कीर्ति राणा।
स्मृति शेष : वीणा नागपाल
वीणा जी से जब भी मुलाकात होती थी वीणाजी मुस्कुराती हुई और कीर्ति जी ठीक हो कहते हुए ही मिलती थीं।
महिला संगठनों में भले ही उनकी सक्रियता कम रही लेकिन महिला हितों, उनके हकों की अनदेखी, महिला जागरुकता पर वे सदैव अखबारों में लिखती रहीं फिर चाहे नई दुनिया हो, दबंग दुनिया हो या सोशल साइट ही क्यों न हो।कुछ वक्त से बीमार चल रही वीणाजी का जाना महिलाओं के लिए लिखने-बोलने वाली एक आवाज का चुप हो जाना है।
वीणाजी से आखरी बार दिव्य शक्ति पीठ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मुलाकात हुईथी। उसके पहले और बाद में जब भी दिव्या गुप्ता जी से मुलाकात होती थी पूछ जरूर लेता था मैडम कैसी हैं।
प्रोफेसर और वक्ता के रूप में डॉ ओम नागपाल से पहला परिचय हुआ, बाद में वो भास्कर के संपादक भी रहे। वीणा जी का नाम नईदुनिया में प्रकाशित होने‘घर की दुनिया’ और ‘अपनी बात’ से जाना-पहचाना था। बाद में वे नईदुनिया से मुक्त हो गईं थी। जब मैं दबंग दुनिया से जुड़ा तब किशोर भैया की इच्छा रहती थी कि हर बड़ा वो नाम जो अन्य अखबारों में है या था, अपने यहां होना चाहिए।
बस, वीणा जी दबंग दुनिया से जुड़ गईं।यहां भी उन्हें उनके मनपसंद विषयों पर लिखने की आजादी थी। पहला लेख लिखा तो मुझे देखने के लिए लेकर आईं ‘कीर्ति जी देख लीजिये।’मैं बेहद शर्मिंदा था, मैडम आप का लिखा मैं देखूंगा…! आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं।ना मैं आप का लिखा देखूंगा और न ही आप दिखाना।
वीणा जी सिर्फ लिखने के लिए ही महिलाओं की आजादी की बात नहीं करती थीं। फिल्म पेज पर अभिनेत्रियों के फोटो से लेकर उनके कथित आजाद खयालों को लेकर भी वे असहमति व्यक्त करती रहती थीं।
डॉ नागपाल के बाद वो राजनीति में भी सक्रिय हो सकती थीं लेकिन वे दूर रहीं। उनकी पुत्री डॉ दिव्या गुप्ता शुरु से ही ज्वाला संस्था, डॉ ओम नागपाल शोध संस्थान सहित अन्य संस्थाओं के माध्यम से भाजपा और समाजसेवा में सक्रिय हैं और कुछ समय पहले ही केंद्र सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) का सदस्य नियुक्त किया है।
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