वर्षा मिर्जा।
जिस तरह से महिला पत्रकारों , सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिज्ञों को गालियां दी जा रही है ,लिंग की तस्वीरें भेजी जा रही हैं और उनकी देह की नापतौल की जा रही है वह भीतर तक घृणा और जुगुप्सा से भर देता है।
मुद्दों पर बोलने में तो इनकी ज़ुबां तालू में धंस जाती है लेकिन सोशल मीडिया पर अपशब्द लिखने ,फोटोशॉप से उनकी नग्न तस्वीर बनाकर भेजने, उनके नामों को कॉल गर्ल की लिस्ट में जोड़ने की क़वायद में वे एक दूसरे को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं।
क्या ये लोग एक बार भी नहीं सोच पाते होंगे कि हम उनके दिमाग से की गयी बातों का जवाब उनकी देह पर टीका टिप्पणी से दे रहे हैं।
पत्रकार राना अय्यूब का चेहरा एक पोर्न एक्ट्रेस से रिप्लेस कर चलाया जाता है। पत्रकार सागरिका घोष भी ऐसे ही ट्रोल होती हैं। बरखा दत्त ज़रूर ऐसे लोगों को एक्सपोज़ करने में लगी हैं।
बहुत संभव है कि आप पत्रकार बरखा दत्त की कश्मीरियों के प्रति उदारता से इत्तेफ़ाक़ ना रखते हों, कुछ और मसलों पर भी आपकी नाराज़गी हो लेकिन बदले में तर्क रखने की बजाय आप तो जैसे बदले पर उतर आते हैं।
यही तो कहा था उन्होंने कि इस संकटकाल में कश्मीरियों के लिए मेरे दरवाज़े खुले हैं। जवाब में उन्हें गोली मारने और बलात्कार की धमकी दी गई।
उन्हें अश्लील तस्वीरें भेजी गईं और जब बरखा दत्त ने इन आपराधिक किस्म के सन्देश भेजने वालों के नाम और नंबर ट्विटर पर साझा किये तो उलटे उन्हीं का अकॉउंट 12 घंटे के लिए बंद कर दिया गया।
क्या वक़्त नहीं आ गया है कि महिला स्वयं अपने शरीर को इस अपमान से मुक्त कर ले। यानी इसे तवज्जो ही न दी जाए। ऐसी घृणित हरकत वही कर सकता है जो स्त्री की मौजूदगी इन्हीं अर्थों में देखता है।
जब देह से जुड़ी टीका टिप्पणी को ही गंभीरता से नहीं लिया जाएगा तो वह खुद बेअसर साबित होगी। एक बार फिर बड़ा और मज़बूत बन के स्त्री को ही आना होगा।
अपनी देहयष्टि से परे एक दुनिया में। समानता की दुनिया में।
ये दुष्ट और उनके समर्थक तब ही परास्त होंगे क्योंकि द्रोपदी की तरह प्रतिज्ञा लेने के लिए भी कृष्ण का होना ज़रूरी है जो द्वापर युग में संभव था। इस कलियुग में नए फैसले अपने दम पर ही लेने होंगे बिना कृष्ण का इंतज़ार किये।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आलेख उनके ब्लॉग लिख डाला से लिया गया है।
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