संजय वोहरा।
भारत की सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले ने केंद्र सरकार को तगड़ा झटका दिया है।
ये सिर्फ उस मलयाली चैनल #media #one की ही जीत ही नहीं है जिस पर केंद्र सरकार ने बैन लगा दिया था बल्कि उन तमाम पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की भी जीत है जो बेख़ौफ़ होकर, बिना लालच या किसी तरह के समझौते किये बिना पत्रकारिता धर्म को निभा रहे हैं या निभाना चाहते हैं।
वैसे पत्रकार बिरादरी में अब ऐसे जीवट कम ही बचे हैं, जो हैं वो कहीं हाशिये पर हैं। लेकिन सचाई ये भी है कि पत्रकारों की वर्तमान में जो थोड़ी इज्जत आबरू समाज में बची है वो उन्हीं के बूते या बीते समय में किये गए काम के कारण है।
भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड का ये फैसला साफ़-साफ़ बताता है कि सरकार की आलोचना करने का मतलब राष्ट्र विरोध नहीं है और देश की सुरक्षा के बहाने भारत में आज़ाद प्रेस पर शिकंजा नहीं कसा जा सकता।
हो सकता है इस फैसले से उन कुछ पत्रकारों या संस्थानों की हिम्मत बढ़े जो मजबूरन या दबाव में आकर सत्ता के गलत काम पर उंगलियाँ उठाने वाली रिपोर्ट्स प्रसारित करने से बचते हैं।
अदालत का ये फैसला ये स्पष्ट करता है कि सरकार प्रेस पर गैरज़रूरी कारणों के बेस पर रोक नहीं लगा सकती।
इस चैनल के केस में केरल की हाई कोर्ट ने चैनल पर रोक के केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला उलट दिया।
तमाम पत्रकारों को इसका अपने स्तर पर जमकर स्वागत करना चाहिए और जितना हो सके इसका प्रचार करना भी ज़रूरी है।
ये फैसला देश भर की अदालतों के लिए भी एक नजीर है।
साथ ही criminal justice system से जुड़े तमाम संस्थानों और एजेंसियों को भी इशारा समझ जाना चाहिए जो सत्ता के दबाव में पत्रकारों या मीडिया घरानों पर अनाप शनाप पाबंदियां लगाने या उनके कान ऐंठने के कुकर्म में लगी रहती हैं ।
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