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सोचिये, बुलडोजर मैदान में क्यों आया ?

खरी-खरी            Apr 13, 2022


राकेश दुबे।
मध्यप्रदेश के कई जिलों में भी अब “बुलडोजर” चल रहा है। “बुलडोजर” अब समाज में सरकार का अमोघ अस्त्र बनता जा रहा है। मध्यप्रदेश और उत्तराखंड में यह साहस, उत्तर प्रदेश में चले बुलडोजर के नतीजों के बाद आया है।

जब योगी सरकार ने अपराध गिरोह के माफियाओं पर बुलडोजर चलाना प्रारम्भ किया तो वहीँ नहीं सारे देश में उन लोगों को राहत मिली जो अन्यान्य कारणों से सँगठित अपराध और उसे संचालित करने वाले गिरोह के विरुद्ध आवाज़ भी नहीं उठा पाते थे।

उत्तरप्रदेश में 2017 से पूर्व कोई सोच भी नहीं सकता था कि वहां कभी ऐसी सरकार भी आएगी जो मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही कर सकेगी।

मध्यप्रदेश में ऐसे कई बाहुबली हैं। अदालतों से ऐसे सभी अपराधी अनेक हत्याओं, अपहरण आदि गंभीर अपराध में शामिल होने के बाद जमानत पर जेल से बाहर आ जाते हैं।

न्याय व्यवस्था में कमी और राजनीतिक संरक्षण के कारण इनको आसानी से जमानत अब भी मिल जाती है। ऐसे लोगों के लिए यह नये प्रकार का दंड खोजा गया है।

“बुलडोज़र” को सरकारों ने तो न्याय का दूत बनाया है। कुछ कानूनविद सरकार के उस उपचार से असहमत हैं, लेकिन उनके पास भी ऐसे संगठित अपराध से निबटने की कोई युक्ति नहीं है।

अब इन अपराधियों और भू माफियाओं द्वारा अवैध रूप से कब्जाई हुई किसी की जमीन को उसके असली स्वामी को दिलाना और अपराध के धन से प्राप्त जमीन को कुर्क करके वह जमीन शोषित, वंचित गरीबों के घर बनाने के लिए कार्य योजना कुछ सरकारों ने प्रारम्भ कर दी है।

न्याय होता हुआ दिखना चाहिए, परन्तु किसी के साथ किसी अन्य कारण से अन्याय न हो इसकी निगहबानी भी जरूरी है।

उत्तर प्रदेश में इसके परिणाम और प्रभाव को देखते हुए सोशल मिडिया पर अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी जनता में मांग उठने लगी कि वहां भी ऐसा ही हो।

इससे मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह और अब उत्तराखंड में धामी सरकार ने भी “बुलडोज़र” को अस्त्र के रूप में उतार दिया।

रामनवमी से एक अजीब माहौल देश में बना है। बंगाल से लेकर गुजरात तक पथराव व आगजनी वारदात हुई हैं।

इससे पूर्व 2 अप्रेल को राजस्थान में करौली में भी हिन्दू नववर्ष के अवसर पर भी ऐसा ही हुआ था| बंगाल में दुर्गा पूजा, विसर्जन पर क्षेत्र विशेष में रोक है।

केरल में कुन्नूर काण्ड हुआ, दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने अपने विधायक अमानतुल्ला खां और पार्षद ताहिर हुसैन से कभी नरसंहार पर जवाब तलब नहीं किया।

उत्कृष्ट शिक्षा संस्थान जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के विवाद अनोखे हैं। वहां बुलडोजर की धमक नहीं है।

वहां यह कहना कि “पूजा करोगे तो उसमें मांस डाल कर पूजा भंग कर देंगे”, कौन सी प्रवृत्ति का परिचायक है।

यही सब प्राचीन काल में असुर किया करते थे। मुगलकालीन समय में हुई कुछ दुर्घटनाओं की भांति इस प्रजातांत्रिक काल में बिगड़ते सोच पर रोक जरूरी है।

तब लोग किसी भी वर्ण से हों कुछ क्षेत्रों से डोली, बारात, शव यात्रा, धार्मिक जलूस, शोभा यात्रा निकालने में आम नागरिक भय ग्रस्त थे।

रामनवमी पर देश में जो कुछ हुआ और उसके आगे पीछे देश में जो कुछ घटा उसकी जवाबदेही निर्धारित होनी चाहिए।

बुलडोजर मशीन है और मशीन जिस इशारे पर चले वो इशारा न्यायोचित , मानवीय और पारदर्शी होने की मांग करता है।

स्वतंत्रता के पश्चात कभी इसका, कभी उसका तुष्टिकरण क्रम चला।

देश हित किसी ने नहीं सोचा, अब “बुलडोजर” के माध्यम से ही सही ये देशहित समझिये, सोचिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं।

 



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