस चलाने वाली राष्ट्रीय कार्यसमिति ने इच्छाशक्ति और क्षमता खो दी है।
इसमें दम दिखता है, जी-23 की चिठ्टी की उपेक्षा यही सब तो था।
दम तो इस बात में भी है कि “दुर्भाग्य से राहुल गांधी के राजनीति में आने के बाद जब उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था, उन्होंने कांग्रेस के कार्य करने के तौर-तरीकों को खत्म कर दिया|उन्होंने संपूर्ण सलाहकार तंत्र को ध्वस्त कर दिया।”
राहुल का प्रधानमंत्री द्वारा जारी किया गया अध्यादेश फाड़ना उनकी अपरिवक्ता दिखाता है।
काग्रेस 2014 में क्यों भारी अंतर से हारी किसी से छिपा नहीं है।
आश्चर्य, तब कांग्रेस से आज बाहर आये लोग चुप क्यों रहे ? यह एक बड़ा सवाल है।
गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव न कराने को लेकर भी गांधी परिवार पर निशाना साधा है।
उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि संगठन में किसी भी स्तर पर कहीं भी चुनाव नहीं हुआ। इसमें कोई नई बात नहीं है , आज यह बात कहने वाले आज़ाद भी ऐसे कई मनोनयन या हुकुम बजाने में शामिल रहे हैं ।
यह सही है जी-23 के नेताओं ने कांग्रेस की कमजोरियां बताई तो उन सभी नेताओं को अपमानित किया गया।
आजाद ने लिखा राहुल के आने से चर्चा की परंपरा खत्म हो गई, यह तो देश की इस पार्टी में पहले ही समाप्त थी।
यह बात सही है और सब जानते हैं कि 2019 की हार के बाद पार्टी की हालत और बदतर हो गई।
वास्तव में आज कांग्रेस रिमोट कंट्रोल मॉडल से चल रही है, पार्टी के फैसले पीए और सुरक्षाकर्मी ले रहे हैं।
काग्रेस की इस दरकती इमारत से कुछ और स्तम्भ भी ढहने की कगार पर है।
सौ साल पुरानी पार्टी का यह हश्र होगा, किसी ने सोचा नहीं था |
यहाँ एक सबक उन लोगों के लिए भी है, जो अपनी पार्टी को कांग्रेस की तर्ज पर चलाना चाहते हैं।
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