मल्हार मीडिया भोपाल।
पहली बार किसी राजनीतिक दल के मीडिया प्रभारी का नाम विधानसभा के रिकार्ड में दर्ज हो गया। वह भी चहेते मीडिया को उपकृत करने के कारण। तो सरकार की शोभा कुछ यूं बढ़ रही है। ऑफ दी रिकॉर्ड हो या आन दी रिकॉर्ड है तो गलत।
दरअसल मध्यप्रदेश विधानसभा में आज भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा ने विधानसभा में लगाए गए अपने सवाल में कमलनाथ सरकार से पूछा है कि, क्या कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा के निर्देश पर कांग्रेस और भाजपा समर्थित चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं, वेबसाइटों या पत्रकारों की सूची बनाई गई है...? क्या ऐसा भी निर्णय हुआ है कि कांग्रेस समर्थित चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं और पत्रकारों को ही जनसंपर्क विभाग की सुविधाएं, अथवा विज्ञापन अथवा गाड़ी, होटल या आर्थिक सहायता, अधिमान्यता या पत्रकार सम्मान दी जाएगी? अन्य पत्रकारों को नहीं? क्या सुश्री शोभा ओझा का पत्र और वेबसाइट, चेनल पत्र-पत्रिकाओं की सूची जनसंपर्क को दी गई है? तो उसकी लिखित जानकारी सरकार उजागर करे और यदि आफ द रिकार्ड भी ऐसा निर्णय हुआ है तो क्या भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के साथ इस प्रकार का भेदभाव पूर्ण रवैया ठीक है?
लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं आया। आया भी तो वैसा नहीं आया जैसा कि होना चाहिए था।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा पर कोई चार-पांच बड़े अखबारों को उपकृत करने और बाकी छोटे-मझोले समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, वेबसाइटस के विज्ञापन, विज्ञापनों के भुगतान, सुविधाएं बंद करने और अधिमान्यता रोकने के आरोप लग चुके हैं।
कोई आठ हजार छोटे दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को जब से ( आठ महीने से) प्रदेश में कमलनाथ सरकार काबिज हुई है न विज्ञापनों के भुगतान किए गये हैं और उनके विज्ञापन भी सरकार द्वारा बंद कर दिए गए हैं।
इन छोटे-मझोले समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के संचालकों-संपादकों का आरोप है कि कमलनाथ सरकार केंद्र की मोदी सरकार की तर्ज पर मध्यप्रदेश में तानाशाही तरीके से काम कर रही है तथा सरकार शोभा ओझा के इशारों पर प्रदेश के छोटे-मझोले अखबार, पत्र-पत्रिकाओं की आर्थिक ताकत और हक सरकारी विज्ञापनों को बंद कर उनका गला घोंटना चाहती है।
इन अखबार नवीसों का आरोप है कि शोभा ओझा का जनसंपर्क संचालनालय में इतना ज्यादा दखल है कि जनसंपर्क आयुक्त पी. नरहरि, अपर आयुक्त एच.एल. चौधरी और उपसंचालक प्रलय श्रीवास्तव की इतनी हिमाकत नहीं है कि ये तिकड़ी कोई भी विज्ञापन कांग्रेस नेत्री ओझा की मनमर्जी के बिना किसी समाचार पत्र को जारी कर सकें।
बहरहाल इतनी भी अति नहीं होनी चाहिए कि सब गलत सही ऊपर तैरने लगे। कांग्रेस मीडिया को कोसते-कोसते चुनाव हार गई और मध्यप्रदेश में मीडिया को कोसते-कोसते कुछ चुनिंदा मीडिया संस्थानों को खुद की गोदी में खिलाने लगी।
आलम ये कि पत्रकारों से मैडम कहती हैं आप तो कांग्रेसी पत्रकार हो। ये बताओ तुम कौन सर्टिफिकेट देने वाले? तो साहब एक लाइन की कहानी ये कि जिनको विज्ञापन मिल रहा है वो कांग्रेसी और जिनको नहीं मिल रहा वो भाजपा माइंडेड पत्रकार हैं कांग्रेस के मीडिया विभाग की तरफ से।
खैर सौ बात की एक बात ये बताओ कांग्रेसियों जब तुम्हारी सरकार नहीं थी हालांकि सरकार भी तुम्हारे घर की नहीं जनता की है।
अभी 6-7 महीने पुरानी ही तो बात है तब कुछ पत्रकार तुमको बड़े प्रिय और निष्पक्ष लगते थे। अब सरकार की व्यवस्था के खिलाफ लिखने वाले भाजपाई हो गए। कर लो जितनी अति करनी हो। चंद लोग करें भी क्या? सब बनियों के गुलाम हैं।
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