ममता मल्हार।
जब भी कोई नेता दल बदलता है तो आमतौर पर खबरों का शीर्षक दिया जाता है फलां पार्टी को एक और झटका।
पर अब यह शीर्षक बासी तो हो ही चुके हैं और इसमें वह ताब भी नहीं बची कि पाठक को खबर पढ़ने के लिए रोक सके। डिजीटल मीडिया में तो कीवर्ड ही आम हो चुका है और यह विजिटर्स भी नहीं ला पाता।
कारण है लगातार कई सालों से कांग्रेस के नेताओं का भाजपा में जाना।
जी! यहां फिलहाल सिर्फ दो पार्टियों की ही बात करना मौजूं लगता है, वह भी सिर्फ मध्यप्रदेश के संदर्भ में।
कांग्रेस को झटका दरअसल वाक्य ही गलत है।
किसी नेता का दल बदलना उस पार्टी को झटका नहीं होता है, यह झटका दरअसल मतदाता के लिए होता है।
क्योंकि हमारे यहां वोटिंग पैटर्न में मतदाता के दिमाग में पार्टी चिन्ह होता है न कि प्रत्याशी का चेहरा।
पहले भी लिखा आज फिर लिख रही हूं निकम्मा विपक्ष निरंकुश सत्ता का सारथी होता है।
सागर जिले की देवरी विधानसभा से कांग्रेस के विधायक रह चुके बृज बिहारी पटेरिया। ( गुड्डा ) ने कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।
आज शनिवार 24 दिसंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समक्ष ब्रज बिहारी पटेरिया को मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बीजेपी की सदस्यता दिलाई।
यूं पिछले कुछ सालों के सिनेरियो पर नजर डालें तो कांग्रेसियों का भाजपाई हो जाना अब कोई बड़ी बात नहीं रह गई है।
लेकिन सागर जिले के संदर्भ में यह अहम इसलिए हो जाता है क्योंकि कुछ महीने पहले जिले के ही खुरई के पूर्व विधायक अरुणोदय चौबे ने भी कांग्रेस छोड़ दी थी।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान, भूपेंद्र सिंह और वीडी शर्मा समेत अन्य भाजपा नेताओं ने पटेरिया को बधाई दी है।
बात ये है नहीं है कि भाजपा सबको अपने में शामिल करती जा रही है और अमूमन ज्यादातर कांग्रेसी ही हैं। बात यह है कि क्या भाजपा देश के साथ प्रदेश को कांग्रेस मुक्त करने की मुहिम में खुद ही पूर्ण कांग्रेसयुक्त हो जाएगी?
दूसरी बात ये है कि अगर वाकई जनता की सेवा करनी है तो बतौर मजबूत विपक्ष क्यों नहीं खड़े हो पा रहे?
खैर अब असली सच्चाई तो यह है कि राजनीति जनोन्मुखी बची भी नहीं है, नेता जनता की ही सोचते तो आज एकतरफा माहौल नहीं होता।
अब तो कहा यह जाने लगा है कि कभी ऐसा समय न आ जाये कि भाजपा कहने लगे बस भाई अब बस और कांग्रेसियों की जरूरत नहीं।
सवाल यह भी उठने लगा है मध्यप्रदेश में कभी कोई मजबूत थर्ड फ्रंट आएगा भी कि नहीं? या सब ऐसे ही खर्च होते जाएंगे?
बाहर से आने वाले सदस्यों को भाजपा में महत्वूपर्ण पद और जिम्मेदारियां दी जाती रही हैं।
यह देख दशकों से समर्पित कार्यकर्ता की उपेक्षा प्रत्यक्ष रूप से होती है। नतीजा यह होता है कि या तो दुखी होकर पार्टी छोड़ देगा या निष्काषित कर दिया जाएगा।
इसका सबूत निकाय चुनाव में देखा ही जा चुका है जो भी निर्दलीय लड़ा उन्हें भाजपा ने निष्कासित ही कर दिया।
भाजपा कितने सीनियर विधायक खुद मूल भाजपा के हैं जो मंत्री ही नहीं बन पा रहे? कितने काबिल समर्पित लोग भाजपा में जिनका जीवन गुजार गया पर टिकट तो दूर पार्टी में ही ढंग का कुछ पद नहीं मिल पा रहा।
खैर ब्रजबिहारी पटैरिया के बारे में कहा जा रहा है कि वे कुछ दिनों से कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे थे।
श्री पटेरिया 1998 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे बृज बिहारी पटेरिया को 2013 में कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव ने सागर जिले की रहली सीट से 52 हजार वोटों से हराया था।
पूर्व विधायक बृज बिहारी के भतीजे और बीजेपी नेता विनीत पटेरिया की पत्नी देवरी जनपद की अध्यक्ष हैं।
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