मल्हार मीडिया के लिये अशोक मनवानी।
यह बहुत कम लोगों को जानकारी है कि भारत की स्वतंत्रता के लिए शहीद अनेक नौजवानों के निकट परिजन आज भी बेहद सादी जिंदगी जीते हैं। ऐसे परिवार सरकार से किसी सहायता की आशा नहीं करते। इन परिवारों को आज भी नाज़ है कि उनके परिवार से कोई नौजवान देश की आजादी के लिए शहीद हुआ। मुंबई के चेम्बूर इलाके में ऐसा ही एक परिवार है - कालानी परिवार जिन्हें बहुत कम अवसरों पर ही शासन के प्रतिष्ठापूर्ण कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है। महाराष्ट्र सरकार क्या इन परिवारों को कम से कम साल में सिर्फ दो दिन गणतंत्र दिवस और आजादी की सालगिरह के दिन ही सही सम्मान देगी?
वर्ष 2014 और 2015 में भोपाल के निवासी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत लेखक अशोक मनवानी ने कालानी परिवार से भेंट की। हम इतिहास के पन्ने पलटें तो ज्ञात होगा कि किस तरह ब्रिटिश सरकार ने युवा क्रन्तिकारी हेमू कालानी को 21 जनवरी 1943 को सिंध प्रान्त के सक्खर कारावास में फांसी पर लटका दिया था। तब हेमू की आयु सिर्फ उन्नीस वर्ष थी। उस कालखण्ड को याद करते हुए हेमू के छोटे भाई श्री टेकचंद कालानी (चौरासी बरस ) और उनकी पत्नी श्रीमती कमला कालानी ने बताया कि हेमू भैया बचपन से क्रांन्तिकारी गतिविधियों में शामिल रहे। हेमू इन कार्यो की घर पर भी पूरी जानकारी नहीं देते थे। हेमू सरदार भगत सिंह की शहादत से बहुत प्रभावित थे। अंग्रेजों के लिए मन में तीव्र क्रोध था जो अक्सर बातचीत में जाहिर होता था।
एक दिन एक रेलगाड़ी के फौजी साजो सामान लिए बलूचिस्तान के क्वेटा के लिए जाने की बात पता चलते ही हेमू कुछ साथियों के साथ रेलगाड़ी पलटने की योजना बनाकर घर से निकले। यह रेलगाड़ी 23 अक्टूबर 1942 को निकलनी थी ,तय समय पर साहसी देशभक्तों की मण्डली चल पड़ी सर पर कफ़न बांधे। घटना को अंजाम देने के पहले एक सिपाही की नजर इन देशप्रेमियों पर पड़ गई। फिर मचा शोर और दूसरे सिपाही भी तत्काल वहां आ पहुंचे। श्री टेकचंद जी कुछ पल रूककर अपनी बात आगे बढ़ाते हैं।
वृतांत बताते हुये उनकी आँखें नम हो जाती हैं, वे बताते हैं फिर हेमू को जेल में डाल दिया गया। मुकदमा चला और अंततःउन्हें मृत्यु दंड का फैसला सुनाया गया। हेमू बिलकुल भी व्यथित नहीं थे। उनके आखिरी शब्द थे -आप लोग मेरी मौत पर रोना नहीं ,मैं पुनर्जन्म लूंगा ,हमारा देश जल्द ही आजाद हो रहा है। टेकचंद जी ने यह भी बताया कि जेल में अनेक यातनाएं सहने के बाद भी हेमू का वजन बढ़ गया था ,मतलब उनको नजदीक आ रही मौत की घड़ी से लेश मात्र भी भय नहीं था। हेमू से जब कभी परिवार के लोग उसके विवाह की बात करते ,हेमू बात को टाल देते ,कहते "करूँगा शादी और आप लोग देखना कि कितने सारे लोग आएंगे मेरी शादी में। टेकचंद जी यह बात बताते बहुत भावुक हो जाते हैं। कुछ पल खामोश रहने के पश्चात टेकचंद जी कहते हैं "हम जीतकर भी हार गए ,भाऊ मरकर भी अमर हो गए।"
एक मिनिट के विराम के बाद आखिरी में टेकचंद जी कहते हैं हम गौरवान्वित हैं देश में सैकड़ों शहरों में हेमू की प्रतिमा स्थापित है। संस्थाओं के नाम हैं और अनेक लोग घरों में बच्चों का नाम हेमू रखते हैं। हेमू को सदियाँ याद रखेंगी। मुम्बई में कालानी परिवार शिक्षा का उजियारा फैलाने ,गरीब़ों को भोजन करवाने और आयुर्वेद के प्रचार जैसे काम कर रहा।
बताते हैं जब हेमू को जेल में डाल दिया गया और उन पर ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ने का षड्यंत्र रचने का मुकदमा चला और बाद में फिर उन्हें जब मृत्यु दंड का फैसला सुनाया गया तब भी हेमू बिलकुल भी व्यथित नहीं थे। उनके आखिरी शब्द थे - "आप लोग मेरी मौत का अफ़सोस नहीं करना ,मैं पुनर्जन्म लूंगा ,हमारा देश जल्द ही आजाद हो रहा है।" बताते हैं कि जेल में अनेक यातनाएं सहने के बाद भी हेमू का वजन बढ़ गया था ,मतलब उनको नजदीक आ रही मौत की घड़ी से लेशमात्र भी भय नहीं था।
हेमू से जब कभी परिवार के लोग उसके विवाह की बात करते ,हेमू बात को टाल देते ,कहते " जरूर करूँगा शादी और आप लोग देखना कि कितने सारे लोग आएंगे मेरी शादी की बारात में। हेमू की अंतिम यात्रा में उनकी क़ुरबानी को सम्मान देते हुए सक्खर शहर की सड़कें लोगो से पट गई थीं। उस दिन सड़कें सिर्फ स्वतंत्रता प्रेमियों से भरी हुईं थीं। जब हेमू की अर्थी उठी तो मानो शहीद की बारात चली हो ,जैसा हेमू इसी अंतिम यात्रा को बारात की संज्ञा देते हुए अपनी भावनाएं व्यक्त किया करते थे। आज हम ऐसे शहीदों की बदौलत आजाद हैं। आंखें नम हो जाती हैं ऐसे वीरों को याद करते हुए।
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