डॉ.रामावतार शर्मा।
फाइबर यानि रेशा हमारे भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है परंतु लोगों की भोजन प्राथमिकता के रहते उनके खाने में रेशे की कमी एक आम बात है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी 95 प्रतिशत लोगों के भोजन फाइबर की कमी पाई जाती है। वहां के अध्ययन बताते हैं कि अमेरिका के लोग अवश्यकता से 50 प्रतिशत ही फाइबर अपने भोजन में उपभोग करते हैं। प्राकृतिक फाइबर सिर्फ वनस्पति आधारित भोजन में हो होते हैं। भारत में भी भोजन की बदलती प्राथमिकताओं के चलते रेशे की कमी आम हो चली है। रेशेदार भोजन महज फैशन के तौर पर नहीं बल्कि दैनिक उपभोग में लेना चाहिए। फाइबर से परिपूर्ण भोजन गैर जिम्मेदारी से भी सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर पूर्ण जानकारी के अभाव में कई तकलीफों का सामना भी करना पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि रेशे से भरपूर भोजन के पहले और बाद में पानी को पर्याप्त मात्रा में नहीं उपयोग में लिया जाए तो व्यक्ति के कब्ज और डिहाइड्रेशन हो सकता है। ये दोनों ही गंभीर समस्याएं हैं जो पीड़ित व्यक्ति की दिनचर्या और कार्य को प्रभावित करती हैं।
दूसरी तरफ यदि रेशेदार भोजन का पर्याप्त जल के साथ सेवन किया जाए तो कब्ज दूर होती है, पाइल्स नियंत्रण में रहते है और डायवर्टीकुलाइटिस में राहत मिलती है। ध्यान रहे कि पिछले 20 - 25 सालों में अभिताभ बच्चन अपनी प्रथम चोट के बाद जब दो बार अति गंभीर रूप से बीमार हुए तो उनको डायवर्टीकुलाइटिस रोग ही हुआ था। हमारे भोजन में 22-35 ग्राम फाइबर होना चाहिए। पर्याप्त फाइबर का उपभोग होने पर शरीर का वजन भी नियंत्रित रहता है और चयापचन ( मेटाबॉलिज्म ) बेहतर प्रकार से संचालित रहता है। रेशे युक्त भोजन के सेवन से आंतों को बैक्टिरियल माइक्रोबायोम स्वस्थ और विकसित रहता है जिसके फलस्वरूप शरीर में प्रज्वलन ( इन्फ्लेमेशन ) कम हो जाता है। ऐसा लंबे समय तक होते रहने से उम्र में भी कुछ वर्षों की बढ़ोतरी संभव है। रेशे के अन्य लाभकारी गुणों में रोग मुक्ति भी एक पक्ष है क्योंकि अध्ययन इंगित करते हैं कि रेशेयुक्त भोजन से बड़ी आंत का कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज एवं अवसाद रोग कम होते हैं। इन गुणों का मतलब यह नहीं है कि रेशे का मनमाना सेवन किया जाए। अत्यधिक सेवन से पेट में फुलावट, दस्त, आंत में रुकावट तथा डिहाइड्रेशन हो सकता है।
रेशे के स्रोत शाकाहारी भोजन ही होते हैं। पूर्ण अनाज, अमरूद, रसभरी और अन्य सभी बेरी, आमला, पैशन फ्रूट ( कृष्णकमल फल ), नाशपाती समूह के फल, किवी तथा अंगूर रेशे से परिपूर्ण होते हैं। सब्जियों में आर्तिचोक ( हाथी चक ), टोफू, कद्दू, ब्रसल स्प्राउट्स, शकरकंद, याम, ड्रमस्टिक ( मोरिंगा ), चपन कद्दू, जुकिनी, लौकी और एवोकाडो आदि में पर्याप्त रेशा होता है। सब्जियों के अलावा राजमा, सेम, फ्रेंच बीन तथा अन्य सभी फलियों जिनमें मूंग फली भी शामिल है पर्याप्त घुलनशील रेशा मौजूद होता है। कद्दू के बीज, नारियल, चिया बीज, बादाम, शाहबतूल ( चेस्टनट ) और सूरजमुखी के बीज भी रेशे के बेहतरीन स्त्रोत हैं। इसके अलावा सफेद चावल की बजाय भूरा चावल ( ब्राउन राइस ) भी इस मायने में बेहतर होता है।
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