श्रीकांत सक्सेना।
शराब ने सदियों से ख़ानाखराब कर रखा है, आज़ादी के पचहत्तर साल बाद भी इसका नशा दिनोंदिन चढ़ता ही जा रहा है।
गुजरात में सरकार को जो चढ़ी सो आज तक नहीं उतरी, अभी तक ये ख़ुमारी ऐसी है कि गुजरात को अब और शराब से मुक्त रखा गया है।
यहाँ जिस ब्रांड की शराब का चलन है उसका नाम सत्ता है।
हालांकि गुजरात में शराब की दुकानें दिखाई नहीं देती हैं पर मज़ा ये कि बस एक फ़ोन पर शराब घर पहुँच जाती है।
इतनी अच्छी सेवा देश में कहीं नहीं है।
गुजराती सत्तोरिए इतने शौक़ीन हैं कि सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
पाकिस्तान ने तो ले देकर किसी प्रकार जिन्ना और भुट्टो से छुटकारा पा लिया(दोनों गुजराती थे) लेकिन हिंदुस्तान को तो गुजराती सत्तोरिए पूरे का पूरा निगल गए।
नशा अभी तक तारी है, वैसे केरल हाईकोर्ट के एक फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी।
केरल हाईकोर्ट का आदेश है कि सिर्फ़ पाँच सितारा होटलों को छोड़कर किसी भी दूसरे बार में शराब नहीं परोसी जा सकेगी।
इस बात पर तीन सितारा और चार सितारा होटलों को ऐतराज़ है कि उन्हीं के पेट पर लात क्यों मारी जा रही है?
ख़ूब सोच विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तय पाया कि फ़ैसला भले ही अतार्किक हो पर राज्य सरकार को यह अधिकार होना चाहिए कि वह चाहे तो 'जनहित' में कोई अतार्किक यानि बेतुका आदेश भी जारी कर दे।
फिलहाल राज्यों के मामलों को बरतरफ कर दें, यह ख़ुमारी देश में लंबी चलने वाली है और जल्दी टूटने वाली नहीं है।
ख़ुशख़बरी ये कि दिल्ली में शराब की ऐसी दुकान है जहाँ सिर्फ़ महिलाएँ ही शराब बेचती हैं।
कहते हैं यहाँ जो शराब मिलती है वह दूसरी दुकानों के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा तीखी यानि कड़क होती है।अब तो सरकार शराब की होम डिलीवरी भी कर रही है।
इसी से स्पष्ट है कि शराब हिंदुस्तान की सरकारों के लिए कितनी ज़रूरी है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जगत में भारत बनिया देश कहा जाता है, जिसका एकमात्र ध्येय मुनाफ़ा और सिर्फ़ मुनाफ़ा होता है।
कोरोना से पिछले एक-डेढ़ वर्ष में बीफ के निर्यात में भी भारत ने रिकार्ड वृद्धि दर्ज़ की है। कोरोना के ख़ौफ़ से ये निर्यात रुका।
भला हो कोरोना का इस बहाने गौमाता और उनकी वंशबेल कुछ दिन ज़िंदा रह सकी।
सरकार की सरकार जाने वरना भारत के ज़्यादातर गाँव कम से कम शराब के मामले में तो हमेशा ही आत्मनिर्भर रहे हैं और इस मामले में केन्द्र भी कोई हस्तक्षेप कभी नहीं करता।
ये कुछ-कुछ स्वदेशी आंदोलन की तरह हिंदुस्तान के आत्माभिमान के मुद्दे जैसा है।
हर साल जितने हिंदुस्तानी ज़हरीली कही जाने वाली इस देसी शराब के लिए आत्माहुति देते हैं उनकी संख्या इतनी है कि आपका दिमाग़ चकरा जाए।
सारे युद्धों में या फिर कोरोना को भी मिला लें तो इतने सैनिक या नागरिक शहीद नहीं हुए जितने सिर्फ़ शराब की बलिवेदी पर चढ़ गए।
पिछले दिनों यूपी के अलीगढ़ में ही अस्सी से ज़्यादा वीर ज़हरीली शराब पीकर शहीद हो गए, तो गुजरात में तो लगभग दो सौ शराब भक्तों ने आत्माहूति दे दी।
शराब को लेकर सरकारों के मोह की बातें तो अपुन पहले ही कर चुके हैं।
वैसे आपने समुद्रमंथन के दौरान विश्वमोहिनी द्वारा बाँटी गई शराब के बारे में तो सुना ही होगा।
आपको नहीं दिखता आजकल सरकार भी विश्वमोहिनी बनकर शराब बाँट रही है।
गीता में भगवान कृष्ण ख़ुद कह चुके हैं-त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा,यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयंते।
शराब हमारे आप्तपुरुषों से लेकर आद्यपुरुषों तक सभी को समान रूप से प्रिय रही है।
सत्ता के सत्तोरियों,विदेशी लेने वाले साहबों या फिर देसी के दीवाने, बलिदानियों की कितनी ही गाथाएँ आपने अवश्य सुनी होंगी।
कहते हैं इनका नित्यपाठ करने से अलमारी में कभी शराब समाप्त नहीं होती।_श्रीकांत
कल्याणमस्तु
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