रजनीश जैन।
ध्वजारोहण का यह तरीका आपको थोड़ा अलग सा लग सकता है। मध्यप्रदेश के दमोह रेस्टहाऊस के केयरटेकर मकबूल सरकारी वर्दी में नंगे पैर ध्वजपरिसर में दाखिल होते हैं। शीश नवाकर ध्वजस्तंभ की रज माथे पर लगाते हैं।
फिर रस्सी खींचकर बमुश्किल झंडा फहराते हैं, उन्हें लगता है कि ध्वज सही नहीं फहरा है तो वे उस बड़ी देर तक सुधारने की कोशिश में लगे रहते हैं।
फिर पूरा राष्ट्रगीत खुले गले से गाते हुए तिरंगे को सलामी देते हैं। अगरबत्तियां सुलगाकर एक पूजा की थाली उन्होंने पहले से वहां रखी है। उसमें से मिठाई निकालकर ध्वज को चढ़ाते हैं। फिर नारियल फोड़ कर चढ़ाते हैं। गुलाब की पंखुड़ियां अर्पित करते हैं। फिर बैठकर शीश झुकाते हैं। तब पूजा की सामग्री उठाकर भीतर ले जाते हैं। कुछ देर बाद वे लौट कर गेट के बाहर से अपनी चप्पलें पहनते हैं।
झंडावंदन के साथ झंडा पूजा देखें यहां क्लिक करके
ढूंढ़ना चाहें तो इस वीडियो में आपको ध्वज आचार संहिता का उल्लंघन भी नजर आ जाऐगा लेकिन उनकी तिरंगे के प्रति श्रद्धा लाजबाब कर देती है। मकबूल के पुरखों को अंग्रेज इस इलाके में खानसामा बना कर लाए थे। उनके पिता मुवीन 1893 में बने सागर के सर्किटहाऊस में ही खानसामा के रूप में काम करते फौत हुए जिसके केयरटेकर अब मकबूल के बड़े भाई मकसूद हैं।
इसी 26 जनवरी को जब मकबूल दमोह में इस अनोखे अंदाज में झंडा चढ़ा रहे थे उस दौरान ही सागर में उनके भाई मकसूद को सागर में श्रेष्ठ सेवाओं के लिए गृह एवं परिवहन मंत्री भूपेंद्रसिंह के हाथों प्रशस्ति पत्र मिल रहा था।
लेखक मप्र के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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