क्या आप सर्वप्रिया साँगवान को जानते हैं? यह युवा और जोशीली पत्रकार एनडीटीवी में एंकर है और गाहे-बगाहे रिपोर्टिंग भी करती है। गुरुवार को वह रवीश कुमार के साथ बुलंदशहर गई थी ताकि ग्रामीण इलाकों में नोटबंदी से हो रही परेशानी का जायज़ा लिया जा सके। लेकिन वहाँ कुछ लोगों ने पहुँचकर न सिर्फ़ काम में बाधा डाली, बल्कि लोगों को अपने मन की बात कहने से भी रोका। वे लगातारा मोदी-मोदी का नारा लगा रहे थे। उन्होंने देर तक एनडीटीवी की गाड़ी का पीछा किया। ऐसा ही अनुभव एक दिन पहले सर्वप्रिय सांगवान को खोड़ा में रिपोर्टिंग के दौरान भी हुआ था।
सर्वप्रिया साँगवान ने अपने फ़ेसबुक पर इस प्रवृत्ति पर जो पीड़ा ज़ाहिर की है उसे देखकर कोई भी सभ्य समाज शर्मिंदा होगा। हद तो यह है कि बुधवार ही को राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर दिल्ली में प्रेस काउंंसिल अॉफ इंडिया के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मीडिया पर बाहरी नियंत्रण समाज के लिए ठीक नहीं है। मीडिया में सरकार का दखल नहीं होना चाहिए।
ज़ाहिर है, मोदी जी एक लोकतांत्रिक समाज के बुनियादी उसूल के प्रति अपना समर्थन जता रहे थे। लेकिन क्या यह संदेश सिर्फ अख़बारो में छपने के लिए है। क्या उनके समर्थकों, जिन्हें आमतौर पर भक्त कहने का रिवाज है, यह बता दिया गया है कि मोदी जी की बात से वे अपनी उन नीतियों को न बदलें जिस पर वे चलकर यहाँ तक पहुँचे हैं। मोदी जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर कुछ सिद्धांत बघारेंगे, लेकिन इसे गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है। करना वही है जिसे करने का निर्देश है।
तो क्या यह संदेश नहीं है कि सर्वप्रिया जैसे युवा पत्रकार अभी से लाइन पर आ जायें या फिर पत्रकारिता छोड़ दें…! रवीश कुमार तो दो दशक से पत्रकारिता में हैं। झेल जाएँगे, लेकिन सर्वप्रिया जैसी युवा पत्रकारों को विरासत में जो माहौल मिल रहा है, क्या वह चिंता की बात नहीं है..? क्या आज़ाद पत्रकारिता एक ख़ामख्याली भर रह जाएगी ? पढ़िये क्या लिखा है सर्वप्रिया ने और फ़ैसला करिये–
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