श्रीकांत सक्सेना।
फ़िलहाल अपना मुल्क तवील अरसे तक बेहद मुश्किल वक़्त गुज़ारने के बाद अब 'अच्छे दिनों' को सेलीव्रेट करने में व्यस्त है।
यह समय अपनी उपलब्धियों को भुनाने का है।
दुनिया जानती है कि दुनिया के सबसे अमीर लोगों में हिंदुस्तानियों की संख्या ही सबसे ज़्यादा है।
स्विस बैंकों समेत सभी विदेशी बैंकों में सबसे ज़्यादा धन हिंदुस्तानियों ने ही जमा कराया है।
पनामा पेपर्स के बाद पैंडोरा पेपर्स इस बात को निर्विवाद रूप से सिद्ध कर रहे हैं कि पैसों के मामले में हिंदुस्तानियों का ही डंका बज रहा है।
समता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता असंदिग्ध है।
हमारे यहां प्रतिष्ठा और पद प्रदान करने में दुष्टों,अपराधियों,तिकडमबाजों आदि-आदि नागरिकों में कोई भेद नहीं किया जाता। हमने देश का सर्वोच्च सम्मान बांटते वक़्त भी इनमें कोई भेदभाव नहीं रखा।
हमने प्रतिष्ठा पाने के लिए धन को ही एकमात्र पैमाना रखा है।
दुनिया के सबसे बड़े अपराधियों और धोखेबाज़ों की सूची में भी हिंदुस्तानी पैसे वाले पापियों के नाम ही सर्वोपरि हैं।
हमारे कुछ अमीरों के तो घर की बिजली का बिल ही करोड़ों रुपयों में आने लगा है।
हमारे यहां ऐसे कामयाब हिंदुस्तानी हैं जिनकी कारों में अस्सी किलो से ज़्यादा सोना मढ़ा हुआ है।
ऐसे मंदिर हैं जिनकी कोठरियों में बहुत से देशों के सकल घरेलू उत्पाद से कई गुना ख़ज़ाना पड़ा है।
ये सब हमारे तंत्र द्वारा संरक्षित धनपशुओं के आरोपित पुरुषार्थ का प्रतिफलन है।
यूं हमारे यहां ऐसे मूक मुनियों की भी कोई कमी नहीं जिन्होंने स्थितियों से टकराव के बजाय 'जाहि विधि राखे राम' के आप्तवचनों को अक्षरशः जीते हुए युवावस्था में ही निवृत्ति का मार्ग चुना है।
यह लोग ही भारत की आध्यात्मिक देशना के वाहक हैं।
ऐसा कदापि नहीं है कि हम आध्यात्मिकता की अपनी सनातन विरासत को भुला बैठे हैं।
लोग जिन्हें 'बेरोज़गार' कहकर अपमानित कर रहे हैं दरअसल वे निवृत्तिमार्गी संत हैं।
भारत में निवृत्ति मार्गी संतों की संख्या दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज़्यादा है। बेरोजगार कहे जाने वाले ये संत,इस बात का सबूत हैं कि हमारे लोगों की आध्यात्मिक चेतना और जीवन को नश्वर माने जाने की मूल धारणा आज भी अपरिवर्तित है।
ब्रह्म सत्य जगत् मिथ्या आज भी हमारे जीवन का मूलमंत्र है।
आज भी रोज़ाना 75 करोड़ लोगों से ज़्यादा लोग उपवास रखते हैं।
बुंदेलखंड,महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में ही प्रतिवर्ष लगभग एक लाख लोग 'संथारा' करते हुए समय से पूर्व ही स्वयं को ईश्वर में विलीन कर लेते हैं।
देश के अनाज भंडार भरे हुए हैं हर साल करोड़ों टन अनाज तो रखे-रखे ही सड़ जाता है।
हमारी समृद्धि का प्रमाण यह भी है कि हमारी हुकूमत देशी-विदेशी व्यापारियों और निगमों की लाखों करोड़ रुपयों की टैक्स देनदारियां हर साल मुआफ़ कर देती है।
ईश्वर भी प्रसन्न है, वह सुदूर अपने स्वर्ग में लगातार धन हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था में चोरी-चोरी, एफडीआई की तरह,पंप-इन कर रहा है।
लगभग अस्सी फ़ीसदी सांसद पहले ही करोड़पति हो चुके हैं।
लोगों को भले दिखाई न दे लेकिन मुल्क की तरक़्क़ी के आँकड़े सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज़ हैं,जिन्हें कोई भी नागरिक जाँच सकता है।
हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं जहाँ बेहद पारदर्शी व्यवस्था है।
हमारे लोग धर्मनिष्ठ और विनम्र हैं, इतनी उपलब्धियों के बावजूद अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका है।
लोग श्रम का ही सम्मान करते हैं, ऐसे बहुत से उच्चशिक्षा सम्पन्न नौजवान हैं जो चपरासी और सफ़ाई कर्मचारी बनने में अपनी हेठी नहीं समझते।
हमने अपने उच्च संस्कारों को आज भी बचाए रखा है। यही कारण है कि आज सकल विश्व में भारत की दुंदभि बज रही है।
हालांकि हमें विश्वगुरु बनने से रोकने के लिए अनेक प्रकार के विरोध और षड्यंत्र जारी हैं पर दुनिया जले,जलती रहे,सानू की?
बस जब अपने ही देश में ही कुछ लोग इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर सवाल खड़े करने लगें,तो फिर उन्हें कैसे क्षमा किया जा सकता है?
कुछ लोग बेवजह इन दिनों महाकाली से शुंभ-निशुंभ के नाश की कामना में व्रतादि कर रहे हैं।
गोया महाकाली के पास यही एक काम शेष हो। शुंभ-निशुंभ के पापों का घड़ा भर रहा है,उसे भरने दीजिए।
आपको क्या लगता है पैंडोरा पेपर्स कांड महाकाली की मर्जी के बिना हो गया?
शुंभ-निशुंभ के पास अभी दो वर्षों का समय शेष है।
फिलहाल महाकाली अंतर्राष्ट्रीय मिशन पर हैं, भारत की धर्मध्वजा फहरा रही है।
हमारा धर्मरथ विश्व विजय पर निकल चुका है।
हमारे साथ आर्थिक अपराधियों,तिकडमबाजों, सटोरियों और धनपशुओं की विशाल सेना है, जिनके बूते ही तो ये अच्छे दिन आ सके हैं।
आपको यक़ीन हो या न हो यह सदी न सही अगली सदी या फिर उससे अगली सदी निश्चित ही हमारी होगी। कालरात्रि,चंडिका स्वरूपा महाकाली की जय। श्रीकांत।
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