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इस घृणित अपराध ने लोकतंत्र को बेमानी बना दिया है

खरी-खरी            Jun 30, 2022


राकेश कायस्थ।
महाराष्ट्र की राजनीतिक नौटंकी में किसी पक्ष में तर्क और नैतिकता ढूंढना एक अर्थहीन काम है। उससे भी ज्यादा अर्थहीन यह दोहराना है कि न्यायपालिका को संविधान की रक्षा करनी चाहिए।

शह और मात के खेल हर तरफ से और एक बराबर खेले गये। बाकी एजेंसियों की तरह न्यायपालिका भी एक पार्टी है, ये सबको पता है।

मुख्यमंत्री बनने की स्वभाविक दावेदारी देवेंद्र फड़णवीस की थी, अब बनने जा रहे हैं। अगर दावेदारी नहीं होती और बन जाते तो भी कोई क्या कर लेता?

कर्नाटक से लेकर मध्य-प्रदेश तक में किसने क्या कर लिया?

मोदी-शाह राजनीतिक संस्कृति ने गर्वमेंट फॉरमेशन को एक ऐसा आर्ट बना दिया है, जिसका वास्तविक जनमत से कोई सीधा सरोकार नहीं है।

हर कोई सरकार बनाने के इसी फॉर्मूले पर चलना चाहता है।

पवार ने जब जोड़-तोड़ से सरकार बनवाई थी, तो बहुत से लोग इस बात को लेकर खुश हुए थे कि बीजेपी ने अपनी दवा का स्वाद चखा, अब रोयेंगे कि लोकतंत्र की हत्या हो गई।

इसीलिए कह रहा हूं कि इन बातों का कोई मतलब नहीं है। निजी तौर पर भ्रष्टाचार करके करोड़ों-अरबों कमा लेना बहुत निंदनीय बात लगती है।

लेकिन पिछले कुछ सालों में विधायक खरीदने, सरकार बनाने और गिराने का खेल जिस तरह संस्थागत हुआ, उससे यह बात समझ में आती है कि यह अपराध कई गुना ज्यादा घृणित है और इसने लोकतंत्र बेमानी बना दिया है।

फणनवीस साहब को बधाई! उद्धव ठाकरे एक शालीन मुख्यमंत्री के रूप में याद किये जाएंगे।

वे बिना किसी प्रशासनिक अनुभव के सीएम बने थे लेकिन मेरी समझ में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अच्छा काम किया।

वे वस्तुत; शरीफ आदमी हैं और गला-काट राजनीति के लिए संभवत: उपयुक्त नहीं हैं।

शिवसेना का भविष्य क्या होगा, इसे लेकर बहुत अटकले हैं।

जो लोग ठाकरे परिवार के खत्म हो जाने की संभावना जता रहे हैं, मेरी उनसे असहमति हैं।

कौन जाने कल को एकनाथ शिंदे का वही हाल हो जो बिहार में चिराग पासवान का हुआ और पुरानी शिवसेना फिर से बीजेपी के पाले में चली जाये। असंभव कुछ भी नहीं है।

 



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