मल्हार मीडिया।
पत्रकार सुरक्षा और न्याय के लिए सरकार का मुंह न ताकें। कुलमिलाकर यही संदेश दिया है केंद्र सरकार के मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार पत्रकारों के लिए न तो अलग से कानून बनायेगी और न ही मारे गये पत्रकारों के परिवारों को मुआवजे का कोई प्रावधान है। मुआवजा देने की जिम्मेदारी संस्थानों की है।
साल 2014-15 में भारत के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर हमले की 142 घटनाएं सामने आर्इं हैं। यह जानकारी केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में दी। साथ ही सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पत्रकारों पर हमले को लेकर अलग कानून बनाने की उसकी कोई योजना नहीं है और मौजूदा कानून पर्याप्त हैं।
दरअसल, सदन में प्रश्नकाल के दौरान कई सदस्यों ने पत्रकारों पर हो रहे हमले के मुद्दे को उठाया और सरकार से इस संबंध में अलग कानून बनाने की जरूरत पर जोर दिया, लेकिन इस मामले में गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने कहा कि पत्रकार या किसी विशेष व्यवसाय के लोगों की सुरक्षा के लिए अलग कानून बनाने का उसका कोई विचार नहीं है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों समेत सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए देश में मौजूदा विद्यमान कानून पर्याप्त हैं।
उन्होंने यह जानकारी दी कि पत्रकारों के मामले में भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के माध्यम से शिकायतों पर संज्ञान लिया जाता है। मंत्री ने बताया कि पीसीआई की एक उप-समिति ने गृह मंत्रालय को इस संबंध में कुछ सिफारिशें भेजी थीं लेकिन अभी तक हमने उन्हें स्वीकार नहीं किया है। अहीर ने कहा कि पुलिस और कानून व्यवस्था राज्य का विषय है और पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करना राज्यों की जिम्मेदारी है। केंद्र उसमें हस्तक्षेप नहीं करता।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी कहा कि हमलें मे मारे गए पत्रकारों के परिवार वालों को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। पत्रकार जिस संस्थान में कार्यरत होते हैं, वो ही मुआवजा देते हैं।
मंत्री ने बताया कि साल 2014-15 में देश के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर हमलें की 142 घटनाएं सामने आर्इं हैं, जिनमें से 114 घटनाएं साल 2014 में हुईं हैं। इस मामले में 32 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि साल 2015 में 28 ऐसी घटनाएं घटीं जिनमें 41 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
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