शैलेष शुक्ला।
मेरे घर के मंदिर में भगवान बुद्ध की पद्मासन प्रतिमा है। राम दरबार का चित्र है, लड्डू गोपाल और शिवलिंग हैं. सिख बंधुओं का आना-जाना है।
वह गुरु नानक देव का चित्र देकर जाते हैं जिसे बड़ी श्रद्धा से मंदिर में रखा जाता है।
बीच में जब मकान बन रहा था तो एक जैन बंधु से बिल्डिंग मटेरियल लिया था।
उन्होंने महावीर के कैलेंडर के साथ सुंदर सा चित्र दिया। उसे भी बड़ी श्रद्धा से मंदिर में सजा दिया गया।
आस्था, सद्भाव, प्रेम, करुणा और दया यह गुण हिंदू होने के नाते बचपन से ही मिले हैं।
स्वाभाविक हैं, इसमें दिखावा या पाखंड नहीं है। मन में राम बगल में छुरी वाला भाव भी नहीं है।
क्योंकि हिंदू धर्म की बुनियादी अवधारणा ही वसुधैव कुटुंबकम की है।
घर में जब भी सत्यनारायण की कथा होती है तो धर्म की जय बोली जाती है, अधर्म के नाश का संकल्प लिया जाता है।
केवल मेरे धर्म की जय-जय कार हो और दूसरे धर्म का पराभव हो यह विचार भी हिंदू होने के नाते नहीं आता है।
इस पृथ्वी की सबसे पुरानी धार्मिक परंपरा में पैदा होने के कारण ही विवादित विषयों पर भी धीर - गंभीर रहना हिंदू होने के नाते मेरे डीएनए में है।
और मैं ही क्यों इस देश के करोड़ों हिंदुओं की यही तो विशेषता है, आज से नहीं सैकड़ों वर्षों से।
तभी तो पारसियों ने जब राजा जादव राणा से शरण मांगी तो उन्होंने शस्त्र नहीं दूध का पात्र आगे किया था और पारसियों ने उस दूध में शक्कर की तरह घुल जाने का वचन दिया था।
आज शक्कर की तरह दूध में घुले हैं पारसी।
किंतु कुछ हैं जो इस दूध को फाड़ना चाहते हैं, शक्कर की मिठास की जगह नींबू की कटुता पैदा करना चाहते हैं।
आम आदमी पार्टी के मंत्री राजेंद्र पाल ने यही कोशिश की है।
उन्होंने मंच से राम - कृष्ण को न पूजने का आवाहन करके न केवल अपनी वैचारिक निम्नता का परिचय दिया है बल्कि करुणा, प्रेम और सद्भाव के सागर भगवान बुद्ध को भी अपमानित किया है।
महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन काल में कभी भी सनातन का अपमान नहीं किया।
वे कर्मकांड के विरोधी थे, धर्म के ढोंगी और पाखंडी ठेकेदारों के विरुद्ध थे।
राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रति उनके मन में कोई विद्वेष नहीं था।
उन्होंने एक मार्ग बताया और संसार उस पर चल पड़ा।
उनके मार्ग से किसी भी सनातनी को आपत्ति नहीं थी बल्कि, देश में एक दौर ऐसा भी आया जब पूरा देश बुद्धमय हो गया।
शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ के द्वारा सनातन की पुनः स्थापना की गई, यह परिवर्तन शस्त्र से और रक्तपात से नहीं हुआ, वाद विवाद से हुआ।
क्योंकि न तो शंकराचार्य ने कभी बुद्ध की आलोचना की और न ही बुद्ध के अनुयायियों ने कभी राम, कृष्ण, शंकर की उपेक्षा की. दोनों ही भारतीय संस्कृति के अनुयाई थे।
वह संस्कृति जिसमें शस्त्र से ज्यादा शास्त्र का महत्व है, रक्तपात से ज्यादा वैचारिक वाद-विवाद का महत्व है.
वादे वादे जायते तत्त्वबोधः।
बोधे बोधे भासते चन्द्रचूडः॥
(रम्भा शुक संवाद)
आज बुद्ध को मानने का दिखावा करने वाले आम आदमी पार्टी के उस मंत्री ने राम और कृष्ण का ही अपमान नहीं किया बल्कि बुद्ध का भी अपमान किया।
अहंकार और बहकावे में आकर अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म का ही उपहास नहीं किया बल्कि 'धम्मम शरणम गच्छामि' के मार्ग को भी कलुषित किया।
मेरे जैसे हिंदू धर्म को मानने वाले बौद्ध नहीं हैं लेकिन भगवान बुद्ध से अथाह प्रेम करते हैं। हम जैन भी नहीं है किंतु महावीर के सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं।
किंतु आम आदमी पार्टी के उस मंत्री ने तो बौद्ध होकर भी प्रेम करना नहीं सीखा. तथागत की तरह धर्म, परंपरा और मान्यता को सम्मान देना नहीं सीखा।
अवलोकितेश्वर के अनुयायियों ने तो पतित कर्म करने वाली गणिकाओं का भी उद्धार किया था।
किंतु मंत्रीजी ने तो अपने शब्दों से ही इस देश के जन-जन में पूज्य राम-कृष्ण का अपमान कर दिया।
मंच से कृष्ण - राम को न पूजने की शपथ दिलाई, सनातन परंपरा और धर्म का उपहास किया।
राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित होकर भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का उपहास किया. बुद्ध के अनुयाई होकर भी वैमनस्य के सर्पदंश से आत्मघात कर लिया।
पूरी दुनिया बुद्ध के मार्ग पर चले भला किसे आपत्ति है?
कौन सनातनी है जो यह कहेगा कि बुद्ध के मार्ग पर न चला जाए?
बुद्ध की शरण में जाने से कौन रोकेगा?
यदि इस धरती के कोटि-कोटि मानव बुद्ध की शरण में चले जाएंगे तो क्या सनातन का पराभव हो जाएगा? क्या बुद्ध, महावीर और गुरु नानक को मानने से सनातन की महिमा में कमी आ जाएगी?
यदि सनातन एक चुनरी है तो बुद्ध, महावीर और गुरु नानक उस चुनरी पर जड़े हुए नगीने हैं।
हम इतने कृतघ्न नहीं हैं कि सनातन की चुनरी में जड़े हुए इन नगीनों का अपमान करें।
किंतु आपने राम और कृष्ण का अपमान करके यह सिद्ध कर दिया कि आप विधर्मी हैं। क्योंकि बुद्ध का सच्चा अनुयाई तो इस धरा पर उत्पन्न हुए किसी भी धर्म और उसके मानने वालों का अपमान नहीं कर सकता।
बहराल इस नासमझी के लिए श्री कृष्ण और प्रभु राम तो आपको क्षमा कर देंगे।
मेरी महात्मा बुद्ध से प्रार्थना है है कि वह राजनीतिक स्वार्थ में अंधे हो चुके आप जैसे लोगों को अवश्य क्षमा करें।
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