ढब्बूजी को जानते हैं आप? नहीं! तो मिलिये नलसाज आबिद सुरती से

मीडिया, वीथिका            Sep 06, 2015


prakash-hindustaniडॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी गज़ब के 'नलसाज़' हैं आबिद सुरती जी। पानी बचाने के अभियान में जुटे हैं। वे बताते हैं कि अगर किसी नल से एक सेकण्ड में एक बूँद पानी टपकता हो तो इसका मतलब है -- एक महीने में 1000 लीटर पानी की बर्बादी ! 'प्लम्बर' होने के अलावा आबिद भाई लेखक, कलाकार, कार्टूनिस्ट, फिल्मकार और न जाने क्या-क्या हैं। ''धर्मयुग' पत्रिका के पाठक उनसे परिचित होंगे ही, वे ही तो ढब्बू जी हैं। मैं उन्हीं की बात कर रहा हूँ। 80 साल के नौजवान आबिद सुरती मुंबई के मीरा रोड उपनगर में रहते हैं। आबिद सुरती जो को मैं बचपन से जानता और करीब 35 साल पहचानता हूँ, जब मैं 'धर्मयुग' में उपसंपादक था और आबिद जी संपादक डॉ धर्मवीर भारती से मिलने आते रहते थे। भारती जी ने उनकी एक किताब की भूमिका भी लिखी थी। आबिद सुरती उर्फ ढब्बू जी लेखक है, कलाकार है, नाटककार है, कार्टूनिस्ट है और, और भी न जाने क्या-क्या हैं। वे 'वन मैन एनजीओ' हैं, जो पानी की बर्बादी रोकने के लिए कार्य कर रहे हैं। 'ड्रॉप डेड फाउंडेशन' के जनक आबिद सुरती एक अनोखी शख्सियत हैं। उनकी 80 से अधिक किताबें आ चुकी है। कई पुस्तकों के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। वे हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में लिखते है।‘अतिथि तुम कब जाओगे’ फिल्म की कहानी भी उनकी एक कहानी से प्रेरित बताई जाती है। उनके बनाए कार्टून भारत की सभी प्रमुख पत्रिकाओं और पत्रों में प्रकाशित हो चुके है और होते रहते हैं। aabid-surti-03 कॉमिक कैरेक्टर ‘बहादुर’ उन्हीं की पैदाइश है. टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की प्रतिष्ठित पत्रिका धर्मयुग में ‘कार्टून कोना / ढब्बू जी’ उन्हीं की कला का नमूना था। यह इतना लोकप्रिय था कि लोग धर्मयुग को उर्दू की तरह पीछे से खोलना शुरू करते थे, क्योंकि ढब्बू जी का कार्टून अंतिम पृष्ठों पर होता था। ढब्बू जी के कार्टूनों को पसंद करने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी, आशा भोंसले और ओशो जैसी हस्तियां शामिल हैं। शाहरुख खान उनके बहुत बड़े प्रशंसक हैं, लेकिन यहां उनका जिक्र उनकी कलाकृतियों के बारे में बताने या उनके लेखन की तारीफ करने के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि एक एनजीओ के लिए किया जा रहा है। आबिद सुरती बहुत अच्छे नलसाज यानि प्लंबर हैं। नलसाजी का यह काम उन्होंने लोगों की सेवा करने के इरादे से शुरू किया था। हर रविवार को सुबह वे अपने झोले में नल सुधारने का सामान लेकर निकल पड़ते है और जिन-जिन घरों के नल टपकते रहते है, उनके नल ठीक करते है। इसकी शुरुआत कुछ इस तरह हुई कि एक दिन वे अपने दोस्त के घर गए, तो दोस्त के घर के किचन का नल बूंद-बूंद करके टपक रहा था। आबिद सुरती जी ने पूछा कि यह ठीक से बंद क्यों नहीं होता? तो मित्र ने जवाब दिया कि इसका वाशर खराब हो गया है और वाशर बदलने जैसे छोटे से काम के लिए कोई भी प्लंबर आने को तैयार नहीं है। जो आते भी है वो बहुत पैसा मांगते है, इसलिए नल टपक रहा है। आबिद सुरती ने बाद में कहीं पढ़ा कि अगर एक सेकंड में पानी की एक बूंद भी व्यर्थ जाती है तो एक महीने में करीब एक हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। हजारों घरों में अनेक नल टपकते रहते है, जिससे लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी रोकी जा सके तो इस पानी का बेहतर इस्तेमाल संभव है। आबिद सुरती ने मित्र को बताया कि वे हर महीने दस से बीस हजार रुपए का पानी बर्बाद कर रहे है, क्योंकि अगर वे इतना पानी बोतलों में खरीदते, तो उसकी यहीं लागत होती। बस, फिर क्या था। आबिद सुरती को अपना मिशन मिल गय। वे अपने मिशन में जुट गए और उन्होंने एक संस्था बना डाली- ‘ड्रॉप डेड फाउंडेशन’। इस संस्था का सूत्र वाक्य है- ‘सेव एवरी ड्रॉप आर ड्रॉप डेड’.


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