राकेश दुबे।
तकनीक के विस्तार ने जहाँ साइबर सुविधा का विस्तार किया है, वहीँ सुरक्षा की जटिल समस्या को भी जन्म दिया है।
यह एक ऐसा जटिल मसला है, जिसका विविध क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव होता है।
इस कारण बहुआयामी, बहुस्तरीय पहल और प्रतिक्रियाओं की जरूरत महसूस होने लगी है, ख़ास कर भारत में।
भौगोलिक दायरे से परे इस समस्या ने सरकारों के सामने बेहिसाब चुनौतियां भी पेश की हैं। मालवेयर, फिशिंग हमले, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर लक्षित हमला, डेटा चोरी, ऑनलाइन धोखाधड़ी और चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे वर्चुअल दुनिया के अपराध लगातार बढ़ रहे हैं।
अकेले भारत में करीब 80 करोड़ लोगों की ऑनलाइन मौजूदगी है, 2025 तक यह तादाद 40 करोड़ और बढ़ जायेगी।
इससे साइबर निगरानी और सुरक्षा की अहमियत को समझा जा सकता है।
गृह मंत्रालय द्वारा साइबर सुरक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस में गृहमंत्री ने इन दोनों के बीच की कड़ी को रेखांकित किया।
भारत सिर्फ चिंता कर रहा है जबकि कुछ देशों ने बकायदा साइबर आर्मी तैयार कर ली है।
गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा (सीआईएस) अनुभाग के तहत साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (आई फार सी ) की व्यवस्था बनायी गयी है।
इसमें राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, राष्ट्रीय साइबर खतरा विश्लेषण इकाई, राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला, संयुक्त साइबर अपराध कोऑर्डिनेशन टीम, राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र, राष्ट्रीय साइबर अपराध शोध एवं नवाचार केंद्र तथा राष्ट्रीय साइबर अपराध इको-सिस्टम और प्रबंधन इकाई जैसे घटक हैं।
इनकी समाज में अभी महत्वपूर्ण पहचान नहीं बनी है।
डेटा और सूचना का व्यापक आर्थिक महत्व भी है और यह निरंतर बढ़ भी रहा है।
ऐसे में इसकी विविध स्तरों पर साइबर सुरक्षा को लेकर तैयारी भी आवश्यक है।
वर्ष 2012 में साइबर अपराध के 3377 मामले सामने आये थे, 2020 में यह आंकड़ा 50 हजार को पार कर गया।
राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल की शुरुआत के तीन वर्षों में दो लाख सोशल मीडिया अपराध शिकायतों के साथ साइबर अपराध के 11 लाख मामले सामने आये हैं।
इस बढ़त के कारण स्पष्ट हैं,पिछले आठ वर्षों में इंटरनेट कनेक्शन 231 प्रतिशत बढ़ा है, तो प्रति जीबी डेटा लागत भी 96 प्रतिशत तक कम हुई है।
इस बढ़त के बीच साइबर धोखाधड़ी और अपराधों का बढ़ना भी स्वाभाविक है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, २०२१ में साइबर अपराधों से दुनियाभर में छह ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
इसी अनुपात में निजी फर्म, सरकारी सेवाएं, विशेषकर महत्वपूर्ण उपयोगिताओं वाली सेवाओं पर साइबर हमले और सेंधमारी का जोखिम निरंतर बढ़ रहा है।
आज भारत के सामान्य लोगों में साइबर सुरक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है।
डिजिटल प्लेटफाॅर्मों के ऐसे अपराधों की चपेट में आने से उपभोक्ताओं का विश्वास तो टूटता ही है, साथ ही कैशलेस अर्थव्यवस्था बनने की राह में भी यह एक बड़ा अवरोधक है।
दूसरी ओर, ऑनलाइन अतिवाद की भी चुनौती है, क्योंकि, कट्टरपंथी और आतंकी भौगोलिक सीमाओं से बाहर भी अपनी हरकतों को अंजाम देने में सक्षम हो रहे हैं।
सरकार को फ़ौरन महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को पुख्ता करने हेतु सुरक्षा सूचकांक जैसा तंत्र बनाना होगा, ताकि सुरक्षा तैयारियों का सही और सटीक आकलन हो सके।अब इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखने की भी जरूरत है, तभी व्यापक स्तर पर लोगों की सुरक्षा और निजता की रक्षा हो सकेगी।
यदि यह सब जल्दी नहीं किया गया तो भारत को गंभीर नुकसान देखना होंगे।
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