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सारे नामधारी चाहें तो अब आंसू बहा सकते हैं और सरकार भी

खरी-खरी            Feb 25, 2023


कीर्ति राणा।

शिक्षा जगत से जुड़े संगठनों के सारे नामधारियों को अभी दो दिन पहले ही तो शहर ने हंसते हुए देखा है।

ये सारे नामधारी चाहें तो अब आंसू बहा सकते हैं लेकिन वे सच में रोएं भी तो उनके आंसुओं पर मगरमच्छ की याद ही आएगी।

इनके साथ आंसू तो सरकार को भी बहाना चाहिए लचर व्यवस्था को लेकर, इंदौर ही नहीं संपूर्ण शिक्षा जगत के लिए तो प्राचार्या विमुक्ता शर्मा की मौत बलिदान से कम नहीं है।

प्राचार्या की मौत नहीं होती यदि चार महीने पहले हुई घटनाओं के दोषी-आरोपी छात्र पर कार्रवाई की औपचारिकता निभाने वाली पुलिस ने तब सख्ती दिखाई होती।

आपराधिक प्रवृत्ति वाले छात्र पर सख्ती ना दिखाना ही उसके दुस्साहस का कारण बना है। एक एएसआई पर कार्रवाई कर के बड़े अधिकारियों ने तो खुद को सुरक्षित कर लिया है।

शर्म आती है ऐसे बाप पर भी जो पहले दिन से ही अपने हत्यारे पुत्र की पैरवी करता रहा, ऐसी बेवकूफी तो कोई बेपढ़ा-लिखा भी नहीं करता।

इस वीभत्स घटना से फिर साबित हुआ है कि चाहे शहर की पुलिस हो या ग्रामीण थानों की लापरवाही के मामले में कोई कम नहीं है।

चार महीने पहले हुई वारदात में छात्र को ठीक से सबक सिखाया होता तो उसके परिजनों को भी अकल आ जाती।

अब बुलडोजर चलाने की कार्रवाई की जाएगी, बेहतर होगा कि सरकार ऐसा बुलडोजर कुर्सी तोड़ रहे उन अधिकारियों पर भी चलाए जो घूम फिर कर इंदौर आने की जुगाड़ में जमें रहते हैं। 

प्राचार्या विमुक्ता की इस ह्रदय विदारक मौत के दोषी को तो कोर्ट सजा देगी ही लेकिन इस मौत के लिए पुलिस भी कम दोषी नहीं है।

इंदौर में पुलिस कमिश्नरी लागू करते वक्त मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि इंदौर को अपराध मुक्त बनाने की दिशा में यह सार्थक कदम है।

दिक्कत यह भी है कि मुख्यमंत्री घोषणा करने को लेकर जितने उतावले नजर आते हैं, फीडबेक लेने, समीक्षा करने में सरकार उतनी ही ढीली पड़ जाती है।

नरोत्तम मिश्रा तो बस नाम के गृह मंत्री की भूमिका निभा रहे हैं,  पुलिस कमिश्नर से लेकर सारे अधिकारी सीधे सीएम की ही सुनते हैं और सीएम हैं कि न तो जनता की और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं की शिकायतों पर गौर करते हैं।

अपराध पर अंकुश नहीं लगने पर आम धारणा यही बनती जा रही है कि जैसा अधिकारी बताते हैं, सरकार उसे ही सच मान कर खुश होती रहती है।

शिक्षा जगत के लिए तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है ही, चुनावी साल में हुई यह घटना भाजपाराज को सुशासन का खिताब देने वाली तो कतई नहीं है।

स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों को भी अपने होनहारों की गतिविधियों पर तो नजर रखना ही चाहिए साथ ही यह आत्म मंथन भी करना चाहिए कि उनमें भी कहीं हत्यारे छात्र के पिता जैसे संस्कार तो नहीं पनप रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं उनसे 89897-89896 पर संपर्क करें।

 



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