Breaking News

भारत में कई देशों से ज्यादा प्रेस फ्रीडम संपादक उसे बनाये रखें

मीडिया            May 09, 2016


मल्हार मीडिया ब्यूरो। मैं तो अभी भी मानता हूं कि हमारे पास कई देशों से ज्यादा प्रेस फ्रीडम है। बस हमारे संपादकों को उस फ्रीडम को बनाए रखना है, ये कहना है वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता का। पिछले हफ्ते विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यूनेस्को द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में ऐसा कहा आलोक मेहता ने। उनका कहना है कि मीडिया पर प्रेशर कोई साल-दो साल में नहीं बढ़ा है, ये पिछले दशक से बढ़ रहा है। वे कहते हैं कि 2000 में कांग्रेस नेता अजीत जोगी नाराज होकर पूछते थे कि फलां हेडलाइन अखबार की फर्स्ट लीड कैसे बन गई, तो लालूराज में नवभारत टाइम्स के ऑफिस पर हमला हुआ। उन्होंने कहा कि राजनैतिक पार्टियां हमेशा प्रेस का प्रतिरोध करेगी, पर मीडिया को अपना काम जिम्मेदारी के साथ करना ही है। उन्होंने कहा कि सत्ता किसी भी हो, प्रेस द्वारा की जाने वाली सच्ची रिपोर्टिंग को कोई पचा नहीं पाता है। देश में प्रेस के पास स्वतंत्रता है अपनी बात कहने की और इसी स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए प्रेस को हमेशा लड़ना रहना होगा। उन्होंने देश की ब्यूरोक्रेसी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि ये लोग आरटीआई के तहत भी सही जानकारी नहीं देते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में पीएमओ में हर बुधवार देश के एक बड़े उद्योगपति जाते थे, पर जब आरटीआई से इस बावत जानकारी मांगी गई तो जवाब मिला कि हम पीएम से मिलने वालों का हिसाब नहीं रखते हैं। वे कहते हैं कि इस तरह के जवाब दर्शाते है कि ब्यूरोक्रेसी किस तरह का काम करती है। पीएम क्या हर मंत्री से मिलने वालों तक की पूरी जानकारी होती है इनके पास। वो कहते हैं कि अभी हाल ही में उन्हें पता चला की पीआईबी के पास संपादकों के पंजीकरण करने के लिए कोई पॉलिसी ही नहीं है। वे कहते हैं कि इस तरह के उदाहरण बताते हैं कि प्रेस को लेकर सरकारों की कार्यप्रणाली किस तरह की है। उन्होंने कहा कि प्रेस का काम है लिखना और लड़ना। लिखिए, छापिए और लड़ने-मरने के लिए तैयार रहिए। दबाव सब पर होता है, पर दबाव को कैसे टेकल करना है ये हर संपादक पर निर्भर करता है। क्षेत्रीय प्रेस इन दबावों से बेहतर तरह से निपटकर अच्छा काम कर रही है। पत्रकारों और संपादकों के लिए क्या कोड ऑफ कंडक्ट हों, इस पर उन्होंने कहा कि एडिटर्स गिल्ड में हमने लगभग दस वर्ष पहले आचार संहिता भी बनाई। तत्कालीन राष्‍ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इस आचार संहिता को रिलीज किया पर कैसे संपादकों को इसे माने के लिए मजबूर किया जाए, ये तो हर संपादक को खुद ही फोलो करना होगा।


इस खबर को शेयर करें


Comments