राकेश कायस्थ।
सांप्रादायिकता, जातिवाद, क्षेत्रीयतावाद ये सब हमेशा कांबो ऑफ़र में होते हैं। यह संभव ही नहीं है कि व्यक्ति एक बीमारी से ग्रस्त हो तो और दूसरे से मुक्त हो। जितनी भी जतन कर ले, कभी ना कभी पकड़ा जाएगा।
श्रेष्ठ सनातनी पार्टी के सबसे बौद्धिक चेहरों में एक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक पत्रकार के सवाल से नाराज़ होकर उन्हें `टिपिकिल यूपी टाइप' कहा। ये 'टिपिकल यूपी टाइप' क्या होता है?
चुनाव सिर पर हैं और बीजेपी राजनीतिक नफ़ा-नुकसान पर बहुत नाप-तौलकर बोलने वाली पार्टी है। इसके बावजूद अगर ग़ुस्से में वित्त मंत्री के मुँह से `टिपिकल यूपी टाइप' निकल गया तो ये समझना मुश्किल नहीं है कि एक राज्य विशेष के लोगों के प्रति उनकी क्या राय होगी।
नब्बे के दशक में जब मैं राँची से दिल्ली आया था, तब मैंने बिहारियों के प्रति एक अजीब सी घृणा देखी। दो-चार भले टाइप सहकर्मी मुझसे कहते अकेले में कहते थे-- "यार तू बिहारी नहीं लगता।"
उनके हिसाब से यह एक कंप्लीमेंट था, मगर मेरे लिए एक गाली थी। आज में उन पुराने लोगों को याद करता हूँ और उनमें से बहुत से लोगों के सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल देखता हूँ, तो उसमें सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नफ़रत पाता हूँ।
नफ़रत अपने लिए नये-नये शिकार, नये ठिकाने ढूँढता रहता है। अमित शाह हिंदू एकता की ख़ातिर जाट को याद दिला रहे हैं कि वो मुग़लों से लड़े थे।
दूसरी तरफ़ बीजेपी के ना जाने कितने विधायक और मंत्री जाटों की गर्मी उतारने देने की बात कह रहे हैं।
नफ़रत की यही प्रकृति है।
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