श्रीकांत सक्सेना।
आम आदमी और ख़ास आदमी में सबसे अहम फ़र्क़ यह होता है कि आम आदमी हाथ आए अवसरों को भी गँवा देता है या फिर अवसरों का ही शिकार हो जाता है।
वहीं ख़ास आदमी हवा में तैर रहे वायरस रूपी अवसरों को भी कैच करके उन्हें अपनी जेब में रख लेता है और जब ज़रूरत हो तो उनका कामयाबी से इस्तेमाल भी कर लेता है।
अब कोविड को ही ले लीजिए, लाखों आम लोग अपनी ज़िंदगी भर की सारी कमाई,स्वास्थ्य,बहुत से मित्रों आदि कोविड की भेंट चढ़ा बैठे,वहीं थोड़े से राजनीतिक संरक्षण का छौंक लगाकर बहुत से अस्पतालों,दवाई वालों,ऑक्सीजन सिलेंडर वालों से लेकर आईसीयू के पैरामेडिक्स और यहाँ तक कि अस्पतालों के शवगृहों से लेकर श्मशान वालों तक ने जी भर के कमाई की और इस सुनहरे अवसर का भरपूर लाभ उठाया।
आम आदमी को इन सभी ने आम की ही तरह काटा,चूसा और फेंक दिया।
कोविड के और भी बहुत से फ़ायदे हुए मसलन सोनिया गाँधी कोविड की वज़ह से कुछ समय के लिए ही सही ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय के सामने हाज़िर होने से बच गईं।
वहीं सारा हिंदुस्तान कमरतोड़ मँहगाई और ऊपर से बेरोज़गारी की मार से कराह रहा है।
संसद में विपक्ष इस मुद्दे पर बहस करके सरकार को घेरने की कोशिश में उन्नीस सांसदों की बलि दे चुका है।
वहीं सरकार ने एक बार फिर कामयाबी से कोविड कार्ड भी खेला और एक नया रिकार्ड भी क़ायम कर दिया।
भारत के इतिहास में राज्य सभा ने एक साथ उन्नीस सांसदों को कभी बाहर का रास्ता नहीं दिखाया था,ये पहली बार हुआ है।
अबकी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को कोविड हो गया है,लो कर लो मँहगाई पर बहस।
विपक्ष को इत्ती सी बात समझ में नहीं आ रही कि मँहगाई के मुद्दे पर उनके सवालों का जवाब सिर्फ़ वित्त मंत्री ही दे सकती हैं और वित्त मंत्री इन दिनों सिक लीव पर हैं।
यानि बीमार हैं और बीमारी भी कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि कोविड है।
इक्कीसवीं सदी की पहली नवोढ़ा महामारी कोविड।
अब आप ही बताइए एक बीमार स्त्री को संसद में आने के लिए मजबूर करना क्या लोकतांत्रिक कार्य है?
भले ही वो स्त्री देश की वित्त मंत्री ही क्यों न हो, मँहगाई का क्या ,थोड़ा सा इंतज़ार नहीं कर सकती?
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