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महंगाई में य​ह राहत तो सरकार की मजबूरी थी

खरी-खरी            Jun 01, 2022


राकेश दुबे।
आगामी चुनाव के मद्देनजर सरकार को भी यह समझ आने लगा है बढ़ती महंगाई, महंगी पड़ने वाली है। तभी तो धड़ाधड़ राहत की घोषणा हो रही है।

पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध, चीनी के निर्यात पर रोक, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के ड्यूटी फ्री आयात का फैसला, स्टील पर निर्यात शुल्क लगाने का फैसला, स्टील के कच्चे माल के आयात पर शुल्क हटाने का फैसला आदि।

ये सारे फैसले जिस एक ही दिशा में जाते हैं,वो चुनाव हैं।

सरकार अब इस कोशिश में लग गई है महंगाई को किसी तरह मात दी जाए।

यह एक स्थापित सत्य है कि महंगाई बढ़ने से आम आदमी को तकलीफ होती है, लेकिन महंगाई अगर हद से ज्यादा बढ़े, तो तकलीफ गंभीर बीमारी भी बन सकती है और सरकार के सामने संकट पैदा कर सकती है।

सरकार की मजबूरी थी,क्योंकि खुदरा महंगाई का आंकड़ा आठ साल में सबसे ऊपर पहुंच चुका है और थोक महंगाई का आंकड़ा १३ महीने से लगातार दो अंकों में है।

देश की जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा अनुमान के मुताबिक ही आया है।

महंगाई की मार को देखते हुए ही आशंका थी कि यह आंकड़ा चार प्रतिशत के आसपास रहेगा।

फिक्र की बात यह है कि यहां भी गैर-सरकारी खर्च के आंकड़े में बढ़ोत्तरी फिर कमजोरी दिखा रही है।

जीडीपी आंकड़े के कुछ ही पहले सरकारी घाटे का आंकड़ा भी आया है, जो दिखा रहा है कि सरकारी घाटा जो जीडीपी का 6.9 प्रतिशत तक जाने का अनुमान था, इस बार वह सिर्फ 6.7 प्रतिशत ही रहा है, मतलब यह है कि महंगाई का असर बढ़ रहा है।

बाज़ार की हालत पर नजर डालें, तो मोबाइल फोन की बिक्री में 30 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।

मोबाइल, फ्रिज और टीवी जैसी चीजें बनाने वाली कंपनियों ने अपने उत्पादन के लक्ष्य घटा दिए हैं।

कारण साफ था कि बार-बार दाम बढ़ने के बाद लोग इन सामान को खरीदना बंद करने लगे थे।

हकीकत में जब जेब में पैसे कम हों व चीजें महंगी होने लगें, तो यही सब होता है।

बैंक ब्याज दरों के बढ़ने के पीछे भी महंगाई का ही डर है। रिजर्व बैंक ने जिस तरह अगली पॉलिसी मीटिंग का इंतजार किए बिना रेट बढ़ानेकी घोषणा की, उससे ही साफ था कि हालात चिंताजनक हैं।

रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट भी आई है, उसमें भी चिंता जताई गई है कि थोक महंगाई बढ़ने का असर कुछ समय बाद खुदरा बाजार की कीमतों पर भी दिखाई पड़ सकता है।

इस रिपोर्ट में माना गया है कि पिछले साल मई-जून में महंगाई तेज हुई और रिजर्व बैंक की बर्दाश्त की सीमा (दो से छह प्रतिशत के बीच) के पार चली गई थी और तब से कुछ उतार-चढ़ाव के बावजूद यह खतरे के निशान के ऊपर ही बनी हुई है।

लेकिन यह सवाल जस का तस है कि रिजर्व बैंक ने कदम उठाने में इतना वक्त क्यों लगाया?

केंद्र सरकार की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, महंगाई की रफ्तार भी सामने थी और कोरोना की मार से उबरने की कोशिश के बीच यूक्रेन पर हमले का असर भी समझना मुश्किल नहीं था।

फिर भी, ये तमाम कदम आखिर पहले क्यों नहीं उठाए गए, जो अब उठाए जा रहे हैं?

देश के सामने इसी तरह की परिस्थिति ,बिजली कोयले का संकट तमाम लोगों को यह अटकलें या आरोप लगाने का मौका भी देता है कि भारत श्रीलंका की राह पर है।

खासकर यह देखते हुए कि अभी कुछ ही समय पहले तक श्रीलंका और बांग्लादेश के आर्थिक मॉडल भारत में सबक की तरह देखे जा रहे थे।

तब भी, यह कहना कि भारत के सामने ऐसा कोई संकट आने वाला है, इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारा आकार।

भारत की अर्थव्यवस्था श्रीलंका से तीन गुना, बांग्लादेश से करीब ८ गुना और पाकिस्तान से करीब 10 गुना बड़ी है।

निर्यात और विदेश से आने वाले पैसे के मामले में भारत की निर्भरता इन देशों के मुकाबले बेहद कम है। सिर्फ इतनी सी बात बेफिक्र होने के लिए काफी नहीं है।

महंगाई अगर काबू में नहीं आई, तो वह कई तरह के गणित बिगाड़ सकती है।

महंगाई सिर्फ भारत में नहीं बढ़ रही है, पश्चिमी दुनिया के जिन देशों में बरसों से महंगाई का नाम तक नहीं लिया जाता था, वहां भी हर महीने नए रिकॉर्ड बन रहे हैं।

अमेरिका में महंगाई की दर दो प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य है, लेकिन वह आठ प्रतिशत से ऊपर पहुंचकर 40 साल का नया रिकॉर्ड बना रही है।

भारत के सामने बड़ा संकट यह है कि वह दो तरफ से फंस गया है, कोरोना का दबाव कम होने के साथ उम्मीद थी कि इस साल भारत काफी तेजी से तरक्की करेगा।

दुनिया भर के बड़े वित्तीय संस्थान ऐसी रिपोर्ट जारी कर चुके हैं कि भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ सकती है।

मगर कोरोना दुष्काल और यूक्रेन पर रूस के हमले ने अचानक सारी बिसात उलटकर रख दी।

महंगाई का तेज झटका तो पूरी दुनिया को लगा है, लेकिन भारत में इससे ग्रोथ पटरी पर लौटने की उम्मीदों पर पानी फिरता लग रहा है।

लेखक प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं।

 



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