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जमीनी घटनाओं का असल लघु कथा संग्रह जीवन में संविधान

मीडिया            Oct 13, 2022


ममता मल्हार।

जमीनी घटनाओं की हकीकत बयां करता असल लघु कथा संग्रह है Sachin Kumar Jain की किताब जीवन में संविधान।

 अगर संविधान को भारत के समाज की किताब बनाया जाता तो वाकई आज हमारे भारतीय समाज की दिशा और दशा ही कुछ और होती।

इस किताब को पढ़कर एक पुरानी घटना जेहन में फिर ताजा हो गई। बात शायद वर्ष 2005-6 की है राजधानी से ही सटे एक गांव में 12 साल की बच्ची से रेप हुआ था। वो गर्भवती हो गई थी, जिसका खुलासा 6 महीने बाद हुआ।

हालत बिगड़ने पर सातवें महीने में बच्ची को राजधानी स्थित सुल्तानिया अस्पताल ला गया था। जहां उसने एक बच्चे को जन्म दिया था।

उस समय मैं उसी इलाके में रहती थी तो ऑफिस से बोल दिया गया था आप ही देख लें इस खबर को।

हां वह खबर ही थी सिर्फ उसके माता-पिता के अलावा सबके लिए।

मैं गई थी, अनुभव ज्यादा नहीं था पर जिस हालत में चादर में सिमटी-सिकुड़ी बच्ची को देखकर आई थी कई दिनों तक गले से खाना नहीं उतरता था। पानी भी पीती थी तो कड़वाहट आ जाती थी मुंह में।

यह इस किताब में कथाओं की तरह लिखी गई सत्य घटनाएं बहुत सारी खबरें आंखों के सामने तैरा देती हैं।

भारतीय समाज में सबसे ज्यादा अगर किसी के अधिकारों का हनन होता है तो वो है महिलाओं के मौलिक अधिकारों का।

शहरों में कह सकते हैं स्थिति बदली है पर दूरदराज के इलाकों में आज भी महिलाओं का न तो अपनी सोच, न दिमाग, न दिल , न ही शरीर पर अधिकार है।

दूरदराज के इलाकों की महिलाओं के लिये सन्तानोपत्ति आज भी प्रसव पीड़ा के साथ दोहरा खतरा गांव से अस्पताल पहुंचने के दौरान झेलना होता है।

उस समाज को, उस सिस्टम को तब बिल्कुल शर्म नहीं आती जो महिलाओं के लिये गरिमा की सीमाएं तय करता है जब एक महिला सड़क पर बच्चे को जन्म देती है।

दो मिनट का अफसोस और फिर रम गए अपनी दुनिया में।

हम कितने आदि हो चुके हैं अव्यवस्थाओं के अमानवीय घटनाओं के गवाह बनने के।

अभी जब कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया तो उस दिन से मेरे मन में यह सवाल निरंतर चल रहा है कि जिन 12-13-14 साल की बच्चियों के रेप हो जाते हैं।

जिन्हें पता ही नहीं होता कि उनके साथ हुआ क्या है,  लेकिन जबतक माता-पिता समझ पाते हैं देर हो जाती है।

उन बच्चियों पर यह कानून कैसे अमल किया जाएगा? वो बच्चियां इस अधिकार का केसे उपयोग कर पाएंगी?

सत्य घटना है कि एक 14 साल की बच्ची का स्कूल आते- जाते रेप हुआ।

उसे धमकाया गया चुप रहने को यह कहकर कि उसे बाप और भाई को मार दिया जाएगा।

जब उसे पेटदर्द हुआ तो मां को बताया मां डॉक्टर के पास ले गई डॉक्टर ने जो कहा उसके बाद वह बच्ची अपनी माँ से कह रही थी, मां मुझे मां नहीं बनना है।

बाल विवाह हो या वयस्क विवाह आज भी लड़कियों की मर्जी बहुत महत्व नहीं रखती,  यह भी सत्य है और इसके भी घटनास्थल हैं और घटनाएं हैं।

प्रेम विवाह करने वालों के साथ हमारा समाज कैसा सुलूक करता है बताने की जरूरत नहीं।

कई सच्ची घटनाओं से को इस तरह पेश करके समाज का विकृत चेहरा दिखाया है लिखने वाले ने।

आज भी दूरदराज के लोग बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं।

शहरों में ही स्थिति बहुत बिगड़ चुकी है। सड़क, साफ पानी बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मुश्किल से मिल पाती हैं। मिल भी रही हैं तो ठीक से नहीं मिल रहीं।

 छुआछूत, साम्प्रदायिक दुर्भाव-सद्भाव, लॉकडाउन सब है इस किताब में,जो हर एक घटना के साथ एक मौलिक अधिकार के प्रति हमारे दिमाग के कुहासे में एक बिंदु छोड़कर जाती है अंबिका प्रकाशन से प्रकाशित सचिन कुमार जैन की यह किताब।

इस किताब को पढ़ने के बाद यही एक सवाल निरंतर चल रहा है दिमाग में कि संविधान को समाज की किताब बनाने की पहल ठोस तरीके से क्यों नहीं हुई?

 हमने तो स्कूली सिलेबस में संविधान की उद्देशिका और मौलिक अधिकार पढ़े।

पर अब तो कई सालों से यह स्कूली किताबों से गायब ही है।

शायद यही कारण था जब उस जूनियर लड़के से मैंने पूछा कि मौलिक अधिकार पढ़े हैं संविधान का कुछ भी जानते हो तो उसका प्रतिपश्न था ये क्या होता है हमें समझ ही नहीं आता।

मौका कुछ ऐसा था कि चर्चा मौजूं थी, क्योंकि फेलोशिप संविधान की है और संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार हमारे जीवन का आधार हैं। पर उस स्तर पर जानकारी ही नहीं है लोगों को।

 

पूरी समीक्षा नीचे कमेंट बॉक्स में मल्हार मीडिया की लिंक में

 

 



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