मल्हार मीडिया भोपाल।
हिंदी पत्रकारिता के अग्रदूत माने जाने वाले माधवराव सप्रे के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। सप्रे जी का लेखन ऐसा था जो लोगों को स्वाधीनता आंदोलन से जुडऩे के लिए न केवल प्रेरित करता है बल्कि विवश करता है। सप्रे जी का समय भारत को नई पहचान देने वाला था।
इस तरह के विचार आज माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के सभागार में सुनाई दिए। मौका था यहां आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद ‘माधवराव सप्रे और उनका युग’ का। परिसंवाद सप्रे संग्रहालय तथा साहित्य अकादेमी नईदिल्ली द्वारा साझा तौर पर आयोजित किया गया था। इस अवसर पर तीन विचार सत्रों में विद्वानों के वक्तव्य हुए।
शुभारंभ सत्र में बतौर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के कुलपति प्रो. केजी सुरेश उपस्थित थे। सत्र की अध्यक्षता रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे कर रहे थे। सारस्वत अतिथि प्रो. चितरंजन मिश्र, संयोजक हिन्दी परामर्श मण्डल, साहित्य अकादेमी तथा साहित्य अकादेमी दिल्ली के ही अजय शर्मा थे।
अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि सप्रे जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के प्रति लोगों के मन में अलख जगाई। वे एक ऐसे पत्रकार थे जिन पर पहली बार राजद्रोह का मुकदमा चला था। उनकी लेखनी की खूबी यह थी कि उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के साथ ही सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया। सप्रे जी के सार्ध शताब्दी वर्ष में उन्हें याद करने का जो बीड़ा सप्रे संग्रहालय ने उठाया है उसकी जितनी सराहना की जाये वह कम है। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. संतोष चौबे ने कहा कि सप्रे जी हिंदी के लिए तब कार्य कर रहे थे जब ब्रज भाषा और खड़ी बोली की स्थापना के लिए द्वंद्व चल रहा था। डॉ. चौबे ने कहा कि आज साहित्य से इतर विषयों को ङ्क्षहदी में लिखने की बात चल रही है लेकिन सप्रे जी तब आर्थिक विषयों को हिंदी में लिख रहे थे। हिंदी के प्रति उनके इस योगदान को आसानी से नहीं भुलाया जा सकता है।
सत्र के विशेष अतिथि प्रो. चितरंजन मिश्र ने कहा कि सप्रे जी का जो समय रहा वह भारत को नई पहचान देने वाला है। उन्हें हम हिंदी का प्रारंभिक उन्नायक भी कह सकते हैं। उनकी कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ हिंदी की पहली प्रामाणिक कहानी मानी गई है। इसे हम प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि की आधार भूमि भी कह सकते हैं। दूसरे विशेष अतिथि अजय शर्मा ने कहा कि सप्रे जी ने स्वाधीनता आंदोलन के लिए एक तरह का जनमानस तैयार किया था। इसके पूर्व सप्रे संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि यह वर्ष सप्रे जी का 150 वां जन्म वर्ष है। वे हमारे प्रदेश की विभूति थे उनका 100 वर्ष हम नहीं मना सके, उसकी भरपाई यह संग्रहालय कर रहा है। सार्ध शताब्दी वर्ष में सप्रे संग्रहालय ने उनके जन्मस्थल पथरिया, छत्तीसगढ़ सहित नईदिल्ली में आयोजन कर उनका स्मरण किया। इनके माध्यम से सप्रे जी के कृतित्व और व्यक्तित्व से नई पीढ़ी को परिचित कराने का प्रयास किया है। इस अवसर पर साहित्य अकादेमी नईदिल्ली द्वारा प्रकाशित डा. सुशील त्रिवेदी के मोनोग्राफ ‘माधवराव सप्रे’ का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में राज्यपाल मंगुभाई पटेल को आना था किंतु स्वास्थ्यगत् कारणों के चलते वे नहीं आ सके। लेकिन आयोजन के प्रति शुभकामना देते हुए संदेश प्रेषित किया था जिसके वाचन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। आरंभ में संग्रहालय की ओर से डॉ. राकेश पाठक ने अतिथियों का स्वागत् किया गया। इस सत्र का संचालन संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा ने किया।
सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया
शुभारंभ सत्र के बाद तीन विचार सत्र भी हुए। इसमें पहले सत्र में ‘माधवराव सप्रे और उनका युग’ विषय पर सप्रे साहित्य के अध्येता सुशील त्रिवेदी ने कहा कि सप्रे जी ने आम जनमानस में स्वाधीनता की ललक तो पैदा की लेकिन उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी कलम चलाई थी। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जिन लक्ष्यों के लिए संघर्ष किया, वे आज कहीं खो से गए हैं। हमें एक बार उस तरफ भी सोचना होगा।
उन्होंने बताया कि सप्रे जी पर काफी अध्ययन के बाद किताब लिखी है। उसका उद्येश्य केवल इतना है कि लोग उनके बारे में जानें-समझें।
अगले सत्र में ‘संपादक माधवराव सप्रे और नवजागरण’ विषय पर डा. कृपाशंकर चौबे ने वक्तव्य दिया। उनका कहना था कि हिंदी पत्रकारिता के लिए हिंदीतर लोगों ने कार्य किया है। सप्रे जी इसका प्रमाण हैं। उन्होंने तिलक की पत्रकारिता को हिंदी में विस्तार देकर उनके जनजागरण के विचारों को आम जन तक पहुंचाया। प्रदेश में इसी परंपरा को राहुल बारपुते जैसे पत्रकारों ने भी निभाया है। इस दौरान उन्होंने पत्रकारिता के इतिहास पर वर्षवार प्रकाश डाला।
‘माधवराव सप्रे के निबंधों में राष्ट्रबोध’ पर सूचना आयुक्त विजयमनोहर तिवारी का भाव प्रवण उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि सप्रे जी पत्रकारिता के पूर्वज हैं। उनकी कहानी में पूरा देश दिखाई पड़ता है। सांस्कृति पत्रकार विनय उपाध्याय ने सप्रे जी की कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ का वाचन किया। उन्होंने कहा कि इस कहानी में कुल जमा तीन पात्र हैं लेकिन इसके मूल में माटी के प्रति अगाध श्रद्धा और सामंतवादी सोच पर कड़ा प्रहार है। इसमें कहानी कला के पूरे तत्व हैं, उन्होंने बताया कि इसे हिंदी की पहली कहानी मानने के लिए बकायदा कमलेश्वर ने एक बहस खड़ी की थी।
‘स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी कविता’ पर ललित निबंधकार डा. श्रीराम परिहार का बड़ा सरस वक्तव्य रहा। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जिन्होंने कवितायें लिखी वे सभी सप्रे जी से प्रभावित थे। फिर चाहे माखनलाल चतुर्वेदी हों या अन्य। इसकी झलक उनकी रचनाओं में सहज ही मिलती है। उन्होंने इस दौरान प्रसाद से लेकर निराला और सुभद्राकुमारी चौहान की पंक्तियों को भी उद्धृत किया।
‘हिन्दी में अर्थशास्त्रीय चिंतन की परंपरा और सप्रेजी’ विषय पर जनसंपर्क विभाग के पूर्व अपर संचालक लाजपत आहूजा ने विचार रखे। सप्रे जी ने अर्थशास्त्र के शब्दों का सहज हिंदी में अनुवाद किया। उनके लेखों में जिस तरह के विषयों को उठाया गया वह उनके अर्थशास्त्रीय चिंतन को प्रदर्शित करता है। ‘माधवराव सप्रे का नारी चिंतन’ विषय पर संग्रहालय की निदेशक डा. मंगला अनुजा ने वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि सप्रे जी ने अपनी लेखनी से समाज में नारियों के प्रति समानता का भाव जगाया। उनका मानना था कि स्त्री की प्रगति के बिना समाज की प्रगति असंभव है। उसे जब तक घर परिवार में समानता का व्यवहार नहीं मिलेगा तक आपसी प्रेम का भाव नहीं जागेगा। वैचारिक सत्रों की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे तथा एल.एन.सी.टी. विश्वविद्यालय के कुलपति डा. एन.के. थापक ने की। डॉ. दवे ने कहा कि समय के साथ मीडिया के स्वरूप में बदलाव आया है लेकिन उसका लक्ष्य जन सरोकार ही रहा है। उन्होंने कहा कि मीडिया के जो नए रूप आ रहे हैं उनका स्वागत् किया जाना चाहिए। डॉ. थापक ने अपने उद्बोधन में आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम पत्रकारिता के छात्रों के लिए लाभदायी साबित होंगे। इस सत्र का संचालन लावण्या शर्मा ने किया।
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