मनोज श्रीवास्तव।
नदियों के प्रति भक्ति को अब कुछ क्रियाओं में बदलना होगा। भक्ति का कर्मयोग।
नर्मदा का प्राकट्य उत्सव नर्मदा के depletion पर गंभीर चर्चाओं और क्रियाओं का अवसर होना चाहिए।
प्राकट्य का मतलब उस नर्मदा की एक लिविंग पर्सन के रूप में अधिमान्यता है जो हमारी परंपरा में माता कहकर स्वीकार की जाती रही है।
भक्ति के पैटर्न भोग के पैटर्न्स से पता लगते हैं।
जब विलोप से बचाने में योग देंगे तो ही नर्मदा उत्सव होगा।
और नर्मदा ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था, अकेले रहने का नहीं। नर्मदा की दोस्ती 101 सहायक नदियों से हुई जिनमें से 60 सूख चुकी हैं। नर्मदा का प्रवाह-तंत्र छिन्न भिन्न हो गया है। मेरे बचपन में यही नर्मदा थी जो होशंगाबाद में हमारे घर तक चली आई थी।
अब वर्ष के कई महीनों नर्मदा का सागर से मिलना ही नहीं होता।नर्मदा के किनारे के बोरवेल सूख रहे हैं। एक अध्ययन नर्मदा में 58% जलहृास बताता है।
इन साठ सहायक नदियों को चिन्हित कर यहाँ नदी पुनर्जीवन परियोजनाएँ चलाई जानी चाहिए। कुछ से तो एक समय मैं प्रशासनिक हैसियत से जुड़ा भी हुआ था। भारत सरकार के अविरल धारा/ निर्मल धारा/ स्वच्छ किनारा वाले कार्यक्रमों की नर्मदा के सम्बन्ध में क्या भूमिका है?
नर्मदा का 94% वृक्षावरण( ट्री कवर) ख़त्म हो गया है। किन्तु ज़मीन के भीतर उसमें से कितना जड़ भंडार बचा है, यह देखकर वहाँ उस रूट स्टॉक के पुनर्नवन( रिजेनरेशन) का अभियान चलता तो क्या बात थी? वृक्षारोपण इसका बहुत कच्चा समाधान है।
इस नदी की विशिष्टता ही इसकी वृक्षाधारित अविरलता थी।
उस पूरे बायोस्फीयर के पुनर्वास में नर्मदा की पुनर्चेतना है, ऐसे वैसे कैसे कैसे वृक्ष लगा देने में नहीं।
एक टोटल फ़ील्ड-इमेज को ध्यान में रखकर ही नदी- अंचल या नदी का लैंडस्केप सुधारने से ही नर्मदा का कोप कम होगा।
निर्मल धारा का एक आयाम विकास के प्रभावों का पता करना और उनके एंटीडोट ढूँढने में है।
और स्वच्छ किनारा की चुनौती तो नर्मदा के आसपास हुए अतिक्रमणों की गणना से ही हल हो सकेगी।
ओ नर्मदे अपने भक्तों को थोड़ी शर्म दे।
लेखक सेवानिवृत आईएएस अधिकारी हैं।
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