संजय स्वतंत्र।
चलिए चलते हैं एक ऐसे न्यूज चैनल में, जो देश का बड़ा न्यूज नेटवर्क है। कहते हैं, इसका न्यूजरूम एशिया में सबसे बड़ा है। यहां पूरे दमखम के साथ काम करने वाले पत्रकार हैं, तो कामचोरों की फौज भी। कभी यहां के न्यूजरूम से लेकर एअरकंडीशन वॉशरूम तक में वैभव दिखता था, लेकिन आज इसकी बदहाली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वॉशरूम में हाथ धोने के लिए साबुन तक नहीं। फिलहाल हम मिलते हैं केशव से।
शाम की शिफ्ट। न्यूजरूम में रोज की तरह चहल-पहल। केशव अपनी सीट पर मुस्तैद। एक प्रोड्यूसर के रूप में उसकी धाक है। उसकी नजर से कोई छोटी-बड़ी खबर नहीं छूटती। घाटी से मुठभेड़ की खबर आई तो वह सजग हो गया। श्रीनगर से उसका रिपोर्टर जुड़ चुका था।
केशव ने एंकर को भी अलर्ट किया। रिपोर्टर बता रहा था कि मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों से हथियारों का जखीरा बरामद हुआ है। आतंकियों से एके-47 और मैगजीन भी मिले हैं। केशव कोई सवाल पूछने के लिए कहता, इससे पहले ही उत्साही एंकर ने अजीबोगरीब सवाल दाग दिया
अच्छा तो आतंकवादी मैगजीन भी पढ़ते थे? आप ये बताएं कि ये कौन सी मैगजीन थी ?’ एंकर की इस नासमझी पर केशव ने सिर पीट लिया। इस लाइव सवाल-जवाब को लाखों लोगों ने सुना।
केशव जब पहली बार मिला था, तो मैंने उससे यही कहा था कि आने वाला समय इलेक्ट्रानिक और डिजिटल मीडिया का होगा। मगर उसने हर बार यही कहा- सर, मुझे प्रिंट मीडिया में ही काम करना है। यहीं कहीं अच्छी जगह नौकरी मिल जाए तो अच्छा रहेगा।
फिलहाल वह जिस जगह काम कर रहा था, वहां सैलरी इतनी कम थी कि उसका मुश्किल से गुजारा होता था। तभी मुझे एक बड़े समूह का चैनल शुरू होने की जानकारी मिली। उसकी कोर टीम में शामिल मेरे मित्र ने एक दिन फोन कर कुछ लड़कों को भेजने के लिए कहा।
बातचीत में मैने केशव का जिक्र किया और वह कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद न्यूज चैनल में चला गया। बड़ा समूह, बड़ा चैनल। एक से बढ़ कर एक धुरंधर पत्रकार वहां थे।
केशव ने वहां प्रोडक्शन एग्जीक्यूटिव से करियर की शुरुआत की। कोई 15 साल बाद अब वह सीनियर प्रोड्यूसर था। लिखने-पढ़ने की आदत और समाचार से सरोकार। संवेदनशीलता इतनी कि किसी भी गंभीर खबर की प्राथमिकता तय करने में वह पूरे कौशल का परिचय देता।
मगर इस नौकरी में खबरों की तेजी उसे हर पल रौंदती रही। स्क्रीन के पीछे किसी स्याह कोने में वह जीना और मरना सीख गया था। सबसे बहले खबरें देने की होड़ से वह परेशान रहता।
इस क्रम में कई गलतियां हो जाती थीं। जांचे- परखे बिना खबरों को तुरंत चला देने के निर्देश से केशव सहमत नहीं था।
खबरें देने वाले रिपोर्टर से लेकर उसे प्रस्तुत करने वाले एंकर भी कम सतही नहीं थे। उसकी एक-दो मिस एंकर को यही पता नहीं था कि किस राज्य का कौन मुख्यमंत्री है। ये लड़कियां किस टेस्ट को पास कर रख ली गई थीं, कहना मुश्किल था।
एंकर होने का आखिर पैमाना है क्या? क्या सुंदरता या फिर उनकी मोहक मुस्कान। मगर ऐसी एंकर का ज्ञान उसके अनाप-शनाप सवालों से झलक ही जाता था।
सीट पर बैठे केशव ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं। श्रीनगर में एनकाउंटर वाली खबर पर एंकर के बचकाने सवाल ने विचलित कर दिया था। उसे याद आया जब उसने एक ऐसी ही एंकर को खबर लिखने के लिए दिया था, तो उसका क्या हश्र हुआ। वह खबर किसी पार्टी के महासचिव की थी। एंकर ने जनरल सेक्रेटरी को ‘साधारण सचिव’ लिख दिया था।
दिलचस्प बात यह कि दूसरी एंकर ने इसे यही पढ़ भी दिया। खबर आॅन एअर होते ही न्यूजरूम में बवाल मच गया। पता लगाया गया कि किसने खबर लिखी। किसने चेक कर आॅन एअर किया। तो बात आई कि मिस एंकर ने खबर लिखी है और आॅन एअर करने वाले एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर की वह ‘प्रिय’ है।
जाहिर है कि कुछ होना नहीं था। वह न्यूजरूम में मुस्कुराते हुए आई और अपनी खास अदा के साथ बोली-यार, पता नहीं कैसे गलती हो गई। बॉस से लेकर चैनल हैड तक चुप। यहां उस एंकर की गलती की कीमत एक मोहक मुस्कान भर थी।
उस दिन केशव सोचता रहा। अगर किसी नौजवान पत्रकार ने यह गलती की होती, तो उससे माफीनामा लिया जाता और उस पर ‘मूर्ख’ होने का ठप्पा भी लग जाता। लेकिन यह एंकर की अदा है कि हर गलती पर उसका ग्राफ बढ़ता ही जाता है।
शायद बॉस को भी उसे दबाव में रखने का ‘हथियार’ मिल जाता है। हाल में आई एंकर सरिता ने एक बड़े नेता से पूछ लिया कि आप किस पार्टी के नेता हैं? आपका नाम क्या है? यह सुन कर नेताजी के माथे पर बल पड़ गए।
किसी तरह खुद को काबू में किया। मगर एक के बाद एक बचकाने सवाल से बौखलाए नेताजी ने ब्रेक होते ही कह दिया कि आपने किस जाहिल को मेरे साथ बैठा दिया। इसे तो कुछ आता जाता ही नहीं और दस मिनट बाद ही नेताजी उठ कर चले गए।
इतना सब होने पर भी न्यूजरूम में एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर यह कहता नजर आया कि सरिता चिंता न करो। तुम बहुत आगे जाओगी। बस थोड़ी प्रैक्टिस की जरूरत है। आज पहला दिन था तुम्हारा। घबराओ नहीं। मैं सब ठीक कर दूंगा। तुम एंकर रहोगी।
इतना सब कुछ होने के बाद भी वह न्यूज पढ़ती रही। केशव हतप्रभ था। आखिर इस एंकर में बॉस की क्यादिलचस्पी है?
सोमवार का दिन और सुबह की शिफ्ट। कुछ लड़कियां लखनऊ से इंटर्नशिप के लिए आई थीं। बातचीत के क्रम में केशव ने उनका जनरल नॉलेज चेक करने के लिए यों ही पूछ लिया कि अभी यूपी के राज्यपाल कौन हैं? तो उनमें से एक ने तपाक से जवाब दिया- शिवपाल यादव।
लड़कियों के सामान्य ज्ञान से चकित केशव ने फिर उनकी थाह ली- नहीं वो तो मुख्यमंत्री हैंराज्यपाल तो अखिलेश यादव हैं।’ इस पर उस लड़की ने आत्मविश्वास के साथ कहा- सर, आपको इतना भी नहीं पता कि वह मंत्री हैं। इस पर केशव ने फिर जोर देकर कहा-राज्यपाल तो अखिलेश ही हैं। इस पर उस लड़की ने अपने साथ आई दूसरी लड़कियों को बुला लिया और सभी ने शिवपाल को राज्यपाल ‘बना’ दिया।
उनके जवाब सुन कर केशव ठगा-सा रह गया। सभी लड़कियां उसे गलत ठहरा रही थीं। तब उसने बात को पलटते हुए पूछा-आप सब कोर्स खत्म होने के बाद क्या करेंगीं? तो सभी का कहना था कि वे एंकर बनना चाहती हैं। उनका जवाब सुन कर केशव ने सोचा, जो लड़कियां अपने राज्य के गवर्नर का नाम तक नहीं जानतीं, वे एंकर कैसे बन सकती हैं।
इस न्यूजरूम में बरसों से काम कर रहा केशव जान गया था कि यहां ‘ बने रहो पगला, काम करेगा’ अगला वाला सोच रखने वाले पत्रकारों से उलझना बेकार है। कभी कॉर्नर मीटिंग, तो कभी कैंटीन में चायबाजी। लिहाजा केशव अपने काम में डूबा रहता। वह सुबह से शाम और शाम से देर रात और लेट नाइट से सुबह की शिफ्ट के चक्र में घूम रहा था।
मगर उसके कई काम का श्रेय सीनियर ले जाते। केशव ऐसे चैनल में था, जहां एक नवेली एंकर की सैलरी कब रातों-रात चौगुनी या फिर उससे भी कहीं ज्यादा हो जाए, कोई नहीं जानता। यहां तक कि उसके बॉस को भी खबर नहीं होती।
और एक दिन ऐसा हो गया, तो केशव के होश ही उड़ गए। मीडिया की एबीसीडी भी न जानने वाली ट्रेनी स्नेहा सिन्हा को एंकर बना दिया गया था। केशव का रोज ही उससे पाला पड़ता। तीखे नैन नक्श वाली इस युवती को जो भी देखता, उसके देह के भूगोल में ही उलझ कर रह जाता। मगर केशव हमेशा उसके दिल की गिरह खोलता रहता।
वह अपनी और परिवार की समस्याओं पर बात करती और केशव हमेशा उसे सही सलाह देकर उसकी परेशानी दूर कर देता। दूसरी ओर स्नेहा से हर कोई दोस्ती करना चाहता था लेकिन उसने बॉस से ही दोस्ती गांठ ली थी।
और एक दिन तो गजब ही हो गया। पांच हजार रुपए से इंटर्न की शुरुआत करने वाली स्नेहा की सैलरी अचानक पचपन हजार कर दी गई। देखते ही देखते वह अपने सीनियर्स को उनके नाम लेकर बुलाने लगी। उसके मासूम चेहरे पर बॉस से ‘बड़ा’ होने का गरूर झलकने लगा।
उसकी तरक्की पर केशव ने भी बधाई दी। इस शिकायत के साथ कि तुम बहुत बदल गई हो स्नेहा, तो उसने जवाब दिया-तुन्हें ऐसा लगता है।कुछ नहीं बदला। वर्क लोड बढ़ गया है।
मैं तुम्हारे लिए वही हूं, जो कल थी। इस पर केशव ने कहा- ‘हां, वो तो मैं देख ही रहा हूं। फिर भी उसके मासूम दिल ने यह पूछ ही लिया कि ये सब तो मुझे समझ में आ रहा है, लेकिन ये पांच से पचपन वाला क्या चक्कर है?’
केशव के इस चुभते सवाल से स्नेहा नाराज नहीं हुई। वह उसका सम्मान ही नहीं करती थी बल्कि दिल में भी केशव के लिए खास जगह थी। वो क्या था, इसका इजहार उसने कभी नहीं किया। कुछ महीने साथ काम करते हुए केशव को भी उससे ‘स्नेह’ हो गया था। मगर उसने भी कभी इसे जताया नहीं।
जब से स्नेहा की सैलरी बढ़ी थी, तब से केशव के मन में कई सवाल उठने लगे थे। वह जब पूछता तो स्नेहा एक ही जवाब देती- ये तुम्हारी समझ से बाहर है केशव। तुम कभी समझ नहीं पाओगे। इस पर केशव ने फिर इसरार किया-वो कौन सा फार्मूला है, जिसका इस्तेमाल मैं नहीं कर सकता। इस पर स्नेहा में मोहक मुस्कान बिखेरते हुए कहा- ‘तुम पागल होऐसा कुछ भी नही है।’ वह सीट से उठ कर जाने लगी तो केशव जोर से बोला, ‘वो फार्मूला तो बताती जाओ।’ मगर वह हंस कर चली गई।
कुछ देर बाद ही पता चला कि स्नेहा शाम की फ्लाइट से मुंबई जा रही है। अब वह वहीं से फिल्म और फैशन पर स्पेशल प्रोग्राम करेगी। अगले दिन शाम को उसने फिल्म और फैशन वर्ल्ड पर एक शो की एंकरिंग की। कार्यक्रम खत्म होते ही स्नेहा का फोन आया- ‘केशव, कैसा रहा मेरा शो? मैं ठीक से बोल रही थी ना? मैं अच्छी दिख रही थी ना? कहीं सुधार की जरूरत हो तो बताओ। कोई गलती हो तो बताओ केशव। मैं सिर्फ तुम पर भरोसा करती हूं।’
अचानक उसके मुंबई चले जाने से केशव को उस पर गुस्सा जरूर आ रहा था, पर उसकी बातें दिल को छू गई। उसने स्नेहा को शब्दों के चयन से लेकर उसके उच्चारण तक की नसीहत देते हुए कहा कि अभी तो ये शुरुआत है। तुमने जो भी किया अच्छा किया।
बातें होती रहीं। तभी केशव को शरारत सूझी। उसने एक बार फिर फार्मूले वाला राग छेड़ दिया। इस पर स्नेहा हंस कर बोली- ‘केशव तुम मानोगे नहीं। तुम सच्ची में एकदम पागल हो। ऐसा कोई फार्मूला नहीं है यार।’ और इसके बाद उसका अगला वाक्य था-‘केशव, मैं थक गई हूं। अभी होटल जा रही हूं। कल बात करती हूं।’
स्नेहा के ठहरने का इंतजाम मुंबई के ओबेराय होटल में किया गया था। केशव को उसकी कामयाबी से जलन नहीं थी, मगर वह किसके दबावमें मुंबई गई या यह उसका खुद का फैसला था। यह समझ नहीं आया। उसने भी कोई जिक्र नहीं किया। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि केशव खुद हैरान था।
वह स्नेहा को चाहता था, पर कभी कह नहीं पाया। हालांकि कहीं न कहीं आत्मीयता की एक रेशमी डोरी बंधी-सी महसूस होती थी। स्नेहा जब इंटर्नशिप के लिए आई थी, तभी कुछ दिनों बाद उसकी अच्छी दोस्त बन गई थी। फिर उसकी ड्यटी केशव के साथ ही लगा दी गई। साथ काम करते हुए स्नेहा की नासमझी पर कभी-कभी वह गुस्सा होता। उसकी गलतियों का मजाक उड़ाता, जिसका वह बुरा नहीं मानती थी।
और जब वह नाराज होती, तो अंग्रेजी में दो-चार लाइन हंस-हंस कर बोलती। और केशव मुस्कुराते हुए पूछता-ये क्या बोलीक्या बोली तुम? कहीं गाली तो नहीं दी मुझे। मुझे अंग्रेजी नहीं आती। इस पर स्नेहा मुस्कुराते हुए कहती, इंग्लिश में काम करते हो और कहते हो कि अंग्रेजी नहीं आती तुम न, ज्यादा इनोसेंट बनने की कोशिश मत करो।
यकीन मानिए उस फार्मूले को केशव तब तक नहीं समझ सका, जब तक कई साथियों ने आकर उसे नहीं बताया। न्यूजरूम में यह चर्चा का विषय रहा। मगर दो महीने बाद ही स्नेहा को हटा दिया गया। वह न दिल्ली लौटी और न आॅफिस आई। केशव ने उससे संपर्क करने की बहुत कोशिश की मगर हर बार उसका मोबाइल स्विच आॅफ मिला। उसकी एक सहेली ने बताया कि बड़े लोगों के चक्कर में आकर वह बहुत कुछ ‘खो’ बैठी है। कोई रोग लग गया था उसे। आखिर क्या हुआ था उसे? किसी को ठीक से पता नहीं चल पाया।
केशव आज भी न्यूजरूम में दूसरे चैनलों पर नजर गड़ाए रखता है, शायद वह कहीं न्यूज पढ़ते हुए दिख जाए, और दूसरे ही पल उसका फोन आए कि केशव देखो ना, मैं ठीक से न्यूज पढ़ रही हूं न।
स्नेहा कहां हो तुम? मैं कोई सवाल नहीं करूंगा। प्लीज एक बार के लिए आ जाओ।’ एक पल के लिए आंखें बंद कर केशव सोचने लगा। तभी न्यूजरूम में शोर मचाराहुल को दोबारा हिरासत में ले लिया गया। है। उसके डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर नलिन ने झकझोरा-केशव क्या हुआ? कहां खो गए तुम? जल्दी से राहुल वाली खबर चलाओ।
7 नवंबर, 2021
फोटो- प्रतीकात्मक और साभार गूगल
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एक टीवी चैनल के पत्रकार और एंकर की यह कहानी जनसत्ता के बहुप्रसारित दीपावली अंक में पिछले दिनों छपी है। इसके प्रकाशन के लिए कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज और उनके सहयोगी संपादकों का हृदयतल से आभार
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