रजनीश जैन।
लाखा बंजारा झील के लिए 24 मार्च,2022 का दिन एतिहासिक कहा जाना चाहिए। यही वह दिन है जब आधी सदी से शहर के सीवरों का गंदा पानी झील में उड़ेल रहे 41 नालों को एक जटिल सीवर प्रणाली बना कर झील के बाहर निकालने में सफलता मिली।
इन 41 नालों ने एक खूबसूरत झील को शहर का सामुदायिक गटर बना दिया था। कुछ साल पहले की स्टिल फोटो में नीचे देखिए कि नसों के जाल की तरह फैले ये नाले झील के लिए किस तरह के नासूर थे।
इन्हें रोके बिना झील के सारे काम अधूरे थे क्योंकि झील खाली ही नहीं हो पाती थी। झील में पीढियों से गंदगी उड़ेल रही शहर की आधी आबादी में से बहुतेरे ऐसे हैं जिनके खुद के घर की नाली का पानी झील में जाता रहा और वे झील को बचाने के काम में लगे अधिकारियों, ठेकेदारों और जनप्रतिनिधियों को कोसने के एक सूत्रीय एजेंडे पर चलते रहे।
700 एम एम से 1200 एम एम के कई किलोमीटर लंबाई के पाइपों से ग्रेविटी आधार प्रणाली बन कर अब काम करने लगी और घरों की गंदगी लाखा बंजारा झील से मोगा बंधान के बाहर गिरने लगी है।
इन वीडियो में नाले से बाहर निकलते सीवर के पानी की मात्रा देखकर मैं अपने शहरियों की ओर से आत्मग्लानि से भर गया कि हम सब झील के साथ किस तरह बलात्कार करते रहे और वह सहती रही।
हालांकि मेरा निवास झील के डाउनटाउन में है जिसके नाले झील में नहीं गिरते, पर हम दोषी तो रहे कि हमारे सामने नागरिकों ने और प्रशासनिक इकाइयों ने क्रमशःएक के बाद एक गंदे नाले झील में खुलते देखे और मौन रहे।
जब सरकार इसे सुधारने आई तब भी हमने न उनकी मेहनत देखी न काम की जटिलता और बढ़ बढ़ कर ऐसी आलोचाएं करते रहे कि पानीदार अधिकारी,नेता और ठेकेदार बार बार हताश हुए।
हम सागरवासी इतने अधैर्यशील हैं कि हर्र खाने के साथ ही पार्श्वभाग टटोल कर देखने लगते हैं कि परिणाम क्या हुआ।
अरे भाई रुको सबर करो जरा अगले चार महीने लाखा बंजारा झील के लिए बेहद उपयोगी हैं।
आशा करिए कि इसी जुलाई में जब बारिश होगी तब हमें हमारी वह झील वापस मिलेगी जिसकी पवित्रता के किस्से तीन पीढ़ी पहले के बुजुर्ग सुनाया करते थे।
लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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