कौशल सिखौला।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस ने यदि विपक्ष जोड़ो अभियान शुरू किया है तो इसमें कोई बुराई नहीं।
जब तगड़ा राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी सामने हो तो मिलकर मुकाबला करने में ही भलाई है , बुद्धिमानी है।
दुर्भाग्य से हमारे देश में राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को वास्तविक शत्रु मानने की अभद्र परंपरा शुरू हो गई है जो सर्वथा गलत है।
सत्तारूढ़ दल की उचित नीतियों और कार्यों का समर्थन तथा गलत नीतियों की आलोचना स्वस्थ विपक्ष का धर्म है।
सत्तारूढ़ दल का दायित्व है कि वह विपक्ष की उचित सलाह माने , उसे साथ लेकर चले , राष्ट्रीय मसलों पर बातचीत करे।
विपक्ष का यह कर्तव्य नहीं है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्नों पर रौरव नृत्य करे अथवा दुनिया भर में तमाशा खड़ा कर दे।
सत्तापक्ष और विपक्ष के दायित्व संविधान ने निर्धारित किए है , उनके लिए दोनों पक्ष समान रूप से जवाबदेह हैं।
मूल बात पर आते हैं , कांग्रेस चाहती है कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा विपक्ष जोड़ो यात्रा में बदल जाए।
यद्यपि महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के नेताओं ने राहुल की यात्रा में भाग लिया था । दक्षिण के क्षेत्रीय दल शामिल नहीं हुए।
अब कांग्रेस ने बकायदा विपक्षी पार्टियों को पत्र लिखकर यात्रा में शामिल होने का न्यौता भेजा है।
उत्तर भारत की क्षेत्रीय पार्टियां वैसे तो बेहद चतुर हैं लेकिन मोदी विरोध के चलते बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बहरहाल यात्रा में बाकी विपक्ष का आना सामान्य तौर पर मुमकिन नहीं लगता ।
इसका खास कारण है, कांग्रेस चाहती है कि राहुल यात्रा के माध्यम से महागठबंधन की बुनियाद धर दी जाए ।
ऐसे गठबंधनों का अतीत तो बेहद खराब रहा है, हमेशा की तरह जब दूल्हे पर बात आती है तो कांग्रेस घोड़ी पर राहुल को ही बैठना चाहती है।
कांग्रेस चाहती है और सोनिया भी चाहती हैं कि बाकी विपक्ष राहुल की घोड़ी के पीछे बैंड बाजे की ढम बजाता चले , ढोल नगाड़े बजाता चले या फिर नफीरी बजाता चले और कुछ नहीं तो बाराती ही बन जाए ।
लेकिन साहब ! यह हिंदी बैल्ट है, इसके नेता हजार हैं , पीएम इन वेटिंग दर्जन भर हैं! यही नहीं राहुल साहब ! यह नॉर्दन इंडिया है! याद रखना , यहां पैंतरे बेशुमार हैं! इसके नखरे हजार हैं ।
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