श्रीकांत सक्सेना।
पिछले कुछ दशकों से राजनीति बहुत दिलचस्प लेकिन खतरनाक मोड़ भी ले चुकी है।
मसलन अगर किसी राज्य में किसी ख़ास पार्टी की सरकार जीतकर सत्तारूढ़ होती है तो उसके बाद उस राज्य में खुलेआम किसी विशेष जाति के लोगों की ही भर्ती होती है।
राज्य सेवा आयोग द्वारा बड़े पदों से लेकर सबसे छोटे पदों तक सभी में जाति एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है। इसके बाद ट्रांसफर और पोस्टिंग में भी यही चक्र चलता है।
हालांकि जाति अकेला कारक नहीं होता उसके साथ-साथ आनुपातिक रिश्वत भी जरूरी है।
बिहार में सरकारी नौकरियों के बदले अगर रकम नहीं तो जमीनें अपने नाम लिखवा ली गईं ऐसी अनगिनत रिपोर्टें अखबारों में प्रकाशित होती रहीं आपने भी पढ़ी होंगी।
महाराष्ट्र में दावा किया गया की दूसरी और तीसरी श्रेणी के साढ़े तीन लाख रेलवे के पदों में लगभग सारे पदों पर एक राज्य के नागरिकों की भर्ती हुई। उस समय रेलमंत्री बिहार के थे।
इन छोटे पदों पर भाषाई और अन्य कारणों से अगर स्थानीय युवाओं को अवसर दिया जाता तो रेलवे का भी अधिक हित होता।
अब केवल दो लोगों का हित हुआ एक नेता जी का दूसरा उस युवा का जिसे नौकरी मिली। दूसरे व्यक्ति यानी उस युवा की पहली चिंता या कहें प्राथमिकता स्वाभाविक रूप से अपनी ज़मीन के बराबर रकम जल्द से जल्द वसूलने की ही रहेगी सो वह कभी अपनी नौकरी के प्रति वफादार नहीं हो सकता।
एक भृष्ट प्रक्रिया ने न केवल रेलवे को अपूर्णीय क्षति पहुंचाई बल्कि दो राज्यों के नागरिकों के बीच स्थाई वैमनस्य पैदा कर दिया।
वैसे भी ये अकेला उदाहरण नहीं है,इस तरह के भेदभावपूर्ण कृत्यों की लंबी श्रृंखला है जो पूरे देश में एक या दूसरे रूप में देखी जा सकती है।
नौकरियों के जाति के रिश्ते को लेकर सबसे भयावह प्रयोग उत्तर प्रदेश में हुआ जहां एसडीएम से लेकर कांस्टेबल तक सभी में जाति और पैसे का खुलकर लेनदेन हुआ।
अख़बार इसके प्रमाण स्वरूप निरंतर ख़बरें छापते रहे लेकिन नतीजा शून्य रहा।
व्यापमं घोटाला हमारे नौजवानों के जेहन से शायद धुंधला हो चुका हो, जहां डॉक्टर आदि में अभ्यर्थी की जगह दूसरे लोगों ने परीक्षा दी और असली अभ्यर्थी सिनेमा हाल में बैठा दिए गए। इसमें भी राज्य के गवर्नर पर आरोप लगा कि वे सीधे पैसे लेते थे।
पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के एक मंत्री शिक्षक घोटाले में जेल भेजे गए, उन्होंने ऐसे ही कामों से कुछ करोड़ रुपए जमा कर लिए थे।
हरियाणा के एक पूर्व मुख्यमंत्री शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल में हैं।
कहा जाता है सेना, पैरामिलिट्री फोर्स से लेकर स्थानीय पुलिस तक सभी जगह ये कैंसर पूरे तंत्र में फैल चुका है।
दिल्ली का कोई बड़े से बड़ा कार्यालय भी इससे शायद ही बचा हो।
देश के सबसे बड़े लोकसेवा प्रसारक के मुखिया का वेतन लगभग डेढ़ लाख रुपए होता है। आज उसमें एक खास विचारधारा से संबंधित लगभग दो सौ लड़के संविदा पर रख दिए गए हैं, इनकी औसत तनख्वाह ढाई से तीन लाख रुपए महीना है।
कार और शोफर तथा अन्य सुविधाएं अलग देश में और विदेशों में घूमने पर उच्च क्लास में सरकारी खर्चे पर यात्रा की सुविधा अलग।
मज़ेदार बात ये है की इन लड़कों में से कुछ तो महज 11800 रुपए प्रतिमाह पर इसी दफ्तर में काम करते थे।
आज भी इनमें से ज्यादातर हिंदी,अंग्रेजी या उर्दू सहित किसी भी भाषा में एक पैराग्राफ भी ठीक से नहीं लिख सकते।
11800 रुपए प्रतिमाह पर मामूली सहायक के काम से सीधे ढाई या तीन लाख रुपए की ऐसी उछाल शायद ही कहीं आपने सुनी हो।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये एकमात्र संगठन नहीं है जहां ऐसा हो रहा है, शायद ये बीमारी पूरे तंत्र में फैल चुकी है।
आपने अपने शहर में और देश भर में ऐसे डॉक्टर, इंजीनियर और पीएचडी देखे होंगे जो महज़ दस पंद्रह हज़ार रूपयों पर नौकरियां कर रहे हैं।
नौजवानों को ये सोचना होगा कि उनके हक़ को कौन छीन रहा है?
गंभीरता से सोचें तो ये लूट क्या इसलिए हो रही है की इसमें लिप्त लोग ताकतवर हैं या ज़्यादा अकलमंद हैं?
सच्चाई ये है की जिन नौजवानों को ठगा जा रहा है वे या तो मूर्ख हैं या निर्वीर्य हैं जिनमें अपने देश के दुश्मनों को अपने हाथों से सज़ा देने का हौसला शेष नहीं।
अपने देश के संसाधनों की ऐसी लूट देखकर क्या भगतसिंह जैसे नौजवान ख़ामोश रहते?
नौजवानों का अपने देश से लगाव सच्चाई और पारदर्शिता के लिए उनका सक्रिय आग्रह ही यौवन की पहचान होती है।
सच्चाई,न्याय और देशहित में यदि बलिदान की ज़रूरत है तो अपने देश के लिए ये बलिदान नौजवानों को ही देना होगा, इसके बिना नौजवानी किस काम की।
सुबह शाम अफीम खाकर मंदिर बनायेंगे, पुतले लगाएंगे या पेट्रोल दो सौ रुपए लीटर भी खरीदेंगे के नारे लगाने से पहले एक बार जरूर सोचिए की भ्रष्टाचार मिटाएंगे, पारदर्शिता लाएंगे लूटेरों को सज़ा जरूर देंगे ये संकल्प भी आपके हृदय में उठने चाहिए।
आखिर देश आपका है,यहां सच्ची और ईमानदार व्यवस्था लाने की जिम्मेदारी आपकी है। देखना ये है कि अनंत उर्जा से भरे हुए इस महान देश के मेधावी और सिंहों के समान बलिष्ठ नौजवान भ्रष्ट अपराधी और कायर राजनेताओं की सुरक्षा मंडली में दिन रात काली बिल्लियां बने रहना पसंद करेंगे?
उनकी सुरक्षा करने में ही गर्व का अनुभव करते रहेंगे या उन भ्रष्ट नेताओं को देशहित में सज़ा देकर देश को बचाएंगे?
(हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं लेकिन जरा उन लोकतांत्रिक देशों के बारे में सोचिए जहां राष्ट्रप्रमुख और कार्यपालिका के मुखिया बेखौफ अपने देश में कहीं भी घूमते हैं।) राष्ट्रहित में जरूरी है की देश के संसाधनों की लूट करने और देश के संस्थानों को भ्रष्ट करने वाले राजनेताओं के दिलों में देशभक्तों का खौफ बना रहे।
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