यादों में राजेंद्र:माथुर जी आप जैसे लोकतांत्रिक संपादक की कमी बहुत खलती है

मीडिया, वीथिका            Aug 07, 2015


jayshankar-prasad जयशंकर गुप्ता आज महान पत्रकार एवं लोकतांत्रिक संपादक रहे राजेंद्र माथुर जी का जन्मदिन है। माथुर द्वारा संपादित नई दुनिया और उसमें लिखे उनके अग्रलेखों के कायल तो हम पहले से ही थे लेकिन बाद के दिनों में हमें भी माथुर जी और सुरेंद्र प्रताप सिंह जैसे महान संपादकों के साथ दिल्ली नवभारत टाइम्स में कुछ समय काम करने का सुअवसर मिला था। सुरेंद्र जी के साथ तो रविवार में भी जुडा था। माथुर जी एक लोकतांत्रिक संपादक थे। जिस समय देश में मंदिर निर्माण का ज्वार चरम पर था और जिसकी परिणति बाद में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में हुई थी, नवभारत टाइम्स के संपादकीय पृष्ठ का प्रभार संघ की सक्रिय पृष्ठभूमिवाले एक सहायक संपादक के पास था। संपादकीय पृष्ठ पर छपे लेखों को देखकर पांचजन्य और नभाटा में फर्क करना मुश्किल हो रहा था। हम उस समय यूनियन में भी सक्रिय थे। मित्रों परिचितों से शिकायतें मिलने पर सम कुछ सहयोगियों के साथ माथुर जी से मिले और लोगों की प्रतिक्रियाओं के साथ अपनी पीडा को भी जोडते हुए कहा कि लगता है कि हम माथुर जी के नभाटा में नहीं बल्कि संघ के मुखपत्र में काम कर रहे हैं। माथुर जी ने अपने खास अंदाज में पूछा था कि क्या संपादकीय मसले भी यूनियन के द्वारा तय होंगे। हमने विनम्रता से कहा था, कतई नहीं। हम तो अपने गार्जियन से अपनी पीडा बताने आए हैं। माथुर जी ने हम सबको चाय पिलाकर चलता किया लेकिन कुछ ही दिनों के बाद संपादकीय पृष्ठ का प्रभार किसी और को मिल गया। हमें याद है कि वर्ष 1991 में होली पर हम अपने अभिन्न मित्र और सहयोगी विनोद अग्निहोत्री के साथ सपरिवार माथुर जी के घर गए थै। उन्होंने बडे प्यार और स्नेह से होली के पकवान खिलाए। बात बात में उन्होंने कहा कि भई जयशंकर मुझे खुशी है कि हमारे साथ आप जैसा रिपोर्टर है जो तीन महानगरों-मुंबई, कोलकाता और दिल्ली में काम कर चुका है लेकिन बाबू मेरी योजना नभाटा को राष्ट्रीय अखबार बनाने की है। हम चाहेंगे कि चेन्नई, बेंगलुर और हैदराबाद में भी हमारे ब्यूरो खुलें। हम तुम्हें वहां भेज देंगे, चौथे महानगर में भी कार्य अनुभव के लिए। हमने बेहिचक कहा था कि उनका आदेश मिलने के सप्ताहांत में हम उस शहर में होंगे। लेकिन नियति में शायद कुछ और ही लिखा था। कुछ ही दिनों बाद माथुर जी हम सबको बिलखता छोड अनंत यात्रा पर निकल गए। हम किसी चौथे- दक्षिण भारतीय महानगर में काम करने का सपना संजोए उनके 'आदेश' का इंतजार करते रहे। कुछ समय बाद सुरेंद्र जी को नवभारत टाइम्स छोडना पडा। उसके बाद हम जैसे लोगों को लगा कि नभाटा हमारे काम का स्थान नहीं रह गया और हम इंडिया टुडे (हिंदी) के साथ जुड गए। आज के बदले राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में माथुर जी आप और सुरेंद्र प्रताप सिंह जैसे संपादक-पत्रकारों की कमी बहुत खल रही है। आप और और आपके साथ जुडी स्मृतियों को प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि। लेखक दिल्ली में लोकमत के ब्यूरो चीफ हैं यह लेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है


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