मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्यप्रदेश के पत्रकारीय तीर्थ माधवराव सप्रे संग्रहालय ने आज अपनी स्थापना के 4 दशक और सम्मान समारोह के 3 दशक पूरे कर लिये।आज सोमवार 19 जून को गरिमामय कार्यक्रम में सप्रे संग्रहालय ने 300 वां पत्रकार सम्मान समारोह आयोजित किया, जिसमें स्वदेश समूह के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र शर्मा सहित 10 पत्रकार एवं एक पत्रकारिता शिक्षक का सम्मान किया गया
समय के साथ ‘माध्यम’ के रूप बदले हैं। नई-नई तकनीक भी आई है। लेकिन इस सबके बाद भी ‘मुद्रित माध्यम’ की महत्ता और लोक प्रियता में कोई कमी नहीं आई और न ही आएगी।
‘मुद्रित माध्यम’ बरगद के वृक्ष की तरह है। जिसकी छांव में पलकर ही अन्य ‘माध्यम’ पुष्पित-पल्लवित हुए हैं।
यह कहना है मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का।
वे आज ज्ञान तीर्थ कहे जाने वाले माधवराव समाचार पत्र संग्रहालय के स्थापना दिवस और सम्मान में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। यह संग्रहालय का 40 वां स्थापना समारोह और 30 वां सम्मान समारोह था।
संग्रहालय के लिंक रोड क्रमांक- 2 पर स्थित सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता मप्र और छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा कर रहे थे।
जबकि वरिष्ठ संपादक महेश श्रीवास्तव सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित थे। समारोह में पत्रकारिता और जनसंचार की करीब एकादश विभूतियों को विभिन्न सम्मानों और पुरस्कार प्रदान किए गए।
अपने उद्बोधन में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने कहा कि समाज में हमेशा से ही अच्छी ‘लेखनी’ के प्रति सम्मान का भाव रहा है। यह सिर्फ मुद्रित रूप में ही सामने आती है।
छपा हुआ शब्द हमेशा जीवित रहता है। एक बार पाठक के मन-मस्तिष्क में ठहर गया तो फिर वह उम्र भर वहीं मौजूद रहेगा। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आया समाचार कुछ घंटों तक ही रह सकेगा।
वहीं, सोशल मीडिया को तो फेंक मीडिया के नाम से ही जाना जाता है। ऐसे में समाचार पत्र या पत्रिकायें ही स्थायी रहेगी।
उन्होंने कहा कि दूसरे माध्यमों का जन्म ही इसी से हुआ है। उन्होंने सप्रे संग्रहालय द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए इतनी लंबी यात्रा पूरी करने के लिए बधाई दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि सप्रे संग्रहालय ने देश के बौद्धिक जगत में अपनी एक पैठ बनाई है।
इस संग्रहालय द्वारा बीते तीन दशकों में जिन लोगों को सम्मानित किया वे सही मायने में वे इसके पात्र थे। सम्मान के लिए योग्य व्यक्तियों को का चयन करना किसी चुनौती से कम नहीं होता लेकिन संग्रहालय इस चुनौती को स्वीकारते हुए यह कार्य कर रहा है। उन्होंने यहां की सामग्री के पुर्नप्रकाशन के लिए शासन स्तर पर प्रयास किये जाने की जरूरत बताई। उन्होंने मुख्य अतिथि से आग्रह किया कि इस दिशा में प्रयास किये जायें।
आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि प्रतिभाओं का सम्मान समाज का दायित्व है। इससे प्रतिभायें और अच्छा करने के लिए प्रेरित होती हैं तो नई पीढ़ी भी श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा लेती है। इसी दायित्व बोध के साथ हम यह सम्मान करते हैं। संग्रहालय के चार दशकों की यात्रा को साझा करते हुए कहा कि यहां पांच करोड़ से ज्यादा पृष्ठ हैं। लाखों पत्र-पत्रिकायें हैं।
यहां से देश-विदेश के एक हजार से ज्यादा शोधार्थी लाभान्वित हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस संग्रहालय को यहां तक पहुंचाने में प्रदेश के अग्रणी संपादकों, साहित्यकारों और उन परिवारों का बड़ा योगदान है जिन्होंने विश्वास कर हमें अपने पूर्वजों की धरोहर सौंपी। विश्वास है सभी के सहयोग से यह धारा आगे बढ़ती रहेगी।
आरंभ में संग्रहालय की ओर से अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार अवस्थी, विवेक श्रीधर और साधना देवांगन ने अतिथियों का स्वागत् किया। संचालन पत्रकार ममता यादव ने किया और आभार प्रदर्शन वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू ने किया।
बॉक्स- ज्ञान का गंगासागर है सप्रे संग्रहालय
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और सारस्वत अतिथि वरिष्ठ संपादक महेश श्रीवास्तव ने सप्रे संग्रहालय की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि इस संस्थान में ज्ञान की धार बह रही है।
इस धारा को संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने भागीरथ की तरह तपस्वी भाव से एकत्र की है। इसलिए हम कह सकते हैं कि ज्ञान गंगा की विभिन्न धाराएं यहां आकर समाती है इसलिए इसे ज्ञान का गंगासागर कहा जाना चाहिए। उन्होंने संग्रहालय की स्थापना के लिए श्रीधर जी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि मैं इस पूरी यात्रा का साक्षी रहा हूं।
इस आधार से कह सकता हूं कि उस दौर के युवा विजयदत्त श्रीधर में संग्रहालय की स्थापना के लिए दीवानगी नहीं बल्कि ‘दावाग्नि’ थी। इसी का परिणाम अपने आप में यह अनूठा संग्रहालय है।
सप्रे जी से प्रभावित होती थी राजनीति
समारोह में ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के लिए ‘हुक्मचंद नारद सम्मान’ से सम्मानित स्वदेश समाचार पत्र समूह भोपाल के प्रधान संपादक राजेन्द्र शर्मा ने सम्मान के प्रतिउत्तर में कहा कि सम्मान शासकीय और अशासकीय स्तर पर विभूतियों को दिये जाते हैं। लेकिन इस सम्मान में किसी प्रकार की ‘निधि’ नहीं है बल्कि इसमें प्रतिष्ठा की ‘पूंजी’ छिपी हुई है, जो जीवन की अमूल्य धरोहर से कम नहीं कही जा सकती है।
बीते तीन दशक के सम्मान समारोह में लगभग 300 प्रतिभओं को सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन हम देखेंगे कि सभी के चयन का आधार केवल प्रतिभा ही है।
सप्रे जी का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि सप्रे जी गहरे राष्ट्रबोध के पत्रकार थे। वे ऐसे पत्रकार थे जो राजनीति से कभी प्रभावित नहीं रहे बल्कि राजनीति उनसे प्रभावित रही। उनके आदर्श आज के पत्रकार और राजनेता दोनों को अपनाने की जरूररत है।
इनका हुआ सम्मान
समारोह में पत्रकारिता और जनसंचार की ग्यारह विभूतियों को सम्मानित किया गया।
सम्मान के तहत शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। समारोह में ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के लिए ‘हुक्मचंद नारद सम्मान’ से स्वदेश समाचार पत्र समूह भोपाल के प्रधान संपादक राजेन्द्र शर्मा, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर की पत्रकारिता एवं जनसंचार की प्राध्यापक डा. सोनाली नरगुंदे ‘मीडिया शिक्षा सम्मान’ राज्यपाल के प्रेस अधिकारी अजय वर्मा ‘संतोष कुमार शुक्ल लोक संप्रेषण पुरस्कार’ से सम्मानित किये गए। इसके अलावा ‘माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’ हरेकृष्ण दुबोलिया (दैनिक भास्कर) ‘लाल बलदेवसिंह पुरस्कार’ जितेन्द्र चौरसिया, (पत्रिका) ‘जगदीशप्रसाद चतुर्वेदी पुरस्कार’ गुरेन्द्र अग्निहोत्री (राज एक्सप्रेस), ‘रामेश्वर गुरु पुरस्कार’ प्रीति जैन (पीपुल्स समाचार), एवं पुरवाई पत्रिका लंदन (यू के) सम्पादक तेजेन्द्र शर्मा का सम्मान पत्र डॉ. प्रभा मिश्रा ने ग्रहण किया ‘सुरेश खरे पुरस्कार’ अनूप सक्सेना (हरिभूमि), ‘झाबरमल्ल शर्मा पुरस्कार’ संदीप तिवारी (नवभारत) और ‘जगत पाठक पुरस्कार’ अंजलि राय, (नवदुनिया) को प्रदान किया गया। महाकौशल की पत्रकारिता के लिए स्थापित ‘डा. लक्ष्मीनारायण गुप्त पुरस्कार’ डिंडौरी के खोजी पत्रकार आशीष शुक्ल को प्रदान किया गया। इस अवसर पर लखनऊ विवि के विभागाध्यक्ष पवन अग्रवाल को विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया।
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