Breaking News

कॉरपोरेट सहारे को छोड़ने की हिम्‍मत दिखानी होगी विपक्ष को

खरी-खरी            Aug 26, 2022


 श्रीकांत सक्‍सेना।

दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री एक्टिविस्ट से मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन लोकपाल, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार,पूरे देश में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में मूलभूत सांस्थानिक सुधार की मांगें अब सुनाई नहीं देती।

एक और मांग हुआ करती थी-जनप्रतिनिधियों यानि सांसदों, विधायकों को वापस बुला लेने के अधिकार की,वो भी शायद ही किसी को याद हो।

दिल्ली में लगातार बीजेपी को पटखनी देने वाली आम आदमी पार्टी ने पंजाब में कांग्रेस को भी तारे दिखा दिए और अब शायद गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी उसका जनाधार और बढ़ जाए।

जिसके बूते उसका दर्ज़ा नेशनल पार्टी का हो सकता है। लेकिन यह सफर कांग्रेस और बीजेपी जैसा ही सफर होगा।

इससे देश के ढांचे में शायद ही कोई आमूलचूल बदलाव आए। उसके लिए तो फिर से वही एजेंडा ज़िंदा करना होगा।

राजनीतिक लोगों पर लगे आरोपों की जांच के लिए विशेष अदालतें,दोषी पाए जाने पर उनके राजनीतिक अधिकारों को समाप्त किया जाना।

न्यायालयों में मुकदमे निश्चित समय सीमा में निपटाने की बाध्यता,देश के सभी नागरिकों को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य तथा नौजवानों को रोजगार की गारंटी जब तक रोजगार नहीं तब तक समुचित बेरोजगारी भत्ता आदि आदि।

सत्ता के सर्कस में आम आदमी पार्टी कामयाब हो सकती है लेकिन इससे न तो देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को ताकत मिलेगी न ही आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा।

मंत्रियों, सांसदों की पेंशन और दूसरे बेतुके भत्तों की समाप्ति, वीआईपी कल्चर का अंत, चुनाव प्रक्रिया में धन की भूमिका की समाप्ति, सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों पर पाबंदी,प्रेस और मीडिया की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को लेकर सभी विपक्षी दलों को एकजुट होकर व्यापक आंदोलन चलाना चाहिए।

निश्चित ही जनसाधारण इससे जुड़ेगा और देश की राजनीति में बदलाव आएगा।

जो लोग एंटी इनकंबेंसी का इंतजार कर रहे हैं और सोच रहे हैं कि बीजेपी खुदबखुद ढह जाएगी तो ऐसा नहीं होने वाला।

बीजेपी ने अबतक अपने आपको चुनावी दांवपेंच का बेहतर खिलाड़ी साबित किया है, उनके निर्णय त्वरित और सटीक साबित हुए हैं।

वे विरोधियों पर पूरी ताक़त से हमला करते हैं, उनकी राजनीतिक गत्यात्मकता विपक्षियों से बहुत बेहतर है।

बहुत कम समय में उनके संसाधन कई गुना बढ़े हैं,  कारपोरेट वर्ल्ड उनपर मेहरबान है। राजनीतिक फंडिंग को पूरी तरह पारदर्शी बनाए जाने की जरूरत है।

कारपोरेट वर्ल्ड बाकी राजनीतिक दलों को भी उनकी औकात के अनुसार दान देते हैं इस लालच में कांग्रेस समेत बहुत से राजनीतिक दल कारपोरेट वर्ल्ड को दी जाने वाली छूटों का खुलकर विरोध नहीं कर पाते।

इस सहारे या लालच जो भी कहिए, को छोड़ने की हिम्मत दिखानी होगी।

चुनाव प्रक्रिया,न्यायालय और धन पर केंद्रित राजनीति से अगर देश को छुटकारा मिल सका तो निश्चित ही भारत विश्व शक्ति के रूप में उभर सकता है।

विपक्षी दलों को देशव्यापी जनांदोलन के रूप में सत्ता पक्ष को चुनौती देनी चाहिए फिलहाल तो वे अपने-अपने जनाधार को बचाने की जुगत में जुटे हैं और एक-दूसरे को ही निपटाने में लगे हैं।

दूसरे शब्दों में विपक्षी दल सत्ता पक्ष द्वारा तय किए गए मैदान पर उसी के बनाए नियमों के तहत मुकाबला जीतने के दिवास्वप्न देख रहे हैं।

शुभ मस्तु।_श्रीकांत

 

 



इस खबर को शेयर करें


Comments