राघवेंद्र सिंह।
कल तक कहते थे नफरमान है नौकरशाही उसे ठीक करते—करते सत्ता और संगठन भी बेलगाम होने लगे हैं। यह एक वाक्य मध्यप्रदेश की सियासत और सरकार के कामकाज पर निष्कर्ष निकालने वाला माना जा सकता है। 14 साल की भाजपा सरकार और 12 साल से लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गुड गवर्नेंस के नाम पर ही सत्ता में आते रहे हैं।
लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मोदी तक नारा भी यही लग रहा है स्वराज से सुराज की तरफ। इस पूरी चर्चा की शुरूआत में मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का एक शेर जोड़ना चाहेंगे - कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिये, कहां चराग मय्यसर नहीं शहर के लिए। सुराज लाने का जिम्मा जिनके ऊपर था उनके बिगड़े बोल ही बचे—खुचे सुराज को शायद कुराज में बदलने का काम कर रहे हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान के दो बयानों की बानगी सत्ता और संगठन के चालचरित्र में आ रहे बदलाव को समझने में सहायक होगी।
प्रदेश के कोलारस विधानसभा क्षेत्र के बदरवास कस्बा। यहां उप चुनाव होना है और जीतने के मकसद से शिवराज सिंह चौहान की किसानों के बीच में एक सभा होती है। पिछले दिनों किसानों की नाराजगी से चिंतित मुख्यमंत्री इस सभा में ऐसा कुछ कह जाते हैं जो सत्ता प्रमुख के नाते किसी को हजम नहीं हो पा रहा है। किसान बिजली के अनाप-शनाप आ रहे बिलों की शिकायत करते हैं भावुकता से भरे सीएम कह देते हैं कि किसान बिल जमा न करें जब तक कि उनका बिजली कंपनियां निपटारा नहीं कर देती हैं।
एक राजनेता के नाते और किसानों का दिल जीतने के लिए तो यह ठीक है। लेकिन निपटारा होने तक एक मुख्यमंत्री बिल जमा न करने की बात कहे यह किसानों को तो खुश कर सकती है हालांकि इसकी भी संभावना अब कम लगती है। लेकिन बिलों का निपटारा हो न हो नियम कायदों का निपटारा जरूर इससे हो जाएगा।
सबको याद होगा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लीडर जो कि अब उस सूबे के मुख्यमंत्री हैं अरविंद केजरीवाल ने भी बिजली के बिल ऊंटपटांग आने पर दिल्लीवासियों से बिल जमा न करने की बात कही थी। तब इसकी घोर आलोचना हुई। लेकिन केजरीवाल ने यह बात एक पार्टी के नेता के रूप में कही थी। मुख्यमंत्री के रूप में नहीं। जब वे सीएम बनते हैं तो उन्होंने बिजली के बिलों को युक्तिसंगत बनाया और बिजली की दरें भी सस्ती कर दीं। लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर बिल जमा नहीं करने की बात केजरीवाल ने भी कभी नहीं की।
केजरीवाल एक नवजात पार्टी के अपरिपक्व लीडर के रूप में इस गुनाह की माफी के काबिल माने जा सकते हैं मगर पुरानी पार्टी और घुटे पिसे नेता और 12 साल के मुख्यमंत्री से यह अपेक्षा की जाना उचित नहीं लगता। दरअसल किसानों की नाराजगी के चलते मुख्यमंत्री एक किस्म से किसान फोबिया के शिकार भी लगते हैं। वे किसानों की फसल बीमा योजना में मुआवजे में खास मदद नहीं कर पाए। लोगों को पांच-पांच रुपये की भी मुआवजा राशि मिली।
भावांतर में किसानों की आलोचना झेलनी पड़ी। गेहूं, चने की फसल के लिये डीएपी और यूरिया खाद के लिये किसानों को संकट का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में वे किसानों का हाथ अपने से छूटता महसूस कर रहे हैं। लगता है उनके पकडऩे और जकड़े रखने के लिए ही बदरवास के किसान सम्मेलन में मुख्यमंत्री ये बयान दे बैठे कि बिल जमा न करें।
यह एक बानगी है मुख्यमंत्री के बयानों की जिसके दूरगामी नतीजे राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में दिखेंगे। सत्ताधारी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का बयान भी काबिल—ए—गौर है। यह बयान शिवराज सरकार के 302 के आरोप में गिरफ्तारी वारंट से बचने की कोशिश कर रहे मंत्री लाल सिंह आर्य के संबंध में है।
नंदु भैया कहते हैं कि वारंट जारी होने से क्या होता है। जब तक जमानत न हो जाए कोर्ट पेश नहीं होना चाहिये। अब इस दो लाइन के जो मायने निकलते हैं वे खतरनाक हैं। मंत्री पद की शपथ के दौरान विधि के पालन की बात भी माननीय करते हैैं लेकिन मंत्री आरोपी है। अदालत से फरार हैं। इसके बाद न वे इस्तीफा दे रहे हैं न इस्तीफा मांगा जा रहा है। साथ में यह भी कहा जा रहा है कि वे इस्तीफा देंगे भी नहीं।
इस सबके बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का जो बयान है वह दुस्साहस के साथ एक किस्म की अराजकता की तरफ संकेत करता है। यहां यह भी बात आयेगी कि अगर नंदु भैया विपक्ष के नेता होते तो इस पर लीपापोती हो सकती थी लेकिन उनकी पार्टी सत्ता में है और कानून का पालन करना और कराना उनका हर तरह से दायित्व है।
ऐसे में मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के बयान सनसनी फैलाने वाले तो हैैं ही। भविष्य में अराजकता की तरफ ले जाने वाले भी हैैं। सूबे की स्थिति के लिए कहा जा सकता है - यहां घोड़े स्वतंत्र और सवारों पर लगाम है। अपने राज्य में हुकूमत का अच्छा इंतजाम है।
इस सबके बीच कांग्रेस का रुख बड़ा ठंडा सा है। भाजपा सत्ता और संगठन के नेताओं की अराजक बयानबाजी के बीच ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस और उसके नेता केवल परिस्थितियों का आनंद ले रहे हैं। उनको लगता है कि जितना भाजपा नेता बेलगाम होंगे उनके सत्ता में वापसी का रास्ता उतना ही आसान होगा।
उनकी यह तटस्थता भी एक किस्म का लोकतंत्र के साथ अपराध है। इसके लिये महाकवि रामधारी सिंह दिनकर की दो पंक्तियां याद आती हैं - समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। यह लाइनें पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह अक्सर बातचीत और भाषण में दोहराया करते थे।
लेखक न्यूज चैनल IND 24 के समूह प्रबंध संपादक हैं
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