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दो बार शपथ दिलाना क्या संविधान सम्मत और आवश्यक था ?

खास खबर            Jul 08, 2024


देवेंद्र वर्मा।

आज मध्य प्रदेश में राजनीतिक घटना क्रम में कांग्रेस छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित होने  की घोषणा करने वाले कांग्रेस के पाँच बार के वरिष्ठ विधायक श्री रामनिवास रावत को मोहन यादव  मंत्रिमंडल में मंत्री के पद पर सम्मिलित किया।

 उनको मंत्रिमंडल में सम्मिलित करने के साथ उनकी दलीय संबद्धता पर क़यास लगाए जा रहे हैं,लेकिन अब अधिक चर्चा इस बिंदु पर केंद्रित है कि,क्या रामनिवास रावत ने  राज्य के राज्य मंत्री के रूप में शपथ लिए जाने के पश्चात यह ध्यान में आने पर,कि उन्हें मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया जा रहा है,आपा धापी में तथा कथित त्रुटि सुधार करने के लिए दोबारा राज्य के मंत्री के रूप में शपथ दिलायी जाना संविधान सम्मत तथा आवश्यक था।

इस हेतु संविधान के संबंधित अनुच्छेद तथा अनुसूची की सूक्ष्म विवेचना किया जाना आवश्यक है।

संविधान में केंद्र एवं राज्यो के लिये मंत्री परिषद के लिए एक समान प्रावधान हैं।यहाँ राज्य के प्रावधानों को संदर्भित करते हुए ही विवेचना समीचीन होगा।

अनुच्छेद 163एवं 164 क्रमशः मंत्री परिषद एवं मंत्रियों के बारे में अन्य उल्लेख है।

इन अनुच्छेद में मुख्यमंत्री और मंत्रियों का ही उल्लेख है,अन्य श्रेणी जैसे कि राज्यमंत्री,राज्यमंत्री

(स्वतंत्र प्रभार)या उपमंत्री श्रेणियों का उल्लेख नहीं है।

अनुच्छेद 164(3)में यह प्रावधानित है कि”किसी मंत्री द्वारा पद ग्रहण करने से पहले राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्ररूपो के अनुसार उसको पद और गोपनीयता की शपथ दिलायेंगे।

तीसरी अनुसूची में दिये गये राज्य के मंत्री के लिये पद की शपथ के प्रारूप में “संविधान के प्रति निष्ठा” और “गोपनीयता के लिए शपथ” का जो प्ररूप दिया है,उसमें केवल मंत्री का ही उल्लेख है,अन्य श्रेणीयो  का नहीं।

आशय यह है कि मंत्रिमंडल का सदस्य होने के पूर्व संविधान के प्रति निष्ठा और पद की गोपनीयता की शपथ महत्वपूर्ण है,तथा मंत्री राज्यमंत्री जैसी श्रेणियाँ मतवपूर्ण नहीं है,और इन श्रेणियों का उल्लेख भी संविधान में नहीं है।

संविधान में मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या सीमित करनेवाले संशोधन में भी केवल मंत्री शब्द का ही प्रयोग किया गया है।

 शपथ के साथ अन्य वाक्य अथवा शब्द  बोलने पर उन्हें शपथ का हिस्सा नहीं बनाया जाता रहा है, और अब तो इस संबंध में लोकसभा में अध्यक्ष ने निदेश भी जारी कर दिये हैं।

राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण के पश्चात निर्धारित प्ररूप में शपथ पत्र पर हस्ताक्षर भी करने होते हैं,और यही अधिकृत रिकॉर्ड भी होता है

निश्चित ही हस्ताक्षर तो तीसरी अनुसूची के प्ररूप जिसमें “मंत्री” शब्द का उल्लेख है,पर ही किये होंगे।

ऐसी स्थिति में दोबारा शपथ दिलाना  क्या आवश्यक था?

यह विचारणीय है।

पूर्व प्रमुख सचिव छत्तीसगढ़ विधान सभा

 

 

 


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