ममता मल्हार।
भोपाल के पत्रकारिता जगत में जिन पत्रकारों को राजनीतिक बीट में थर्ड फ्रंट मिला हुआ है उनके लिए तो खबरों का टोटा ही समझिए।
जो थर्ड फ्रंट बनने की क्षमता रखते हैं वे भी कोने में सेफ जोन में बैठकर टकटकी लगाए तमाशा देख रहे हैं और सबको लग रहा है बैठे-बैठे ही भाजपा हार जाएगी और जनता इनको जिता देगी।
भाजपा सरकार में रहकर भी चुनावी में मोड में इस तरह रहती है कि कभी-कभी आभास होता है कि दोनों तरफ से भाजपा ही चुनाव लड़ रही है।
खुद भाजपाईयों को भी तगड़े कांपटीटर की कमी तो खलती ही होगी। फिलहाल वर्तमान मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री की बयानबाजी से राजनीतिक गलियारों में खबरों की कमी नहीं है।
बाकी मुद्दे तो हाशिए पर ही हैं। एक पत्रकार साथी से बातचीत पर आधारित। उनको पॉलीटिकल बीट में थर्ड फ्रंट दिया गया है।
वो कहते हैं जिनके पास भाजपा-कांग्रेस की बीट है वो तो कुछ न कुछ दे ही देते हैं पर यहां तो बात करने पर भी इनकी विधानसभा चुनाव की तैयारियों तक की एक लाईन नहीं मिलती। अब ऐसे में क्या किया जाए?
वैसे भी मध्यप्रदेश में भाजपाई सरकार डेढ़ दशक से ज्यादा समय से काबिज है ऐसे में खबरों में एकरूपता के कारण वैसे तो राजनतिक बीट के पत्रकारों के सामने ही यह धर्मसंकट रहता है कि अब क्या एंगल निकाला जाए कि खबर बन जाए।
जमाना फेस ब्रांडिंग का पूरे खुमार पर हो तो मुद्दों का होना ही क्या है?
यह सवाल भी है और जवाब भी। वैसे पॉलिसी मुद्दे पार्टी, आधारित खबरों पर फोकस करने वाले पत्रकारों के पास कंटेंट की कमी नहीं होती।
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