हेमंत कुमार झा।
तो...भारत सरकार ने अपने आधिकारिक बयान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता को 'फ्रिंज एलिमेंट' बताया।
यानी अराजक तत्व!
यानी तुच्छ तत्व।
डिक्शनरी में देखने पर इस शब्द के और भी कई अर्थ मिलते हैं। गहराई से सोचने पर प्रत्येक अर्थ इन प्रवक्ताओं को अंततः 'तुच्छ तत्व' ही ठहराता है।
सरकार पर काबिज राजनीतिक पार्टी और सरकार के बयानों में यह अंतर्विरोध ही भाजपा ब्रांड राष्ट्रवाद को परिभाषित कर देता है।
यानी, आप जो देश में कहते करते हैं उसे दुनिया के सामने सीना तान कर स्वीकार नहीं कर सकते।
यहां के चेहरे की विद्रूपता को आप वहां सौम्य दिखाने के चक्कर में अंततः अविश्वसनीय और हास्यास्पद बन जाते हैं।
विवादों में घिरी उस भाजपा प्रवक्ता ने कहा, "मैं बहुत रोष में थी क्योंकि 'हमारे' महादेव का अपमान हुआ था।"
इसलिये, राष्ट्रीय प्रवक्ता के जिम्मेदार पद पर रही उस महिला ने 'उनके' पैगंबर की शान के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दे डाला।
'हमारे' और 'उनके' के खांचों में बंटी उनकी भावनाएं ही उनके राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा अंतर्विरोध है।
राष्ट्र के सभी निवासियों की गरिमा, व्यक्तिगत आस्थाओं और संवैधानिक अधिकारों का सम्मान जिसमें निहित न हो, वह विचार अपंग है और अपंग विचारों के साथ आप देश को एक सूत्र में बांध कर आगे नहीं बढ़ सकते।
इन विचारों के साथ आप दुनिया के सामने खड़े भी नहीं हो सकते।
भड़काने वाले बयानों के साथ अक्सर नफरत फैलाते नेताओं को हालिया विवादों के मद्देनजर भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया के आईने में अपना अक्स देखना चाहिये।
जब अंतरराष्ट्रीय राजनय की बात आई तो उनके बयानों को वाहियात घोषित करने में भारत सरकार को तनिक भी देर नहीं लगी।
हालांकि, जो लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस विवाद के बाद भाजपा में ऐसे तत्वों को तरजीह मिलना कम हो जाएगा, वे भ्रम में हैं।
जिन नेताओं या प्रवक्ताओं से उम्मीद की जा रही है कि अब वे अपने वक्तव्यों में संतुलन लाएंगे, इस बात की पूरी संभावना है कि वे कुछ दिनों की चुप्पी के बाद फिर ऐसे ही राग अलापते सुने जाएंगे।
वे यही करेंगे क्योंकि यही कर के वे अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सकते हैं। उन्हें और कुछ आता-जाता ही नहीं।
बाहरी देशों के दबाव अधिक दिनों तक उन्हें रोके नहीं रख सकते क्योंकि जरूरी नहीं कि उनका हर विवादास्पद बयान अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आए ही।
यह सम्भव भी नहीं...न दुनिया को इतनी फुर्सत ही है।
ऐसे नेता और प्रवक्ता, अगर वे नेता और प्रवक्ता की भूमिका में रहे, ऐसी भड़काऊ बातें करते रहेंगे क्योंकि उनकी पार्टी को इससे वोट मिलते हैं।
वोट की राजनीति का अपना स्याह पक्ष भी होता ही है, यह राजनीतिक दलों पर निर्भर है कि वे राजनीति की गलियों से किस गरिमा के साथ गुजरते हैं।
आज जो निलंबित या निष्कासित किये गए हैं, कल उनका पुनर्स्थापन भी हो सकता है। क्योंकि, वे पार्टी की पूंजी हैं।
ऐसे ही बयानवीरों ने विषाक्त माहौल बना कर भाजपा के मैदान को विस्तार देने में बड़ी भूमिका निभाई है।
आज पार्टी उन्हें नेपथ्य में छुपा रही है, सरकार उन्हें तुच्छ तत्व साबित कर रही है लेकिन संभव है, उन्हें भविष्य में राजनीतिक मुआवजा भी मिले।
ऐसे लोगों के निलंबन और निष्कासन के बाद भी पार्टी के भीतर उन्हें मिल रहे व्यापक समर्थन से कई संकेत मिलते हैं।
पहला तो यह...कि भले ही भारत सरकार इनके वक्तव्यों को लेकर दुनिया के सामने शर्मसार हो, पार्टी के अधिकतर लोगों को बिल्कुल भी शर्म नहीं आ रही।
जो आपकी मूल पूंजी है, आप उस पर शर्म करें भी तो कैसे? शर्म आए तभी तो शर्म करे कोई।
लेकिन, भले ही भाजपा के अधिकतर लोग शर्म नहीं करें, वे यह तो देख ही रहे हैं कि ऐसे बयान देने की उनके कुछ प्रवक्ताओं की प्रवृत्तियों के कारण भारत सरकार आज अंतरराष्ट्रीय राजनय के समक्ष बचाव की मुद्रा में है।
वे यह भी देख-सुन ही रहे हैं कि इस देश के आधिकारिक बयान में उनके इन प्रवक्ताओं को 'फ्रिंज एलिमेंट' कहा गया है।
यानी, उनका चेहरा लेकर देश अपने को अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर परिभाषित नहीं करना चाहता, कर भी नहीं सकता।
उनकी यही विद्रूपता एक दिन उन्हें देश में भी अप्रासंगिक बना देगी।
जिस चेहरे को आप दुनिया के सामने लाने से बचना चाहेंगे, वह अपने देश के लोगों के बीच भी कब तक प्रिय रह पाएगा?
लेखक पटना यूनिवर्सिटी में एसोशिएट प्रोफेसर हैं।
Comments