ताकि चलती रहे कार्टूनिस्ट की तूलिका
मीडिया, वीथिका
Nov 18, 2015
खान अशु
"वह" खामोश रहते थे तो भी बड़ा बवाल था, "इनके" बोल वचन भी वजह-ए-हन्गामा हैं। टिप्पणीकारों, व्यगकारों, समीक्षकों और खासकर कार्टूनिस्टों के लिए एक नया कैरेक्टर पिछले 18 माह से देश में मौजूद है। उसका कहना, उसकी खामोशी, उसका किसी से मिलना, किसी से दूरी बनाना, यहाँ तक कि पहनना भी चुटकी लेने वालों की नजर से नहीं बचता।
देश के अन्दर हो तो चर्चा, बाहर जाएं, वापस आए ज्यादा बहस। एक राज्य की सियासी शिकस्त ने तो अखबार, टीवी, सोशल मीडिया के कर्णधारों को उनपर सीरीज लिखने, गढने के नए द्वार ही खोल दिए। पिछले एक सप्ताह में जितनी टिप्पणियां, जोक्स, कार्टून "उस शख्स" के लिए कहे गए, इतना तो शायद आलिया भट्ट या सन्ता-बन्ता के लिए भी न कहा गया हो।
एक दौर था जब एक राज्य के मुख्यमंत्री एवं देश की बड़ी व्यवस्था सम्हालने वाले बड़बोले नेता हमारे प्रिय मित्र कार्टूनिस्ट लहरी जी के लिए फेवरेट केरेक्टर हुआ करते थे। लहरी ने एक लम्बी श्रृंखला इस नेता के लिए बनाई। उनके समकालीन कार्टूनिस्ट अभिषेक, चन्द्रशेखर हाडा, माधव जोशी, हरिओम और उस जमाने में कार्टून जगत में कदम जमा रहे कुमार ने भी इस परम्परा को आगे बढ़ाया।
बदलते वक्त में देश की एक बड़ी सियासी पार्टी की मुखिया भी कार्टूनिस्ट के लिए काम की आसानी बनती रही। उनके सुपुत्र के पप्पू के पात्र ने भी तूलिका चलाने की सहूलियत मुहैया कराई। अब देश के स्थापित कार्टूनिस्ट लहरी और उनके समकक्ष आर्टिस्ट हों या शौकिया तौर पर टेढ़ी—मेढ़ी रेखाओं के जरिये मन की बात कहने वाले अरविंद शीले, सबके लिए प्रिय पात्र एक ही शख्स बना हुआ, जो देश में कम, विदेश में ज्यादा रहता है, जब समय मिलता है, लोगों से मन की बात करता है, जो कहता है, करके दिखाने का दावा करता है।
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