श्रीकांत सक्सेना।
उस शुक्रवार दूरदर्शन पर "The World This Week" का प्रसारण नहीं हुआ।
बात 90 के दशक की है, टेलीविजन का देश भर में प्रभाव और वर्चस्व था।
एक दो निजी चैनल कुछ मेट्रो पॉलिटन शहरों में धीरे-धीरे अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने की चेष्टा कर रहे थे।
NDTV अपने शैशवावस्था से गुजर रहा था, बस एक प्रोडक्शन हाउस के तौर पर।
प्रणव रॉय दूरदर्शन पर अंग्रेज़ी में सालाना बजट विश्लेषक और चुनाव के वर्ष में चुनाव परिणाम विश्लेषक के रूप में देश भर पहचाने जाने लगे थे।
दूरदर्शन पर अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम को समेटता हुआ उनका साप्ताहिक कार्यक्रम The World This Week हर शुक्रवार को रात दस बजे जाता था।पढ़े लिखे सुधि दर्शकों के बीच ये कार्यक्रम ख़ासा लोकप्रिय था।
इसके लिए प्रणव रॉय को दूरदर्शन से भरपूर सहयोग भी मिलता था, विशेषकर सामग्री जुटाने में।
अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसीज का किराया दूरदर्शन देता था, फिर भी ये एक बाहरी कार्यक्रम था और नियमानुसार इस कार्यक्रम को प्रसारण से पहले देखा जाना ज़रूरी था।
प्रसारण के समय से कुछ घंटे पहले कार्यक्रम का टेप प्रसारण के लिए सौंपना ज़रूरी था। प्रणव रॉय की व्यक्तिगत छवि ऐसी थी कि प्राय: कार्यक्रम बिना देखे ही उन्हें प्रीव्यू सर्टिफिकेट मिल जाता था।
इस कार्यक्रम को तैयार करने में प्रणव रॉय प्रसारण के समय तक पूरे प्राणपण से जुटे रहते थे और शुक्रवार रात दस बजे हाथ में टेप लिए बेतहाशा हाँफते हुए पहुँचते थे।
प्रसारण आकाशवाणी भवन की पाँचवीं मंज़िल से होता था और कभी-कभी लिफ़्ट ख़राब होने या उसके किसी अन्य फ़्लोर पर फँसे होने पर उन्हें सीढ़ियों से लगभग भागते हुए पहुँचना होता था।
आजकल सभी चैनल्स पर सभी कार्यक्रम प्रसारण से बहुत पहले ही फ़ीड कर दिए जाते हैं।
उन दिनों हर कार्यक्रम का टेप पहले कंटेंट के लिए जाँचा जाता था फिर प्रसारण के लिए उसकी सही अवधि मिनट और सेकेंड्स में ली जाती थी, मतलब काउंटर रीडिंग।
प्रसारण संहिता के अनुसार घोषित कार्यक्रमों का प्रसारण क्यूशीट के अनुसार ही बिना किसी फेरबदल के सख़्ती से प्रसारित किया जाना चाहिए।
रात को बारह बजे तक प्रसारण समाप्त हो जाता था।उन दिनों दूरदर्शन केंद्र दिल्ली के प्रमुख कुन्नीकृष्णन जी थे, उन्हें केरल से स्थानांतरित करके दिल्ली भेजा गया था।
अपनी योग्यता,निष्पक्षता,ईमानदारी तथा पेशेवराना गुणों के कारण उनकी गिनती दूरदर्शन के बेहतरीन अधिकारियों के रूप में की जाती थी।
प्रणव रॉय के इस कार्यक्रम के लिए दूरदर्शन जिस तरह लगातार नियमों का उल्लंघन कर रहा था उसकी चर्चा कुन्निकृष्णन जी से हुई और प्रणव रॉय को भविष्य में ये कार्यक्रम प्रसारण से चार घंटे पहले उपलब्ध कराने के निर्देश दे दिए गए।
उन दिनों शाम को मेरी ड्यूटी लगती थी, प्रसारण के समय ज़रूरी निर्णय लेने होते थे।
उस शुक्रवार को भी प्रणव रॉय क्षमायाचना करते हुए प्रसारण समय से 22 मिनट लेट आए।
पैनल की ज़िम्मेदारी श्री अशोक बुद्धिराजा सँभाल रहे थे, जो The World This Week के समय में निरंतर एक के बाद एक फिलर्स चला रहे थे और बेहाल थे।
आख़िरकार जब टेप लेकर प्रणव रॉय पहुँचे तो श्री बुद्धिराजा भागे-भागे आए, बताइए चलाएँ या नहीं ?
मैं इस बारे में श्री कुन्नीकृष्णन से पहले ही बात कर चुका था सो बिना किसी संशय के तुरंत कहा चूँकि कार्यक्रम 22 मिनट देर से आया है इसलिए इसका प्रसारण न करें।
उस शुक्रवार The World This Week का निर्धारित चंक सिर्फ फिलर्स चलाकर भरा गया।
प्रणव रॉय लगभग आधे घंटे मेरे कमरे में कार्यक्रम चलाने का अनुरोध करते रहे और ये आश्वासन देते रहे कि भविष्य में कार्यक्रम प्रसारण से पहले पहुँचाया करेंगे।
लेकिन इस सबका कोई परिणाम न निकलना था।
प्रणव रॉय के संपर्क प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर सत्ता प्रतिष्ठान के शीर्षस्थ लोगों से थे।
अगले दिन ही श्री कुन्नीकृष्णन का स्थानांतरण दूरदर्शन केंद्र दिल्ली से दूरदर्शन महानिदेशालय कर दिया गया।
मैंने हमेशा प्रणव रॉय को बेहद शिष्ट और विनयशील व्यक्ति के रूप में ही देखा।
हर शुक्रवार को जब वे टेप लेकर आते थे तो बदहवास दिखते थे, मुझे उनके समान विनम्र किसी अन्य व्यक्ति का स्मरण नहीं हो रहा।
कुछ दिनों बाद मुझे एक पंद्रह मिनट के कार्यक्रम की ज़िम्मेदारी मिली।
रोज़ाना अख़बार देखकर कोई विषय चुना जाता था और उसके बाद उसके ऊपर एक रिपोर्ट शाम सवा सात बजे प्रसारित होती थी।
मैंने उस दौरान बहुत सी महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स तैयार कीं।
तंदूर में नैना साहनी का जलाया जाना,गणेश जी द्वारा दूध पीना,बारिश में पुरानी दिल्ली में एक साथ कई मकानों का ढह जाना,स्कूलों में बच्चों का दैहिक शोषण, दिल्ली किराया कानून, दिल्ली में गैरकानूनी पार्किंग्स का व्यवसाय आदि।
रोज़ाना कैमरा लेकर निकल पड़ना, लौटकर खुद स्क्रिप्ट लिखना और वॉयस ओवर करना कार्यक्रम एडिट कराना और प्रसारण के लिए देना।
ये कार्यक्रम 'दृष्टि' के नाम से रोज़ाना शाम सवा सात से साढ़े सात के बीच जाता था, श्री सुधीर टंडन इस कार्यक्रम के प्रमुख थे।
उन दिनों सुबह से शाम तक लगातार काम करते हुए भी मैं अक्सर एक या दो मिनट लेट हो जाता था, ये कार्यक्रम दूरदर्शन का इन हाउस कार्यक्रम था।
उस भागमभाग में अक्सर प्रणव रॉय जी का वो चेहरा याद आ जाता था जब वे The World This Week का टेप लेकर हाँफते हुए दूरदर्शन केंद्र पहुँचते थे।
मुझे तो एक ही बिल्डिंग में एक कमरे से दूसरे कमरे तक ही जाना होता था, अक्सर बहुत कुछ छूट जाता था।
समयाभाव के कारण सारी सामग्री का इस्तेमाल नहीं कर पाते थे या कभी उचित सामग्री न मिलने पर उपलब्ध विकल्पों से काम चलाना पड़ता था।
कार्यक्रम निर्माण से जुड़ी बहुत सी सीमाओं और दबावों को तब जाना और तभी प्रणव रॉय की बदहवासी भी समझ में आई।_श्रीकांत
(दूरदर्शन के दिनों की बहुत सी बातें ज़ेहन में आ रही हैं।ये लेख आपको अच्छा लगा हो तो बताइएगा इसे जारी रखेंगे।)
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